सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इसके परिसर से मस्जिद हटाने का आदेश बरक़रार रखा

2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसके परिसर से एक मस्जिद हटाने का आदेश दिया था, जिसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरक़रार रखते हुए कहा कि मस्जिद सरकारी पट्टे की ज़मीन पर बनी थी और साल 2002 में इसके अनुदान को रद्द कर दिया गया था.

/
इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फाइल फोटो: पीटीआई)

2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसके परिसर से एक मस्जिद हटाने का आदेश दिया था, जिसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरक़रार रखते हुए कहा कि मस्जिद सरकारी पट्टे की ज़मीन पर बनी थी और साल 2002 में इसके अनुदान को रद्द कर दिया गया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इसके परिसर से एक मस्जिद को हटाने के फैसले को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिकाओं (एसएलपी) को खारिज कर दिया.

द हिंदू के अनुसार, हाईकोर्ट ने 2017 में अपने स्वयं के उपयोग/विस्तार के लिए भूमि के इस्तेमाल के लिए मस्जिद को हटाने का आदेश दिया था.

जस्टिस एमआर शाह की अगुवाई वाली खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि ‘विवादित संपत्ति एक सार्वजनिक उद्देश्य के लिए जरूरी थी’ और इस निर्णय के लिए ठोस कारण दिए गए थे.

हाईकोर्ट ने मस्जिद के अधिकारियों को परिसर खाली करने के लिए तीन महीने का समय दिया था.

हालांकि, हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. शीर्ष अदालत ने 13 मार्च को हाईकोर्ट परिसर खाली करने के लिए और तीन महीने का समय दिया था.

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को मस्जिद बनाने के लिए, यदि उपलब्ध हो, तो पास में किसी वैकल्पिक स्थान के आवंटन की मांग करते हुए एक विस्तृत जवाब दायर करने की स्वतंत्रता दी, बशर्ते कि ऐसी वैकल्पिक भूमि ‘वर्तमान या भविष्य में किसी अन्य सार्वजनिक उद्देश्य के लिए निर्धारित न हो.’

आदेश में यह भी कहा गया कि अगर अगले तीन महीने के भीतर विवादित निर्माण को नहीं हटाया जाता है, तो उच्च न्यायालय सहित शासकीय प्राधिकरण इसे हटा सकते हैं.

शीर्ष अदालत की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल थे, का फैसला इस तथ्य पर आधारित था कि मस्जिद सरकारी पट्टे की जमीन पर बनी थी और साल 2002 में इसके अनुदान को रद्द कर दिया गया था.

शीर्ष अदालत ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि उसने 2012 में उच्च न्यायालय के पक्ष में भूमि की बहाली की अनुमति दी थी.