केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मौसमी इन्फ्लूएंजा के एच3एन2 उप-प्रकार के कारण कर्नाटक और हरियाणा में एक-एक व्यक्ति की मौत होने की जानकारी दी है. यह श्वसन तंत्र में होने वाला एक गंभीर संक्रमण है.
नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने शुक्रवार (10 मार्च) को मौसमी इन्फ्लूएंजा के एच3एन2 (H3N2) उप-प्रकार के कारण दो मौतों की पुष्टि की. इनमें से एक मौत कर्नाटक और दूसरी हरियाणा में हुई है.
मीडिया में आईं खबरों से पता चलता है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है, वह 82 वर्ष के थे और उन्हें दूसरी बीमारियां भी थीं. वहीं, हरियाणा में जिस व्यक्ति की मौत हुई वह 52 साल के थे और लिवर कैंसर से पीड़ित थे.
मौसमी इंफ्लूएंजा श्वसन तंत्र में होने वाला एक गंभीर संक्रमण है, जो इंफ्लूएंजा वायरस से होता है. कुछ खास महीनों में विश्व भर में इसके मामले बढ़ जाते हैं.
मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, वह मौसमी इंफ्लूएंजा के उप-स्वरूप एच3एन2 के मामलों और मृत्यु दर पर भी करीबी नजर रखे हुए है. मंत्रालय ने कहा, ‘छोटे बच्चों और पहले से रोगों से पीड़ित वृद्ध व्यक्तियों को मौसमी इंफ्लूएंजा से सबसे ज्यादा खतरा है. इस सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती से निपटने के लिए अधिकारी पूरी तरह तैयार हैं.’
इंटीग्रेटेड डिसीज़ सर्विलांस प्रोजेक्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में अब तक इस प्रकार के 3,038 मामले सामने आ चुके हैं. इसमें जनवरी में 1,245, फरवरी में 1,307 और मार्च में 486 मामले शामिल हैं.
हालांकि यह ध्यान देने योग्य बात है कि पिछले वर्षों में भी इस वायरस की सूचना मिली है और यह कोई नया प्रकोप नहीं है.
रोग काफी हद तक आत्म-सीमित है, यानी केवल लक्षणों के लिए निर्धारित उपचार के साथ एक रोगी इससे संबंधित दवा लेने या बिना लिए ठीक हो जाएगा.
हालांकि जिन लोगों में रोगों को लेकर प्रतिरोधक क्षमता कम है या वे बुजुर्ग हैं या अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, उन्हें इस वायरस से दिक्कत हो सकती है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि एच3एन2 के अलावा, इन्फ्लूएंजा का एक अन्य उप-प्रकार एच1एन1 (H1N1) भी भारत में प्रचलन में रहा है. फरवरी तक एच1एन1 के 955 मामले सामने आए थे.
एच1एन1 के अधिकांश मामले तमिलनाडु (545), महाराष्ट्र (170), गुजरात (74), केरल (42) और पंजाब (28) से रिपोर्ट किए गए हैं. इन दोनों उप-प्रकारों की पहचान भारत में कई वर्षों से की जाती रही है.
एच3एन2 प्रमुख उप-प्रकार रहा है जिसके बाद H1N1 आता है. ये दोनों उप-प्रकार इन्फ्लुएंजा ‘ए’ प्रकार के हैं. देश में इस साल के पिछले नौ हफ्तों में इन्फ्लुएंजा ‘बी’ टाइप वायरस (विक्टोरिया वंश के) के मामलों की भी पुष्टि हुई है. इन्फ्लुएंजा ‘सी’ और इन्फ्लुएंजा ‘डी’ के विपरीत, इन दो प्रकार के इन्फ्लूएंजा वायरस को फैलने का कारण माना जाता है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि भारत में इन्फ्लूएंजा के मामलों में वृद्धि कोई अलग घटना नहीं है और ‘विश्व स्तर पर ऐसे मामलों में वृद्धि देखी जा रही है.’
मंत्रालय ने कहा कि जनवरी से मार्च और मानसून के बाद, इस वायरस के फैलने का खतरा अधिक रहता है. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मौसमी इन्फ्लूएंजा से उत्पन्न होने वाले मामलों में मार्च के अंत से गिरावट आने की उम्मीद है.’
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने इससे पहले कहा था कि अन्य इन्फ्लूएंजा उप-प्रकारों की तुलना में एच3एन2 वायरस अस्पतालों में भर्ती होने का कारण अधिक बनता है.
इसके अनुसार, अस्पताल में भर्ती सभी मामलों में 6 प्रतिशत में निमोनिया के नैदानिक लक्षण थे और 6 प्रतिशत में दौरे पड़ते थे. उन सभी अस्पताल में भर्ती लोगों में से 7 प्रतिशत को गंभीर बीमारी थी, जिन्हें आईसीयू देखभाल और 10 प्रतिशत को ऑक्सीजन की जरूरत थी.
चूंकि एंटीबायोटिक्स किसी भी वायरस के इलाज प्रोटोकॉल में शामिल नहीं हैं, इसलिए इन्फ्लुएंजा के कारण होने वाले फ्लू के इलाज के लिए उनका उपयोग नहीं किया जाता है.
हालांकि अगर रोगी में द्वितीयक जीवाणु संक्रमण विकसित हो जाता है, तो डॉक्टर एंटीबायोटिक्स लिखते हैं. आईसीएमआर ने लोगों को भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मास्क पहनने की सलाह दी है, क्योंकि इसके फैलने का रास्ता सांस है. शरीर में दर्द और बुखार के लिए पैरासिटामोल नाम की दवा दी जाती है.
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