तमिलनाडु में बिहारी श्रमिकों पर हमले की अफ़वाह फैलाने वालों से भाजपा का क्या रिश्ता है?

विशेष रिपोर्ट: बीते दिनों तमिलनाडु में बिहार के श्रमिकों पर कथित हमले की अफ़वाह फैलाने के पीछे ख़ुद को पत्रकार बताने वाले यूट्यूबर मनीष कश्यप का नाम आया है. पड़ताल बताती है कि इस मामले में कई एफआईआर में नामजद मनीष इससे पहले भी कई मामलों में आरोपी हैं और उन्हें भाजपा, संघ नेताओं का समर्थन मिलता रहा है.

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यूट्यूबर मनीष कश्यप. (फोटो साभार: फेसबुक/@ErManishKasyapSOB)

विशेष रिपोर्ट: बीते दिनों तमिलनाडु में बिहार के श्रमिकों पर कथित हमले की अफ़वाह फैलाने के पीछे ख़ुद को पत्रकार बताने वाले यूट्यूबर मनीष कश्यप का नाम आया है. पड़ताल बताती है कि इस मामले में कई एफआईआर में नामजद मनीष इससे पहले भी कई मामलों में आरोपी हैं और उन्हें भाजपा, संघ नेताओं का समर्थन मिलता रहा है.

यूट्यूबर मनीष कश्यप. (फोटो साभार: फेसबुक/@ErManishKasyapSOB)

नई दिल्ली: मनीष कश्यप उर्फ त्रिपुरारी कुमार तिवारी बिहार के एक यूट्बूर हैं जो स्वयं को पत्रकार बताते हैं और ‘सच तक न्यूज’ नाम से एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं, लेकिन वर्तमान में वह अपने ‘झूठ’ के चलते राज्य पुलिस के निशाने पर हैं. झूठ भी ऐसा जो दो भारतीय राज्यों के लोगों के बीच एक-दूसरे के प्रति नफ़रत और अविश्वास पैदा करता है, अफवाहों को बढ़ावा देकर दहशत फैलाता है, जिसके चलते दोनों राज्यों की सरकारों को लोगों में विश्वास बहाली के लिए रात-दिन एक करना पड़ता है.

पत्रकारिता के नाम पर फैलाए गए मनीष के झूठ और अफवाहों का असर देश भर में ‘बिहारी बनाम तमिल’ और ‘हिंदी बनाम तमिल’ की बहस सुलगाने के लिए पर्याप्त था.

नतीजतन, मनीष के खिलाफ बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओडब्ल्यू) ने दस दिनों के भीतर तीन मामले दर्ज किए. उन पर आरोप हैं कि उन्होंने तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी मज़दूरों पर हमलों से संबंधित गलत सूचनाएं प्रसारित कीं; फर्जी वीडियो चलाए और इतना ही नहीं, बिहार पुलिस द्वारा अपनी गिरफ़्तारी की झूठी बात भी सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाई.

स्वयं को ‘सन ऑफ बिहार’ बताने वाले मनीष कश्यप के फेसबुक पर 40 लाख से अधिक फॉलोवर हैं और उनके यूट्यूब चैनल सच तक न्यूज के 64 लाख से अधिक सब्सक्राइबर हैं. उनके वीडियो देखने वालों की संख्या करोड़ों में हैं.

तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी मज़दूरों पर हमले के तथाकथित वीडियो फरवरी माह से ही वायरल हो रहे थे, जिनके चलते उनमें दहशत का माहौल था और जिसे दूर करने के लिए तमिलनाडु पुलिस ने सार्वजनिक बयान जारी करके सभी वीडियो फर्जी बताए थे और संबंधित घटनाओं के पीछे का सच उजागर किया था.

लेकिन, सोशल मीडिया पर व्यापक पहुंच रखने वाले मनीष ने दहशत का माहौल खड़ा करने में ‘आग में घी’ का काम किया. उनके द्वारा स्क्रिप्टेड वीडियो तक सोशल मीडिया पर शेयर किए गए, जिन्हें बिहार में ही एक कमरे में दो लोगों की झूठी मरहम-पट्टी करके शूट किया गया था और कहा गया था कि वे तमिलनाडु में हमला झेलने वाले बिहारी मज़दूर हैं जो एक कमरे में छिपे बैठे हैं और बिहार लौटने की इच्छा रखते हैं.

मनीष कश्यप के ख़िलाफ़ दर्ज पहली एफआईआर

मनीष के ख़िलाफ़ पहली एफआईआर 5 मार्च को दर्ज की गई थी, जिसमें पुलिस ने कहा:

‘विभिन्न सोशल मीडिया प्रोफाइल तथा फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब आदि पर तमिलनाडु में कथित हिंसा से संबंधित वीडियो एवं पोस्ट के अवलोकन के क्रम में पाया गया कि मीडिया साइट्स एवं विभिन्न यूट्यूब चैनलों पर तमिलनाडु में बिहारी/हिंदी भाषी मजदूरों के साथ मारपीट एवं हिंसा से संबंधित भ्रामक, अफवाहजनक तथा भड़काने वाले फोटो/वीडियो जैसी सामग्रियों को प्रसारित किया जा रहा है, जिससे आम लोगों के बीच गलत संदेश जा रहा है… दो राज्यों में दो भाषा बोलने वाले लोगों के बीच में दुश्मनी फैलाने हेतु एक सोची-समझी साजिश के तहत यह कृत्य किया जा रहा है.’

इस एफआईआर में चार नामजद आरोपी बनाए गए हैं, जिनमें एक नाम मनीष कश्यप का भी नाम है. ईओडब्ल्यू एसपी सुशील कुमार ने द वायर  को बताया कि मामले में दो आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जबकि मनीष कश्यप एवं एक अन्य आरोपी की गिरफ्तारी के लिए अदालत से वॉरंट मिल चुका है और एक टीम का गठन किया गया है, जिसके द्वारा अन्य राज्यों में उनकी गिरफ्तारी हेतु छापेमारी की जा रही है.

चार नामजद आरोपियों के अतिरिक्त एफआईआर में बिहार के कई यूट्यूब चैनलों के सोशल मीडिया पोस्ट/वीडियो के लिंक भी दिए गए हैं. कई सोशल मीडिया एकाउंट से किए गए विवादित पोस्ट के भी लिंक हैं. कश्यप से जुड़े चार यूआरएल लिंक का भी विशेष तौर पर जिक्र किया गया है.

इस एफआईआर में बिहार भाजपा के नाम का भी उल्लेख अपने ट्विटर एकाउंट (@BJP4Bihar) से भ्रामक सामग्री पोस्ट करने के चलते है. एफआईआर में उसके तीन ट्विटर लिंक दिए गए हैं, जो अब डिलीट किए जा चुके हैं.

बिहार पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में बिहार भाजपा के ट्विटर खाते से किए गए आपत्तिजनक पोस्ट्स के लिंक. (फोटो: एफआईआर का स्क्रीनशॉट)

एसपी सुशील कुमार कहते हैं, ‘इन सभी लिंक को सत्यापित किया जा रहा है. जो भी इनके पीछे हैं, उनके खिलाफ भी समान धाराओं में कार्रवाई की जाएगी.’

एफआईआर में आरोपियों के ऊपर आईपीसी की धारा 153 [दंगा भड़काने के लिए उकसाना], 153(ए) [धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देकर सद्भाव बिगाड़ना], 153(बी) [राष्ट्रीय एकता के खिलाफ प्रभाव डालने वाले कृत्य], 505(1)(बी) [किसी कथन या सूचना को इस आशय से आगे बढ़ाना जिससे व्यक्ति राज्य या सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित हो], 505(1)(सी) [एक वर्ग या समुदाय को दूसरे वर्ग या समुदाय के खिलाफ अपराध करने के लिए उकसाना], 468 [छल के उद्देश्य से कूटरचित दस्तावेज तैयार करना], 471 [कूटरचित दस्तावेज या इलेक्ट्रोनिक अभिलेख को जानबूझकर कपटपूर्वक असली के तौर पर इस्तेमाल करना], 120(बी) [आपराधिक साजिश] और आईटी अधिनियम की धारा 67 [आपत्तिजनक पोस्ट करना] के तहत मामला दर्ज किया गया है.

मनीष कश्यप के ख़िलाफ़ दर्ज दूसरी एफआईआर की सामग्री

मनीष कश्यप के ख़िलाफ़ दूसरी एफआईआर 10 मार्च को दर्ज की गई. इसकी सामग्री और भी गंभीर एवं चिंताजनक है कि किस तरह पत्रकारिता की आड़ में सोशल मीडिया का सहारा लेकर लोगों के बीच नफ़रत की फसल बोने के लिए काल्पनिक किरदार गढ़े गए और उन्हें वास्तविक पीड़ितों के तौर पर पेश किया गया.

6  मार्च को बीएनआर न्यूज रिपोर्टर हनी (BNR News Reporter Honey) नामक यूट्यूब चैनल पर कुछ वीडियो अपलोड किए गए, जिनमें दो युवकों को घायल अवस्था में तमिलनाडु के एक कमरे में दिखाया गया.

वीडियो में युवकों ने दावा किया कि ‘उनके हिंदी भाषी होने के कारण उन पर तमिलनाडु में चाकू और लोहे की रॉड से जानलेवा हमला किया गया. वे तब से इस कमरे में छिपे हैं और बिहार वापस जाना चाहते हैं.’

यह और इस जैसे ही अन्य वीडियो पड़ताल में फर्जी पाए गए, जिसके बाद चैनल संचालक ने एक डिस्क्लेमर के माध्यम से इन्हें ‘एंटरटेनमेंट’ के लिए बनाया गया करार दे दिया.

इस वीडियो का लिंक मनीष कश्यप ने 8 मार्च को अपने ट्विटर एकाउंट से साझा करते हुए बिहार के उपमुख्यमंत्री से सवाल पूछे.

मनीष द्वारा ट्विटर पर डाले गए उस पोस्ट का स्क्रीनशॉट जिसमें दो लोगों को मरहम-पट्टी करके फर्जी मजदूर के तौर पर पेश किया गया है. अब मनीष का यह एकाउंट ट्विटर से डिलीट हो गया है.

तमिलनाडु पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए ट्विटर पर ही इसे एक क्लिप (जिसमें स्वयं को पीड़ित बताने वाले शख्स हंसी-ठिठोली कर रहा था) के माध्यम से फर्जी साबित करते हुए क़ानूनी कार्रवाई की बात कही.

बिहार पुलिस ने इस संबंध में दर्ज अपनी एफआईआर में मनीष समेत चार लोगों को आरोपी बनाया है. अन्य तीन आरोपी बीएनआर न्यूज हनी यूट्यूब चैनल के संचालक राकेश रंजन कुमार सिंह, जनता प्लस यूट्यूब चैनल के मालिक अनिल कुमार यादव और आदित्य कुमार नामक व्यक्ति हैं.

इस एफआईआर में आईपीसी की कुछ धाराएं तो वही हैं जो पहली एफआईआर में थीं, जबकि धारा 467 (जालसाजी) जोड़ी गई है. वहीं, आरोपियों के ख़िलाफ़ आईटी अधिनियम की धारा 66 [कंप्यूटर संबंधी अपराध] और 66(डी) [कंप्यूटर संसाधन का उपयोग करके प्रतिरूपण द्वारा छल करने के लिए दंड] भी लगाई गई हैं.

पुलिस का कहना है कि उक्त वीडियो ‘बीएनआर न्यूज रिपोर्टर हनी’ के संचालक राकेश रंजन कुमार ने बनाया जाना स्वीकारा है, जो उन्होंने पटना के जक्कनपुर स्थित बंगाली कॉलोनी में एक किराए के मकान में शूट किया था. मकान मालिक ने भी इसकी पुष्टि की है. इस वीडियो में घायल मजदूरों के रूप में दिखाई दे रहे दो शख्स अनिल कुमार यादव और आदित्य कुमार हैं.

रोचक बात यह है कि अनिल कुमार यादव भी ‘जनता प्लस’ नाम से एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं और खुद को पत्रकार बताते हैं.

पुलिस की एफआईआर में उल्लेख है कि यह वीडियो बनाने के लिए राकेश रंजन को मनीष कश्यप ने ही प्रेरित किया था. मामले में राकेश रंजन की गिरफ्तारी हो चुकी है, बाकी तीन फरार हैं.

साजिश का भांडाफोड़ होने के बाद से मनीष का ट्विटर एकाउंट बंद है. वहीं, ‘बीएनआर न्यूज रिपोर्टर हनी’ ने अपने फर्जी वीडियो डिलीट तो नहीं किए हैं लेकिन वीडियो के नीचे लिखे विवरण में कुछ ‘डिस्क्लेमर’ जोड़ दिए हैं, जो बेहद संवेदनहीन और आपत्तिजनक हैं.

वीडियो के डिस्क्लेमर (तस्वीर में ऊपर देखें) में टूटी-फूटी अंग्रेजी में लिखा गया है, ‘यह वीडियो एक प्रसिद्ध डिजिटल न्यूज चैनल के वास्तविक वीडियोज से प्रेरित है. हमने काल्पनिक सामग्री तैयार की है जो वायरल वीडियोज के आधार पर है. हमारा एकमात्र मकसद काल्पनिक तरीके से वायरल वीडियो के बारे में आपको जानकारी और सूचना देना है. इन्हें गंभीरता से न लें.’

नीचे लिखा गया है, ‘ये वीडियो एंटरटेनमेंट के लिए बनाया गया है. दिल पे न लें.’

खास बात यह है कि भले ही यह वीडियो डिस्क्लेमर के साथ यूट्यूब पर मौजूद हों लेकिन जिन बिहारी श्रमिकों के बीच इन वीडियो के माध्यम से दहशत फैलाई गई थी, वे अंग्रेजी नहीं जानते हैं और इन वीडियो को अभी भी वास्तविक समझ सकते हैं.

मनीष कश्यप के ख़िलाफ़ तीसरी एफआईआर

बहरहाल, कश्यप के ख़िलाफ़ तीसरी एफआईआर 12 मार्च को दर्ज की गई. इसमें उनके एवं अज्ञात के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं- 153 (ए) (बी), 504 [उकसाकर लोक शांति भंग करने के इरादे से किसी का जानबूझकर अपमान करना], 505(1)(बी), 505(1)(सी), 468, 471, 201 [अपराध के साक्ष्य को गायब करना], 120(बी)- और आईटी अधिनियम की धारा 66, 66डी और 74 [किसी कपटपूर्ण या विधिविरुद्ध प्रयोजन के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण तैयार एवं प्रकाशित करना] के तहत मामला दर्ज किया गया है.

गौरतलब है कि 8 मार्च को विवादों में घिरने के बाद से मनीष कश्यप का मूल ट्विटर खाता बंद है, लेकिन दिनांक 12 मार्च को ‘मनीष कश्यप (सन ऑफ बिहार)’ नामक ट्विटर हैंडल (@manishkashyap43) से एक फोटो ट्वीट किया गया, जिसमें कश्यप को पुलिस की हथकड़ी में दिखाकर उनके गिरफ्तार होने का दावा किया गया.

पुलिस ने अपनी एफआईआर में लिखा है कि कश्यप ने अपने नए ट्विटर खाते से अपनी गिरफ्तारी का झूठा दावा करके लोगों के बीच भ्रम और पुलिस के प्रति उन्माद फैलाकर कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न करने का प्रयास किया गया.

हालिया अपडेट के मुताबिक, इस मामले के अज्ञात आरोपी की गिरफ्तारी हो चुकी है. कश्यप की गिरफ्तारी के लिए प्रयास जारी हैं. उधर मनीष के एक फेसबुक प्रोफाइल से दावा किया गया है कि तस्वीर ट्वीट करने वाला ट्विटर प्रोफाइल उनका नहीं है.

इस बीच, पुलिस ने मनीष कश्यप से जुड़े चार बैंक खातों पर कार्रवाई करते हुए 42 लाख रुपये से अधिक की राशि फ्रीज कर दी है. साथ ही, पुलिस का कहना है कि उनके खिलाफ वित्तीय अनिमितताओं के साक्ष्य मिले हैं, जिनकी जांच की जा रही है.

मनीष कश्यप: पत्रकार या आरएसएस/भाजपा से जुड़ा आदतन अपराधी?

जिन मनीष कश्यप के समर्थन में सोशल मीडिया पर हैशटैग (#ISupportManishKashyap) चलाए गए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बड़े-बड़े नेता और कार्यकर्ता खुल्लम-खुल्ला जिनके समर्थन में आ गए, जिनके खिलाफ मुकदमे पत्रकारिता पर बिहार सरकार का हमला बताए गए, उन्हीं मनीष कश्यप पर एक अदालती दस्तावेज में 8 आपराधिक मुकदमे दर्ज होने का जिक्र है, जिनमें हत्या के प्रयास और दंगे भड़काने जैसी गंभीर धाराएं शामिल हैं.

इन मुकदमों के संबंध में बिहार पुलिस का कहना है, ‘मनीष कश्यप एक आदतन अपराधी हैं. इनके विरुद्ध पूर्व में 7 कांड अंकित हैं. उनके द्वारा पुलिस पर कई बार हमला भी किया जा चुका है. पुलवामा घटना के बाद पटना में ल्हासा मार्केट में कश्मीरी दुकानदारों को पीटने के आरोप में ये जेल भी जा चुके हैं. मनीष कश्यप पूर्व में सांप्रदायिक पोस्ट करने और सांप्रदायिक गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं.’

मनीष कश्यप के खिलाफ पूर्व में दर्ज सात मुकदमों से संबंधित दस्तावेज.

14 फरवरी 2019 को कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान मारे गए थे. उस घटना के बाद मनीष कश्यप और उनके साथियों पर पटना के बुद्ध मार्ग स्थित ल्हासा मार्केट में कश्मीरी व्यापारियों से मारपीट-लूटपाट करने और दंगा भड़काने के आरोप लगे.

मनीष कश्यप और उनके अन्य दो साथियों को 23 फरवरी 2019 को पटना पुलिस की विशेष टीम ने छापेमारी कर गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के दौरान मनीष और उनके साथियों के पास से पुलिस ने मोबाइल फोन बरामद किया था, जिसमें भड़काऊ भाषण के वीडियो थे.

टीवी 9 भारतवर्ष को बीते दिनों दिए एक इंटरव्यू में जब मनीष से उनके खिलाफ दर्ज मामलों के बारे में पूछा गया कि ‘आपने ल्हासा मार्केट में कश्मीरियों को पीटा’, तो उनका जवाब था, ‘… (मैंने) ल्हासा मार्केट में कश्मीरी मुसलमानों को पीटा. कश्मीरी और कश्मीरी मुसलमानों में फर्क है, इस चीज को समझिए आप. अगर फर्क नहीं होता तो कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़कर नहीं आते.’

वे अपने कृत्य को जायज ठहराते हुए घटना का पूरा विवरण आगे देते हुए कहते हैं, ‘पुलवामा हमला हुआ था, 44 जवान शहीद हुए. उसके बाद हम लोगों ने वहां (ल्हासा मार्केट) जाकर उनसे (कश्मीरी मुसलमानों) सवाल किए कि आप यहां सुरक्षित हैं, वहां (कश्मीर में) हमारे जवानों पर हमला होता है, वे शहीद हो जाते हैं. ये सवाल कौन-सा गुनाह है? कश्मीरी मुसलमानों को पता होना चाहिए कि दूसरी जगह पर हम व्यापार कर रहे हैं और भारत के सब लोग हमें सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं, तो कश्मीर में हमारे जवानों को सुरक्षा कौन देगा? कश्मीरी अगर देशभक्त हैं तो उनका दायित्व बनता है कि जवानों पर पत्थर फेंकने वालों को सजा दें. लेकिन क्या होता है, सच्चाई सबको पता है कि जो सेकुलर गैंग है वो कुत्ते की तरह मेरे ऊपर भौंकना शुरू कर देंगे.’

उन पर दर्ज एक अन्य मामले के संदर्भ में वे स्वीकारते हैं, ‘मैंने अंग्रेजों की मूर्ति तोड़ी थी, जो चंपारण में हमारे पूर्वजों से खेती कराते थे.’

पुलिस का कहना है कि वह इस घटनाक्रम में वृहद साजिश के बिंदु पर काम कर रही है. हालांकि, बिहार के स्वतंत्र पत्रकार नीरज प्रियदर्शी जो पूर्व में बीबीसी और कई मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं, मामला सामने आने के बाद से लगातार मनीष कश्यप और उनके ‘सच तक न्यूज’ यूट्यूब चैनल से संबंधित खुलासे कर रहे हैं.

उन्होंने सोशल मीडिया पर मय दस्तावेज और कई कड़ियां आपस में जोड़ते हुए मनीष कश्यप का भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबंध स्थापित किया है, और इस संबंध के बीच की कड़ी भाजपा के बिहार प्रदेश विदेश संपर्क विभाग के संयोजक राकेश पांडेय को बताया है, जो फिलहाल लंदन में रहते हैं और ब्रावो फार्मा के सीएमडी हैं.

नीरज कहते हैं, ‘मनीष कश्यप सिर्फ सच तक न्यूज के लिए एक चेहरा हैं. असली मालिक मणि द्विवेदी उर्फ चितरंजय कुमार द्विवेदी हैं. सच तक मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के दस्तावेजों में भी त्रिपुरारी कुमार तिवारी यानी मनीष कश्यप के साथ चितरंजय कुमार द्विवेदी का नाम निदेशक के तौर पर दर्ज है. पर्दे के पीछे से इन दोनों को राकेश पांडेय संचालित करते हैं, जिनका भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से संबंध है. जो अक्सर भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ देखे जाते हैं, और यहां तक कि उनकी कंपनी ब्रावो फार्मा की उपस्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे वाले देशों में देखी जाती है. राकेश पांडेय का जुड़ाव झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा से जुड़े घोटाले से भी था, ये उनके सहयोगी थे लेकिन मामले में व्हिसल ब्लोअर बन गए थे.’

गौरतलब है कि ब्रावो फार्मा को कोविड महामारी के दौरान कोरोना टेस्ट किट सप्लाई करने का भी काम मिला था.

नीरज कहते हैं, ‘आप सच तक न्यूज, राकेश पांडेय और मनीष कश्यप के सोशल मीडिया एकाउंट खंगालेंगे तो पाएंगे कि जो भी मुद्दा राकेश पांडेय उठाते हैं या उस पर चर्चा करते हैं, मनीष कश्यप का सच तक न्यूज भी उसी समय उस मुद्दे पर सक्रिय रहता है. सच तक न्यूज की उपलब्धियों में पांडेय शरीक होते हैं, मनीष के साथ देखे जाते हैं. यब सब संयोग नहीं है.’

बहरहाल, नीरज के दावों के इतर भी देखें तो पाते हैं कि कई मुकदमों का सामना कर रहे मनीष कश्यप पर अंगुलियां उठते ही संघ-भाजपा के कई नामी नेता उनके बचाव में उतर आए.

मनीष के नाम से बने एक सोशल मीडिया प्रोफाइल पर लगी तस्वीरें उनके आरएसएस से जुड़े होने की तरफ भी इशारा भी करती हैं. उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल यह भी बताते हैं कि वे 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मनीष चनपटिया सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के बतौर उतरे थे, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की डॉ. प्राची साध्वी ने उनके समर्थन में कई ट्वीट किए. मनीष को ‘राष्ट्रवादी’ बताते हुए उनके खिलाफ दर्ज तीसरी एफआईआर को उन्होंने झूठा बता दिया.

भाजपा नेता अरुण यादव ने तो मनीष के समर्थन में एक मुहिम ही छेड़ दी और #ISupportManishKashyap के तहत ट्विटर पर अनगित ट्वीट-रीट्वीट किए.

अक्सर अपने सांप्रदायिक बयानों के चलते सुर्खियों में रहने वाले भाजपा नेता कपिल मिश्रा भी मनीष के समर्थन में आ गए.

जब इस हैशटैग वाले रीट्वीट्स से जुड़े खातों की पड़ताल करते हैं तो आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों और भाजपा के कई छोटे-बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं के नाम सामने आते हैं.

संघ-भाजपा के नेता और पदाधिकारियों द्वारा मनीष कश्यप के समर्थन में किए गए ट्वीट्स.

इस संबंध को स्थापित करने में स्वयं मनीष के शब्द भी गौर करने लायक हैं जो उन्होंने टीवी9 भारतवर्ष से कहे;

‘तमिलनाडु में भाजपा मजबूत हो रही है और वहीं के कुछ टुटपुंजिए स्थानीय नेता ये साबित करना चाहते हैं कि भाजपा केवल हिंदी भाषी बेल्ट की ही पार्टी है, वो तमिलनाडु में नहीं आ सकती. पिछली बार भाजपा का तमिलनाडु में प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा और अगर हालात सही रहे तो इस बार भाजपा तमिलनाडु में 40 से 50 सीट जीत सकती है. लेकिन, उन लोगों ने भाजपा को बैकफुट पर रखने के लिए उसे बदनाम करने ये साजिश रची.’

वहीं, ऐसी संभावनाएं भी जताई जा रही हैं कि मनीष को पुलिस से बचाने में संघ-भाजपा ने सहायता की है.

नीरज का दावा है कि मनीष कश्यप, मणि द्विवेदी और राकेश पांडेय के बीच की एक कड़ी आरएसएस से जुड़े नीलोत्पल मृणाल हैं जो मुंबई में रहते हैं और जिन्होंने सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले में सुशांत को इंसाफ दिलाने का आंदोलन छेड़ा था.

इन दावों को बल बिहार भाजपा के प्रवक्ता और भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव निखिल आनंद के एक ट्वीट से भी मिलता है.

9 मार्च को किए इस ट्वीट में आनंद ने एक फोटो साझा किया, जिसमें मनीष और नीलोत्पल मृणाल साथ दिख रहे हैं. साथ में लिखा, ‘एक खांटी बिहारी और डिजिटल या फ्रीलांस पत्रकार के तौर पर मनीष कश्यप की प्रशंसा करता हूं. सवाल पूछते रहो और जिंदादिल बने रहो. जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं. मेरे लिए मुंबई के हीरो और छोटे भाई नीलोत्पल मृणाल से आग्रह है कि मनीष कश्यप का जन्मदिन ठीक से मनवा देना.’

निखिल आनंद का ट्वीट.

कैसे ‘भाषा’ से शुरू हुई लड़ाई ‘सनातन और हिंदुत्व’ की लड़ाई बन गई?

यह विवाद ‘तमिल भाषी बनाम हिंदी भाषी’ के तौर पर सुलगाया गया था, लेकिन मनीष कश्यप को बचाते-बचाते यह ‘सनातन धर्म’ की लड़ाई बन गई. अब मनीष को सच्चा सनातनी बताते हुए उनके लिए समर्थन जुटाया जा रहा है.

मनीष कश्यप को ‘सनातनी’ बताते हुए उनके लिए मांगा जा रहा समर्थन.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद इस संबंध में सवाल करते हैं, ‘तमिलनाडु के लोग भी हिंदू हैं और बिहार के लोग भी हिंदू हैं. हिंदू बनाम हिंदू की लड़ाई में धर्म को बचाने की मुहिम कैसे शामिल हो गई?’

इसका जवाब भी वे स्वयं देते हैं, ‘अगर इस असत्य को मान भी लें कि तमिलनाडु में बिहारी श्रमिकों पर हमला हुआ तो हमलावर भी हिंदू, जिन पर हमला किया जा रहा है वो भी हिंदू, फिर इसमें हिंदू धर्म तो कहीं खतरे में नहीं आ रहा है और इसलिए हिंदुत्व या सनातन की रक्षा करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है. इसलिए ये पूछा जा सकता है कि हिंदुत्व तमिल वालों के पक्ष में क्यों नहीं खड़ा हुआ, वो भी हिंदू हैं, वो इधर से क्यों खड़ा हो गया? जवाब काफी हद तक स्पष्ट है कि हिंदुत्व की जो घृणा की राजनीति है, उसमें ‘हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान’ नारे के अंतर्गत ही काम होगा और हर किसी के खिलाफ घृणा फैलाई जाएगी जो इस नारे के भीतर नहीं आता है.’

गौर करने वाली बात है कि ट्विटर पर मनीष के समर्थन में अभियान चलाने वाली जनता की प्रोफाइल खंगाली जाए तो सामने आता है कि वह सब वही हैं जो हिंदुत्व, भाजपा और दक्षिणपंथी राजनीति को पोषित करने वाले हर मुद्दे पर अभियान छेड़ते हैं- फिर चाहे मोहम्मद पैगंबर पर विवादित टिप्पणी करने वालीं भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा के पक्ष में आंदोलन हो, बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का समर्थन करना हो, जेएनयू के खिलाफ मुहिम छेड़नी हो या पठान फिल्म और बॉलीवुड का बॉयकॉट करना हो.

पत्रकारिता के नाम पर नफ़रत की खेती

पूरे प्रकरण में केवल मनीष कश्यप ही इकलौते यूट्यूबर नहीं हैं जिन्होंने दो राज्यों के लोगों के बीच भ्रामक दावों के साथ नफरत का बीज बोने का प्रयास किया, मामले में प्रयास न्यूज (@PrayasNews) के संचालक राकेश तिवारी और ‘बीएनआर न्यूज रिपोर्टर हनी’ के संचालक राकेश रंजन कुमार सिंह गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जबकि ‘जनता प्लस’ यूट्यूब चैनल के मालिक अनिल कुमार यादव फरार हैं.

वहीं, पुलिस ने एफआईआर में जिन लिंक्स का जिक्र किया है और उनके बारे में छानबीन कर रही है, उनमें ‘सच तक नंबर 1, आज की दुनिया, टाइम्स ऑफ अयोध्या’ नामक यूट्यूब समाचार चैनल भी शामिल हैं.

बिहार के स्वतंत्र पत्रकार उमेश कुमार राय कहते हैं, ‘ये चैनल तो बस उदाहरण हैं, बिहार में यूट्यूबरों की बाढ़ आ गई है क्योंकि इसमें पैसा बहुत है और लोग कुछ भी करने तैयार हैं. लोग उत्तर प्रदेश से आकर यहां चैनल (टाइम्स ऑफ अयोध्या) चला रहे हैं और सफल हुए जा रहे हैं क्योंकि यहां सरकार भी सख्त नहीं है. अगर तमिलनाडु सरकार का दबाव नहीं होता, तो मनीष कश्यप के खिलाफ भी कुछ नहीं होता.’

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा कहते हैं, ‘सरकार ने जिस तरह सुनियोजित तरीके से मुख्यधारा के मीडिया-  प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल- को नियंत्रित कर लिया, उस स्थिति में सच जानने के लिए वैकल्पिक माध्यम के तौर पर लोगों ने यूट्यूब का रुख किया. सबसे ज्यादा प्रसार वाले यूट्यूब चैनल सरकार की नीतियों को कटघरे में खड़ा करते थे, इसलिए जब सरकार को लगा कि हम कहीं न कहीं एक्सपोज हो रहे हैं तो उन्होंने भी यूट्यूबर को सुरक्षा कवच के तौर पर पकड़ लिया.’

वे आगे कहते हैं, ‘अनपढ़ गरीब लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा करके राज्यों के बीच सामाजिक तनाव खड़ा करना सरकार की अनुमति और एजेंडा के बिना नहीं चल सकता. यूट्यूबर्स के इस तरह के फर्जीवाड़े को रोकने की सरकार से उम्मीद नहीं कर सकते, सरकार तो खुद पार्टी है, उसके एजेंट मनीष कश्यप जैसों को सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं, इसलिए समाज को ही आगे आना होगा. साथ ही, अदालतें मामले में सख्ती बरतें और गिरफ्तारी के आदेश जारी करें. मुझे ताज्जुब नहीं होगा यदि मनीष कश्यप को देश से भगा दिया जाए.’

अपूर्वानंद भी इस बात से इत्तेफाक रखते हुए जोड़ते हैं, ‘एक यूट्यूबर पूरा षड्यंत्र रच रहा है और वह उजागर हो जाने के बाद भी जिद पर अड़ा है. ये बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है और ये पहली बार नहीं हुआ है. पहले भी इस तरह के वीडियो तैयार किए गए हैं और चारों तरफ प्रसारित किए गए हैं. तब इनका मकसद बहुत स्पष्ट होता था, मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंदुओं में गलतफहमी फैलाना. अब ये हो गया है कि तमिलनाडु या केरल जैसे गैर-हिंदी भाषी और विपक्ष शासित राज्यों के विरुद्ध हिंदी भाषी लोगों में नफरत भरी जाए.’

वे कहते हैं, ‘अब प्रश्न उठता है कि इस पर लगाम कैसे कसें? अगर हम किसी कानून की बात करेंगे तो उसका दुरुपयोग बहुत स्पष्ट है क्योंकि इस वक्त कानून लागू करने का काम जिनके पास है, वे स्वयं इस प्रकार का मिथ्या और घृणा प्रचार करते हैं. अत: वे इस कानून का इस्तेमाल सही खबर देने वालों के खिलाफ करेंगे, जैसा कि मोहम्मद जुबैर के साथ किया. कार्रवाई उन पर होगी, जो असत्य को उजागर कर रहे हैं. उन पर नहीं होगी जो असत्य फैला रहे हैं. इसलिए समाधान यही है कि एक स्वतंत्र निकाय हो, जिसे मीडिया के लोग ही चलाएं.’

बहरहाल, एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इस मामले में सिर्फ यूट्यूबर्स ही नहीं भ्रामक दावों और दुष्प्रचार में इंडिया टुडे समूह के ‘बिहार तक’, न्यूज फॉर नेशन, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण जैसे बड़े नाम भी पुलिस के निशाने पर आए हैं.