शहरों और गांवों में समान कार्य के लिए महिलाओं की मज़दूरी पुरुषों की तुलना में कम: रिपोर्ट

राष्ट्रीय सांख्यिकी सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा किए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि अधिकांश राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में मज़दूरी में लैंगिक अंतर बढ़ गया है. दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में पिछले एक दशक में इस अंतर को कम होते देखा गया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Eric Parker/Flickr)

राष्ट्रीय सांख्यिकी सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा किए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि अधिकांश राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में मज़दूरी में लैंगिक अंतर बढ़ गया है. दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में पिछले एक दशक में इस अंतर को कम होते देखा गया है.

(फोटो साभार: Eric Parker/Flickr)

नई दिल्ली: ग्रामीण और शहरी भारत में समान कार्य के लिए बाजार द्वारा निर्धारित मजदूरी पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए काफी कम है.

इससे भी बुरी बात यह है कि पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर बढ़ा है, हालांकि यह शहरों में कम हुआ है.

टाइम्स ऑफ इंडिया ने राष्ट्रीय सांख्यिकी सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा जारी एक सर्वेक्षण के नतीजों के हवाले से यह जानकारी दी है. उक्त सर्वेक्षण एनएसएसओ ने एक रिपोर्ट ‘भारत में महिला और पुरुष 2022’ के रूप में जारी किया है.

यह सर्वेक्षण अप्रैल-जून 2022 के बीच हुआ था. इस दौरान विभिन्न राज्यों में ग्रामीण भारत में ‘महिला मजदूरी दर’ पुरुषों को मिलने वाली मजदूरी की तुलना में आधी से लेकर 93.7 फीसदी तक रही और शहरों में यह पुरुषों को मिलने वाली मजदूरी के आधे से थोड़ा कम से लेकर 100.8 फीसदी तक रही.

एनएसएसओ की 68वें दौर की रिपोर्ट (जुलाई 2011 – जून 2012) के साथ इस मजदूरी की तुलना से पता चलता है कि अधिकांश राज्यों में ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी में लिंग विभाजन बढ़ गया है. दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में पिछले एक दशक में इस अंतर को कम होते देखा गया है.

बड़े राज्यों की बात करें तो केरल के ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में अंतर सबसे अधिक है. ग्रामीण पुरुषों की औसत मजदूरी दर 842 रुपये प्रतिदिन है, जो देश में सबसे अधिक है. राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की महिला श्रमिकों को प्रतिदिन 434 रुपये का भुगतान किया जाता है. यह राशि बड़े राज्यों में सबसे अधिक है. यह पुरुषों की मजदूरी का केवल 51.5 फीसदी है.

दिलचस्प बात यह है कि जिन तीन राज्यों – केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश – में ग्रामीण पुरुषों के लिए उच्चतम दैनिक मजदूरी दर है, यहां भी मजदूरी में सबसे बड़ा लिंग भेद है. तीनों में महिला मजदूरी का औसत पुरुष मजदूरी का 60 फीसदी से कम है.

उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और ओडिशा में महिला ग्रामीण मजदूरी दर पुरुष श्रमिकों के 70 फीसदी से कम थी.

कर्नाटक को छोड़कर, जहां सबसे अधिक पुरुष मजदूरी दर है, अन्य पांच राज्यों में दैनिक मजदूरी 400 रुपये से कम है.

चार राज्यों – हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान – में पुरुष मजदूरी दर प्रति दिन 400 रुपये से अधिक है और लिंग विभाजन सबसे कम है (महिला मजदूरी पुरुष मजदूरी का 85 फीसदी से अधिक है). गुजरात, मध्य प्रदेश और झारखंड में भी कम लैंगिक विभाजन है (महिला मजदूरी पुरुष मजदूरी का कम से कम 80 फीसदी है). लेकिन इसका कारण यह है कि पुरुषों को भी वहां कम मजदूरी दी जा रही है, न ही महिलाएं अच्छी मजदूरी पा रही हैं.

कई राज्यों में शहरी क्षेत्र एक समान पैटर्न दिखाते हैं, क्योंकि पुरुषों के लिए उच्च मजदूरी दर लिंग विभाजन बढ़ाती दिखती है, जबकि कम मजदूरी वाले राज्यों में विभाजन कम है. एक बार फिर, शहरी मजदूरी में लैंगिक अंतर केरल में सबसे अधिक है, जहां पुरुषों की मजदूरी दर भी सबसे अधिक है.

कर्नाटक और तमिलनाडु में भी पुरुषों को ज्यादा मजदूरी मिलती है और एक बड़ा लैंगिक अंतर है. इसके विपरीत गुजरात, ओडिशा और झारखंड में मजदूरी दर सबसे कम है तो अंतर भी कम है.

ग्रामीण क्षेत्रों की तरह हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के शहरी क्षेत्र में फिर अपवाद हैं. सभी में अपेक्षाकृत उच्च मजदूरी दर के साथ-साथ पुरुषों और महिलाओं के बीच अपेक्षाकृत मजदूरी का अंतर कम है.

2011-12 के साथ तुलना करने पर पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी में लैंगिक अंतर 19 बड़े राज्यों में से 11 में बढ़ गया है. पश्चिम बंगाल, गुजरात और छत्तीसगढ़ मे अंतर 10 फीसदी अंकों से अधिक बढ़ गया है.