इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अडानी समूह के शेयर्स में मुख्य हिस्सा रखने वाले चार फंड्स में से एक- मॉरीशस की एलारा इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड समूह की एक रक्षा कंपनी की सह-मालिक है, जिसका केंद्र सरकार के साथ 590 करोड़ रुपये का एक अनुबंध भी है.
नई दिल्ली: अडानी समूह के शेयर्स में मुख्य हिस्सा रखने वाले चार फंड्स में से एक- मॉरीशस की एलारा इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड इस समूह की एक रक्षा कंपनी में एक प्रमोटर इकाई भी है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि इस रक्षा कंपनी का केंद्र सरकार के साथ 590 करोड़ रुपये का एक अनुबंध भी है.
एलारा आईओएफ एलारा कैपिटल द्वारा चलाए जाने वाला एक वेंचर कैपिटल फंड है.
2003 में बनी बेंगलुरु स्थित अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड (एडीटीपीएल) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ मिलकर काम करती है. 2019 में इसे अडानी समूह द्वारा कथित तौर पर अधिग्रहित किया गया था. हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अडानी समूह के साथ एलारा भी इसकी सह-मालिक है.
मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी महीने में आई अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग द्वारा अडानी समूहों पर लगाए गए आरोपों में से एक यह भी था कि एलारा समेत तीन फंड्स अडानी समूह के शेयरों के स्टॉक में हेरफेर और छद्म कारोबारों में लगे हुए थे.
इससे पहले 2021 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि एलारा आईओएफ की 97 फीसदी नेटवर्थ अडानी की कंपनियों से आती है. इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि बीते तीन सालों में इसके हिस्से को काफी कम करने के बाद भी तीन अडानी फर्मों में एलारा आईओएफ की हिस्सेदारी दिसंबर 2022 में 9,000 करोड़ रुपये या इसके कुल कोष के 96% से अधिक है.
अख़बार के मुताबिक, 31 दिसंबर, 2022 तक, एलारा आईओएफ के पास अडानी एंटरप्राइज़ का 1.6%, अडानी ट्रांसमिशन का 3.62% और अडानी टोटल का 1.62% हिस्सा था.
जनवरी 2021 में केयर रेटिंग्स की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, एडीटीपीएल अडानी डिफेंस की सहायक कंपनी है.
कौन किस कंपनी का मालिक!
अडानी समूह के एक प्रवक्ता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि एडीटीपीएल में सबसे बड़े प्रमोटर वसाका प्रमोटर्स एंड डेवलपर्स हैं. हालांकि, अख़बार द्वारा उद्धृत रिकॉर्ड से पता चलता है कि अडानी समूह और एलारा के पास बेंगलुरु की इस कंपनी में बहुमत की हिस्सेदारी (51.65%) है.
प्रवक्ता ने अख़बार से कहा, ‘2017 में अडानी डिफेंस उन कंपनियों की तलाश में था जो भारत में रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ-साथ एयरो-स्ट्रक्चर क्षमता, दोनों से सकें. अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज में इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ-साथ एयरोस्ट्रक्चर दोनों की क्षमता थी. अडानी डिफेंस ने 2018 में एडीटीपीएल में निवेश किया था… अडानी डिफेंस ने 26 प्रतिशत हिस्सेदारी ली थी और कंपनी को अगले स्तर तक बढ़ाने के लिए प्राथमिक धन का निवेश किया था. एलारा इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड की अल्पांश हिस्सेदारी 0.53% है. सबसे बड़े प्रमोटर वसाका प्रमोटर्स एंड डेवलपर्स हैं.’
हालांकि, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए अखबार ने बताया कि एलारा आईओएफ ने 40 करोड़ रुपये में वसाका में 44.3% हिस्सेदारी खरीदी थी और 5 नवंबर, 2018 को इसका सबसे बड़ा शेयरधारक बन गया.
रिपोर्ट में आगे बताया गया है, ‘एलारा आईओएफ ने 1 दिसंबर, 2018 को 7.62 करोड़ रुपये में एडीटीपीएल में सीधे 0.53% खरीदा. असल में, एलारा आईओएफ की एडीटीपीएल में लगभग 26% (25.65%) हिस्सेदारी है.’
खबर के मुताबिक, इसके बाद 13 दिसंबर, 2018 को अडानी डिफेंस ने एडीटीपीएल का 26% अधिग्रहण करने के लिए 400 करोड़ रुपये का निवेश किया. इससे कंपनी का मूल्य लगभग 1,538 करोड़ रुपये आंका गया. इस प्रकार, एडीटीपीएल में अडानी और एलारा की संयुक्त रूप से 51.65% यानी बहुमत हिस्सेदारी है.
बाद में, कंपनी ने अडानी डिफेंस को वसाका- जिसमें एलारा आईओएफ 44.3% हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा शेयरधारक है- के साथ कर्नल एचएस शंकर एक प्रमोटर बनाया.
वासाका प्रमोटर्स एंड डेवलपर्स को 1995 और 2006 में निगमित हुई थी. तब से इसकी शेयरधारिता बदल गई है.
31 मार्च 2022 के अंत में वसाका की शेयरधारिता इस प्रकार थी: एलारा आईओएफ (44.3%), अमरजीत सिंह बख्शी द्वारा स्थापित सफदरजंग एस्टेट्स (22.38%), अमरजीत सिंह बख्शी (1.38%), एआर मुरुगप्पन (7.99%) और एम. सुब्रमण्यम (7.99%), वेलनेस चैरिटेबल ट्रस्ट (15.97%).
मुरुगप्पन और एम. सुब्रमण्यम शुरू से ही कंपनी के शेयरधारक रहे हैं.
उधर 31 मार्च, 2022 तक, एडीटीपीएल की शेयरधारिता इस प्रकार थी: वसाका 56.57%, अडानी डिफेंस 26%, कर्नल शंकर: 0.019%, एलारा आईओएफ 0.53%, वन अर्थ कैपिटल 10.3% और अल्फा डिजाइन ईएसओपी ट्रस्ट 5.8%.
गलत दांव लगाने का इतिहास
2018 में फर्स्टपोस्ट ने एक रिपोर्ट में बताया था कि एलारा और दो अन्य फंड कथित ‘राउंड-ट्रिपिंग’ के लिए कम से कम एक जांच के अधीन हैं. यह प्रक्रिया, जो भारत में गैर-क़ानूनी मानी जाती है, में धन को आम तौर पर पहले एक शेल कंपनी को ट्रांसफर कर दिया जाता है, फिर इसे लौटाया जाता है, जिससे ऐसा लगता है कि धन एक वैध स्रोत से आया है. रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अधिकारियों को यह पता लगाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी कि अंतत: यह पैसा किसका था.
रिपोर्ट में कहा गया था कि एलारा इंडिया ऑपर्च्युनिटीज फंड ने अन्य दो फंडों के साथ उन कंपनियों में निवेश किया, जिनके संस्थापक भारत से भाग गए थे और कथित तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग के लिए उनकी जांच की जा रही है.
2018 की इस फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पैसे के अंतिम लाभार्थी की पहचान करने के लिए संदेसरा जांच के हिस्से के रूप में एलारा इंडिया और अन्य दो फंड- क्रेस्टा और अल्बुला की जांच की थी.
विपक्ष ने साधा निशाना
बुधवार को इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट सामने आने के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सरकार पर सवाल उठाया.
India's missile & radar upgrade contract is given to a company owned by Adani & a dubious foreign entity called Elara.
Who controls Elara? Why is India's national security being compromised by giving control of strategic defence equipment to unknown foreign entities? pic.twitter.com/DJIw7rxPB8
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 15, 2023
उन्होंने एक ट्वीट में सवाल किया, ‘भारत का मिसाइल और रडार अपग्रेड अनुबंध अडानी के स्वामित्व वाली कंपनी और एलारा नाम की एक संदिग्ध विदेशी संस्था को दिया गया है. एलारा को कौन नियंत्रित करता है? अज्ञात विदेशी संस्थाओं को रणनीतिक रक्षा उपकरणों का नियंत्रण देकर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता क्यों किया जा रहा है?
The “Chhupa Rustom” category award at the Oscars goes to @DRDO_India and @PIBHomeAffairs.
Happy to have uknown foreign funds controlling sensitive defense contracts! Only for their best friend Mr Adani. #BJP4Oscars pic.twitter.com/HtQlQa6IOy— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) March 15, 2023
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि यह जानना काफी चिंताजनक है कि संवेदनशील रक्षा अनुबंधों को अज्ञात विदेशी फंड नियंत्रित कर रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं. इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.
बता दें कि भारत में विपक्षी दल लगातार इन आरोपों की जेपीसी जांच की मांग कर रहे हैं और इसे लेकर शीर्ष अदालत में याचिकाएं भी दायर की गई हैं.
पिछले महीने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट और उसके परिणामों को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि अदालत अपनी ख़ुद की एक जांच समिति नियुक्त करेगी. इस दौरान केंद्र द्वारा सीलबंद लिफाफे में सुझाए गए समिति के सदस्यों के नामों को अपारदर्शी बताकर शीर्ष अदालत ने ख़ारिज कर दिया था.
इसके बाद मार्च महीने की शुरुआत में कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता में जांच समिति बनाई. इसमें बैंकर केवी कामथ और ओपी भट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी, सेवानिवृत्त जज जेपी देवधर और अधिवक्ता सोमशेखर सुंदरसन शामिल हैं. साथ ही, कोर्ट ने बाजार नियामक सेबी से भी अपनी जांच दो महीनों में पूरी करके रिपोर्ट सौंपने को कहा है.
इस बीच, सोमवार (14 मार्च) को लोकसभा में केंद्र ने बताया था कि अडानी समूह के ख़िलाफ़ सिर्फ सेबी ही जांच कर रहा है, सरकार अपनी ओर से कोई अन्य जांच नहीं करा रही है.