सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफ़नामे में केंद्र ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया है. वहीं, एलजीबीटीक्यू+ कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार एलजीबीटीक्यू+ नागरिकों के लिए समानता का अधिकार बनाए रखने की संवैधानिक प्रतिबद्धता को नज़रअंदाज़ करते हुए भेदभावपूर्ण विवाह क़ानून बनाए रखने पर अड़ी हुई है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं को लेकर दायर हलफनामे में केंद्र सरकार के ऐसी शादियों का विरोध करने के एक दिन बाद मोदी सरकार के कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को कहा कि सरकार नागरिकों की निजी स्वतंत्रता और गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती लेकिन विवाह की संस्था से जुड़े मुद्दे नीतिगत मसला हैं.
Govt not interfering in personal life of anybody. Personal freedom of citizens never regulated by govt. When it comes to institution of marriage, it is a matter of policy. There is a clear distinction: Union Law Min Kiren Rijiju on Centre opposing same-sex marriage plea in SC pic.twitter.com/jQg7sSkTdp
— ANI (@ANI) March 13, 2023
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, रिजिजू संसद भवन के बाहर संवाददाताओं से बात कर रहे थे, जब उनसे समलैंगिक विवाह पर केंद्र के रुख को लेकर सवाल पूछा गया.
इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘सरकार किसी की निजी जिंदगी और व्यक्तिगत गतिविधियों में दखल नहीं दे रही है. इसे लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए. जब बात विवाह की संस्था से जुड़े मामलों की होती है, तो यह नीतिगत मसला है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार द्वारा कभी भी नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निजी गतिविधियों को बाधित, विनियमित या उन पर सवाल नहीं किया जाता है. इस बारे स्पष्ट होना चाहिए. इसमें साफ अंतर है.’
उल्लेखनीय है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिकाओं के जवाब में दाखिल हलफनामे में कहा था कि आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज़ (गैर-आपराधिक) कर देने से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का दावा नहीं किया जा सकता है.
ज्ञात हो कि 6 सितंबर, 2018 को एक ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने समलैंगिक संबंधों को अपराध क़रार देने वाली धारा 377 को रद्द कर दिया था. अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे, हालांकि उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था.
वर्तमान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ यह निर्णय देने वाली पीठ का हिस्सा थे.
केंद्र ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि विपरीत लिंग के व्यक्तियों के बीच संबंध (Heterosexual Relations) सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से शादी के विचार और अवधारणा में शामिल है और इसे न्यायिक व्याख्या से हल्का नहीं किया जाना चाहिए. विवाह से संबंधित सभी व्यक्तिगत कानून (Personal Laws) और वैधानिक अधिनियम केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध को मान्यता देते हैं. जब इस आशय का स्पष्ट विधायी इरादा हो, तो कानून में बदलाव के लिए एक न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है.
सोमवार को ही सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को महत्वपूर्ण मुद्दा मानते हुए विचार के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया है. मामले में अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी.
सीजेआई के अलावा पीठ में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल हैं.
गौरतलब है कि पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह क़ानूनों के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं को ख़ारिज करने की मांग करते हुए केंद्र सरकार ने अदालत में तर्क दिया था कि भारत में विवाह ‘पुराने रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों’ पर निर्भर करता है.
सरकार ने कहा था कि समान-लिंग वाले व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध बनाना और पार्टनर के रूप में रहने की तुलना पति-पत्नी और बच्चों वाली ‘भारतीय परिवार की इकाई’ से नहीं की जा सकती है. उन्होंने यह भी कहा था कि विवाह की मान्यता को केवल विपरीत लिंग के व्यक्तियों तक सीमित रखना ‘राज्य के हित’ में भी है.
अक्टूबर 2021 में हुई इस मामले की सुनवाई में केंद्र ने कहा था कि विवाह एक जैविक (बायोलॉजिकल) पुरुष और एक जैविक महिला से जुड़ा शब्द है.
एलजीबीटीक्यू+ कार्यकर्ताओं ने समलैंगिक विवाहों को क़ानूनी मान्यता के लिए पत्र लिखा
इस बीच, एलजीबीटीक्यू+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर और क्वीर+) कार्यकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से समलैंगिक शादियों को मान्यता देने का आग्रह करते हुए एक खुला पत्र लिखा है.
रिपोर्ट के अनुसार, इसमें कहा गया है, ‘ एलजीबीटीक्यू+ व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के अधिकार को मान्यता न मिलने से समानता और गरिमा के अधिकार के साथ-साथ अंतरंग अभिव्यक्ति का अधिकार भी गंभीरता से प्रभावित होता है.’
पत्र में सरकार द्वारा दायर हलफनामे की कई गलतियों की तरफ भी इशारा किया है. इसमें कहा गया है, ‘भारत सरकार देश के एलजीबीटीक्यू+ नागरिकों के लिए समानता का अधिकार बनाए रखने की अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता को नजरअंदाज कर रही है और भेदभावपूर्ण विवाह कानूनों को बनाए रखने पर अड़ी हुई नजर आती है.’
यह पत्र मंगलवार को नम्मा प्राइड एंड कोएलिशन ऑफ सेक्स वर्कर्स एंड सेक्सुअल माइनॉरिटी राइट्स द्वारा बेंगलुरु में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जारी किया गया. इस पत्र को यहां पूरा पढ़ सकते हैं.