पिछले पांच वर्षों में आईआईटी के 33 छात्रों ने आत्महत्या की

सरकार ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा है कि आईआईटी, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) में 2018-2023 की अवधि के दौरान आत्महत्या के कुल 61 मामले दर्ज किए गए. आत्महत्या के आधे से अधिक मामले आईआईटी में सामने आए हैं. इसके बाद एनआईटी और आईआईएम का नंबर आता है.

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आईआईटी खड़गपुर (फाइल फोटो साभार: Photo: iitkgp.ac.in)

सरकार ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा है कि आईआईटी, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) में 2018-2023 की अवधि के दौरान आत्महत्या के कुल 61 मामले दर्ज किए गए. आत्महत्या के आधे से अधिक मामले आईआईटी में सामने आए हैं. इसके बाद एनआईटी और आईआईएम का नंबर आता है.

आईआईटी खड़गपुर (फाइल फोटो साभार: Photo: iitkgp.ac.in)

नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय द्वारा बीते बुधवार को राज्यसभा में बताया कि साल 2018 के बाद से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में 33 छात्रों की आत्महत्या के कारण मौत हुई है.

कुल मिलाकर आईआईटी, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) में इस अवधि के दौरान आत्महत्या के 61 मामले दर्ज किए गए. इस तरह आत्महत्या के आधे से अधिक मामले आईआईटी में सामने आए हैं. इसके बाद एनआईटी (24) और आईआईएम (4) का नंबर आता है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 2018-2023 की अवधि के ये आंकड़े कांग्रेस के राज्यसभा सांसद एल. हनुमंथैया के एक सवाल के जवाब में सरकार की ओर से साझा किए गए.

विभिन्न संस्थानों में साल दर साल छात्रों की आत्महत्या के आंकड़े. (स्रोत: राज्यसभा)

शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार के लिखित जवाब के अनुसार, ‘अकादमिक तनाव, पारिवारिक कारण, व्यक्तिगत कारण, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे आदि आत्महत्या के कुछ कारणों में से हैं.’

रिपोर्ट के अनुसार, यह स्पष्ट नहीं है कि बीते 14 मार्च को आईआईटी मद्रास में एक बीटेक छात्र की आत्महत्या से हुई मौत को सरकारी आंकड़ों में शामिल किया गया है या नहीं.

पिछले महीने दूसरे वर्ष के एक शोध छात्र ने भी आईआईटी मद्रास परिसर में अपना जीवन समाप्त कर लिया था, जबकि  बी.टेक (केमिकल) के पहले वर्ष के एक दलित छात्र दर्शन सोलंकी ने आईआईटी बॉम्बे में आत्महत्या कर ली थी. उनकी मौत ​के बाद परिवार ने परिसर में जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया था.

लगातार जारी आत्महत्याओं ने प्रमुख संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य और जाति आधारित भेदभाव की स्थिति पर बहस शुरू कर दी है. दिसंबर 2021 में सरकार ने लोकसभा को सूचित किया था कि 2014 और 2021 के बीच केंद्र सरकार के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकित 122 छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई थी.

इन 122 छात्रों में से 24 अनुसूचित जाति, तीन अनुसूचित जनजाति और 41 ओबीसी समुदाय के छात्र थे.

छात्रों की आत्महत्या के मूल कारण को दूर करने के लिए किए गए उपायों के बारे में पूछे जाने पर सरकार ने सदन को लिखित जवाब में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में ‘संस्थानों में तनाव और भावनात्मक समायोजन से निपटने के लिए परामर्श प्रणाली के प्रावधान हैं.’

सरकार के जवाब के अनुसार, ‘स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम कार्य योजना को परिचालित किया गया है. मंत्रालय ने शैक्षणिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों हेतु साथियों की सहायता से सीखना, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं.’

इसके मुताबिक, ‘मनोदर्पण नामक भारत सरकार की पहल में अनेक गतिविधियां शामिल हैं, ताकि छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए कोविड-19 प्रकोप के दौरान और उसके बाद मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान की जा सके.

आगे कहा गया, ‘शिक्षा मंत्रालय ने संस्थानों को इस प्रणाली को और अधिक सुदृढ़ करने की भी सलाह दी है, जिसमें आत्महत्या के संभावित कारणों को दूर करने के लिए रोकथाम, पता लगाने और उपचारात्मक उपाय शामिल होंगे.’

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