सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने समलैंगिक विवाहों का विरोध किया, क​हा- विपरीतलिंगी विवाह मानक हैं

सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल हलफ़नामे में केंद्र ने कहा कि विपरीत लिंग के व्यक्तियों के बीच संबंध सामाजिक, सांस्कृतिक और क़ानूनी रूप से शादी के विचार और अवधारणा में शामिल है और इसे न्यायिक व्याख्या से हल्का नहीं किया जाना चाहिए.

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New Delhi: An activist waves a rainbow flag (LGBT pride flag) after the Supreme Court verdict which decriminalises consensual gay sex, outside the Supreme Court in New Delhi, Thursday, Sept 6, 2018. A five-judge constitution bench of the Supreme Court today, unanimously decriminalised part of the 158-year-old colonial law under Section 377 of the IPC which criminalises consensual unnatural sex, saying it violated the rights to equality. (PTI Photo/Kamal Kishore) (PTI9_6_2018_000133B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल हलफ़नामे में केंद्र ने कहा कि विपरीत लिंग के व्यक्तियों के बीच संबंध सामाजिक, सांस्कृतिक और क़ानूनी रूप से शादी के विचार और अवधारणा में शामिल है और इसे न्यायिक व्याख्या से हल्का नहीं किया जाना चाहिए.

New Delhi: An activist waves a rainbow flag (LGBT pride flag) after the Supreme Court verdict which decriminalises consensual gay sex, outside the Supreme Court in New Delhi, Thursday, Sept 6, 2018. A five-judge constitution bench of the Supreme Court today, unanimously decriminalised part of the 158-year-old colonial law under Section 377 of the IPC which criminalises consensual unnatural sex, saying it violated the rights to equality. (PTI Photo/Kamal Kishore) (PTI9_6_2018_000133B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया है.

सुप्रीम कोर्ट में अपने जवाबी हलफनामे में केंद्र ने कहा कि आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज़ (गैर-आपराधिक) कर देने से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का दावा नहीं किया जा सकता है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने कहा कि विपरीत लिंग के व्यक्तियों के बीच संबंध (Heterosexual Relations) ‘सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से शादी के विचार और अवधारणा में शामिल है और इसे न्यायिक व्याख्या से हल्का नहीं किया जाना चाहिए.’

केंद्र की ओर से कहा गया कि विवाह से संबंधित सभी व्यक्तिगत कानून (Personal Laws) और वैधानिक अधिनियम केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध को मान्यता देते हैं. जब इस आशय का स्पष्ट विधायी इरादा हो, तो कानून में बदलाव के लिए एक न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है.

केंद्र के अनुसार, जब प्रावधान ‘पुरुष’ और ‘महिला’ शब्दों का उपयोग करके एक स्पष्ट लिंग विशिष्ट भाषा का उपयोग करते हैं, तो अदालतें व्याख्यात्मक अभ्यास के माध्यम से एक अलग अर्थ नहीं दे सकती हैं.

केंद्र ने कहा कि समान-सेक्स संबंधों में व्यक्तियों के एक साथ रहने की तुलना पति, पत्नी और संघ से पैदा हुए बच्चों की भारतीय परिवार की अवधारणा से नहीं की जा सकती है. यह तथ्य कि नवतेज सिंह जौहर के फैसले के बाद समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, फिर भी इस तरह के संबंधों के लिए विवाह जैसी कानूनी मान्यता प्राप्त करने का दावा नहीं किया सकता.

केंद्र ने कहा कि प्रकृति में हेटरोसेक्सुअल (विपरीतलिंगी व्‍यक्ति के प्रति आ​कर्षण) तक सीमित विवाह की वैधानिक मान्यता पूरे इतिहास में आदर्श है और राज्य के अस्तित्व और निरंतरता दोनों के लिए मूलभूत है.

लाइवलॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हलफनामे में केंद्र की ओर से कहा गया, इसलिए, इसके सामाजिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए राज्य की विवाह/संघों के अन्य रूपों को छोड़कर केवल विषमलिंगी विवाह (Heterosexual Marriage) को मान्यता देने में रुचि है.

केंद्र ने कहा, ‘यह प्रस्तुत किया गया है कि इस स्तर पर यह पहचानना आवश्यक है कि विवाह या संघों के कई अन्य रूप हो सकते हैं या समाज में व्यक्तियों के बीच संबंधों की व्यक्तिगत समझ हो सकती है, लेकिन राज्य इस मान्यता को विषमलैंगिक रूप तक सीमित करता है.’

आगे कहा गया, ‘राज्य इन अन्य प्रकार के विवाहों या संघों या समाज में व्यक्तियों के बीच संबंधों की व्यक्तिगत समझ को मान्यता नहीं देता है, लेकिन ये गैरकानूनी नहीं हैं.’

केंद्र ने समलैंगिक विवाह का विरोध करने के लिए सामाजिक संगठनों का हवाला दिया और कहा कि एक मानक स्तर पर समाज में परिवार की छोटी इकाइयां होती हैं, जो मुख्य रूप से एक विषमलिंगी विवाहों द्वारा संगठित होती हैं.

जहां समाज में संघों के अन्य रूप मौजूद हो सकते हैं जो गैरकानूनी नहीं होंगे, यह एक समाज के लिए खुला है कि वह एक ऐसे संघ के रूप को कानूनी मान्यता दे, जिसे समाज अपने अस्तित्व के लिए सर्वोत्कृष्ट निर्माण खंड मानता है. केंद्र ने जोर देकर कहा कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता न देने के कारण किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है.

सुप्रीम कोर्ट अब 13 मार्च को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.

6 सितंबर, 2018 को एक ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने धारा 377 को रद्द कर दिया, जिसके तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता है.