सील कवर पूरी तरह से न्यायिक सिद्धांतों के ख़िलाफ़: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने वन रैंक, वन पेंशन भुगतान मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा सील कवर में सौंपे गए दस्तावेज़ लेने से इनकार कर दिया. सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह सवाल करते हुए कि आदेश अनुपालन संबंधी नोट में क्या गोपनीय है, कहा कि कोर्ट में सील कवर की प्रथा को ख़त्म करना होगा. यह मूल रूप से निष्पक्ष न्याय की बुनियादी प्रक्रिया के ख़िलाफ़ है.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (स्क्रीनग्रैब साभार: यूट्यूब)

सुप्रीम कोर्ट ने वन रैंक, वन पेंशन भुगतान मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा सील कवर में सौंपे गए दस्तावेज़ लेने से इनकार कर दिया. सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह सवाल करते हुए कि आदेश अनुपालन संबंधी नोट में क्या गोपनीय है, कहा कि कोर्ट में सील कवर की प्रथा को ख़त्म करना होगा. यह मूल रूप से निष्पक्ष न्याय की बुनियादी प्रक्रिया के ख़िलाफ़ है.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (स्क्रीनग्रैब साभार: यूट्यूब)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वन रैंक, वन पेंशन भुगतान मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार द्वारा सील कवर में सौंपे गए दस्तावेज लेने से इनकार कर दिया. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मैं व्यक्तिगत तौर पर सील कवर के खिलाफ हूं. अदालत में पारदर्शिता होनी चाहिए.’

द हिंदू के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘यह आदेशों के अनुपालन के बारे में है, इसमें क्या गोपनीय है? हमें सुप्रीम कोर्ट में इस सील कवर की प्रथा को खत्म करना होगा. यह मूल रूप से निष्पक्ष न्याय की बुनियादी प्रक्रिया के खिलाफ है.’

सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला ने यह टिप्पणी पूर्व सैनिकों को ओआरओपी के बकाया भुगतान पर इंडियन एक्स-सर्विसमेन मूवमेंट (आईईएसएम) की याचिका पर सुनवाई के दौरान की.

अदालत ने यह भी बताया कि ओआरओपी योजना पर 2022 के फैसले का पालन करने के लिए केंद्र सरकार कर्तव्यबद्ध थी और उसे 28 फरवरी, 2024 तक तीन समान किश्तों में 10-11 लाख पेंशनरों का बकाया चुकाने के लिए कहा गया था.

हाल की सुनवाई में नरेंद्र मोदी सरकार को ओआरओपी मामले पर शीर्ष अदालत की आलोचना का सामना करना पड़ा था, जब रक्षा मंत्रालय ने इस भुगतान को चार किश्तों में देने संबंधी नोट जारी किया था. अदालत ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि मंत्रालय इस तरह कानून हाथ में नहीं ले सकता. कोर्ट ने मंत्रालय से उक्त पत्र को वापस लेने को कहते हुए निर्देश दिया था कि वह ओआरओपी के तहत भुगतान किए जाने वाले बकाया की सही राशि, इसके भुगतान के तरीके आदि बताते हुए एक नोट दाखिल करे. पीठ ने यह भी जोड़ा था कि यह दुखद है कि चार लाख सेवानिवृत्त रक्षा कर्मी पहले ही उनकी पेंशन की प्रतीक्षा में जान गंवा चुके हैं.

लाइव लॉ के अनुसार, सोमवार की सुनवाई में सीजेआई ने अटॉर्नी जनरल से कहा, ‘हम सीलबंद कवर को खत्म करना चाहते हैं. अगर सुप्रीम कोर्ट इसका पालन करता है, तो हाईकोर्ट भी इसका पालन करेंगे. उन्होंने अटॉर्नी जनरल से वरिष्ठ अधिवक्ता हुज़ेफ़ा अहमदी (जो पूर्व सैनिकों की ओर से पेश हो रहे हैं) के साथ नोट साझा करने के लिए भी कहा.

उन्होंने कहा, ‘सीलबंद लिफाफे पूरी तरह से स्थापित न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं और इसका सहारा तभी लिया जा सकता है जब यह किसी स्रोत या किसी के जीवन को खतरे में डालने के बारे में हो.’

ज्ञात हो कि पिछले कुछ सालों से जानकारी सार्वजनिक करके किसी भी तरह की पड़ताल या सवालों से बचने के लिए केंद्र सरकार सील कवर इस्तेमाल करती रही है. हालांकि, कई महत्वपूर्ण मामलों जैसे- रफाल सौदे को चुनौती, असम एनआरसी, चुनावी बॉन्ड, अयोध्या का बाबरी-रामजन्मभूमि विवाद, गुजरात पुलिस का ‘फर्जी’ एनकाउंटर मामला, नरेंद्र मोदी की बायोपिक रिलीज़ होने वाला केस, सीजेआई रंजन गोगोई पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों का मामला, भीमा-कोरेगांव केस और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम की अग्रिम जमानत केस- में सुप्रीम कोर्ट ने सील कवर में दिए गए दस्तावेज स्वीकार किए हैं.

‘सीलबंद कवर’ की शुरुआत ‘सेवा या प्रशासनिक मामलों’ के संबंध थी, जहां अधिकारियों की प्रतिष्ठा बचाने के लिए व्यक्तिगत कर्मियों के आधिकारिक सेवा रिकॉर्ड और पदोन्नति असेसमेंट सीलबंद लिफाफे में पेश किए जाते थे. अदालत आज भी यौन उत्पीड़न के मामलों में सर्वाइवर की पहचान की रक्षा के लिए दस्तावेज गोपनीय तरीके से लेती है.

पिछले साल के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीलबंद कवर प्रक्रिया एक ‘खतरनाक मिसाल’ है क्योंकि यह ‘फैसले की प्रक्रिया को अस्पष्ट और अपारदर्शी’ बनाती है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली ने 20 अक्टूबर, 2022 को दिए गए एक फैसले में कहा था कि यह प्रक्रिया न्याय देने की प्रणाली के कामकाज को प्रभावित करती है और प्राकृतिक न्याय का गंभीर उल्लंघन है.

उनसे पहले पिछले साल मार्च में तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना ने भी सीलबंद लिफाफों में दलीलें दाखिल करने को नामंजूर कर दिया था.

सोमवार को ओआरओपी मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को फरवरी 2024 तक बकाया राशि का भुगतान करने का भी निर्देश दिया है. अदालत ने कहा कि सरकार 70 और उससे अधिक आयु के सेवानिवृत्त सैनिकों को 30 जून, 2023 तक ओआरओपी का भुगतान करे और 30 अप्रैल तक छह लाख पारिवारिक पेंशनरों और वीरता पुरस्कार विजेता को बकाया राशि का भुगतान करे.

bandarqq pkv games dominoqq slot garansi slot pulsa slot bonus mpo