छत्तीसगढ़: नर्सिंग कॉलेजों में महिलाकर्मियों के लिए 100 फीसदी आरक्षण हाईकोर्ट ने रद्द किया

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने दिसंबर 2021 में सहायक प्रोफेसर (नर्सिंग) और व्याख्याताओं के पदों के लिए एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें केवल महिला उम्मीदवार ही भर्ती और नियुक्ति के लिए पात्र बताई गई थीं. अदालत ने इस कदम को भारतीय संविधान का उल्लंघन करार दिया.

/
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने दिसंबर 2021 में सहायक प्रोफेसर (नर्सिंग) और व्याख्याताओं के पदों के लिए एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें केवल महिला उम्मीदवार ही भर्ती और नियुक्ति के लिए पात्र बताई गई थीं. अदालत ने इस कदम को भारतीय संविधान का उल्लंघन करार दिया.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट. (फोटो साभार: highcourt.cg.gov.in)

रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के सभी सरकारी नर्सिंग कॉलेजों में सहायक प्रोफेसरों और व्याख्याताओं के पदों पर महिलाओं की सीधी भर्ती के लिए 100 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के सरकार के फैसले को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए खारिज कर दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, न्यायालय ने छत्तीसगढ़ चिकित्सा शिक्षा (राजपत्रित) सेवा भर्ती नियमावली-2013 की अनुसूची III में निर्धारित नोट-2 को भी निरस्त कर दिया है, जिसमें इन पदों पर सीधी भर्ती के लिए केवल महिला अभ्यर्थियों को पात्र बनाया गया था.

मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की खंडपीठ ने बीते बृहस्पतिवार (9 मार्च) को यह आदेश पारित किया.

बता दें कि रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीपीएसी) ने 8 दिसंबर 2021 को विभिन्न विषयों के लिए सहायक प्रोफेसर (नर्सिंग) और व्याख्याताओं के पदों के लिए एक विज्ञापन जारी किया था, जिसके बाद 24 दिसंबर 2021 को तीन व्यक्तियों द्वारा एर रिट याचिका लगाई गई थी.

उसी याचिका पर वर्तमान आदेश आया है. विज्ञापन के खंड 5 के अनुसार, केवल महिला उम्मीदवार ही भर्ती और नियुक्ति के लिए पात्र थीं.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनके पास विज्ञापन में निर्धारित अपेक्षित शैक्षिक योग्यता है, लेकिन उन्हें चिकित्सा शिक्षा (राजपत्रित) सेवा भर्ती नियम-2013 के नोट-2 के मद्देनजर फॉर्म जमा करने की अनुमति नहीं दी गई. उन्होंने विज्ञापन के खंड 5 को भी चुनौती दी.

याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील देते हुए वकील नेल्सन पन्ना और घनश्याम कश्यप ने अदालत के समक्ष कहा, ‘विज्ञापन महिला आवेदकों को 100 फीसदी आरक्षण देने की बात करते हुए संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) और 16 (सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता) का उल्लंघन करता है.’

वकीलों ने तर्क दिया कि 2013 के नियमों के अनुसार, व्याख्याताओं के पद सीधी भर्ती द्वारा और 50 फीसदी स्टाफ नर्स/नर्सिंग सिस्टर/सहायक नर्सिंग अधीक्षक के पद से पदोन्नति द्वारा भरी जाएंगी; 75 प्रतिशत सहायक प्रोफेसरों की सीधी भर्ती की जाएगी; जबकि 25 प्रतिशत पद व्याख्यातों की पदोन्नति कर भरे जाएंगे. वकीलों ने दलील दी कि इस प्रकार सीधी भर्ती के लिए महिलाओं के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है.

उन्होंने कहा कि अप्रैल 2021 में 13 पुरुष अभ्यर्थियों को चिकित्सा शिक्षा विभाग में नर्स के पद पर नियुक्त किया गया था. वकीलों ने कहा कि जब बीएससी और एमएससी नर्सिंग पाठ्यक्रमों में पुरुष उम्मीदवारों के प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं है, तो महिला उम्मीदवारों के लिए 100 फीसदी आरक्षण ‘तर्कहीन और मनमाना’ है.

राज्य की ओर से प्रस्तुत वकील ने तर्क दिया, ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(3) में महिला उम्मीदवारों के लिए 100 फीसदी आरक्षण का बचाव किया गया है, क्योंकि अनुच्छेद 15(3) कहता है कि राज्यों द्वारा महिलाओं और बच्चों के लिए कोई विशेष प्रावधान करने कोई रोक नहीं है. राज्य को प्रदत्त शक्ति के आधार पर सरकार ने नियम बनाए हैं, जो मनमाने और अवैध नहीं हैं और न ही नियम बनाने की राज्य की क्षमता से बाहर हैं.’

तर्कों को सुनने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला, ‘व्याख्यता और सहायक प्रोफेसरों के पद पर नियुक्ति के लिए महिला उम्मीदवारों के लिए 100 फीसदी आरक्षण असंवैधानिक और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन है, इसलिए 2013 के नियमों की अनुसूची III में नोट-2 के साथ-साथ विज्ञापन के खंड 5 को अवैध घोषित किया जाता है और रद्द किया जाता है.’

तीन याचिकाकर्ताओं में से एक 36 वर्षीय अभय किस्पोट्टा, जिनके पास बीएससी नर्सिंग की डिग्री है और वे अस्पताल प्रशासन में एमबीए भी हैं, ने कहा, ‘यह अदालत का एक बहुत अच्छा फैसला है और मैं इसका स्वागत करता हूं. कुछ लोग कहते हैं कि अदालत में फैसला आने में कई साल लग जाते हैं, लेकिन मैं उनसे कहना चाहता हूं कि हमें अपनी आवाज उठानी चाहिए और अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहिए.’