अडानी एंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड ने इसकी एक कंपनी मुंद्रा पेट्रोकेम लिमिटेड का काम अगली सूचना तक रोक दिया है. यह निर्णय अमेरिका की हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह पर बड़े पैमाने पर ऑडिट धोखाधड़ी और स्टॉक हेरफेर के आरोप लगाने वाली रिपोर्ट सामने आने के दो महीने बाद आया है.
नई दिल्ली: अडानी समूह के ऊपर लगे आरोपों के बीच इस कारोबारी समूह को गुजरात के मुंद्रा में लगभग 35 हजार करोड़ रुपये के पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्ट का काम रोकना पड़ा है.
यह निर्णय अमेरिका की हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह पर बड़े पैमाने पर ऑडिट धोखाधड़ी और स्टॉक हेरफेर के आरोप लगाने वाली रिपोर्ट सामने आने के दो महीने बाद आया है.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस के अनुसार, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) ने साल 2021 में कच्छ जिले में अडानी पोर्ट्स और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन की भूमि पर ग्रीनफ़ील्ड कोल-टू-पीवीसी प्लांट स्थापित करने के लिए एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी- मुंद्रा पेट्रोकेम लिमिटेड का गठन किया था. अब समूह ने विक्रेताओं और आपूर्तिकर्ताओं को ईमेल भेजे हैं, जिसमें उन्हें ‘अगली सूचना तक’ तत्काल आधार पर ‘सभी गतिविधियों को निलंबित’ करने के लिए कहा गया है.
इकाई के पास प्रति वर्ष 2,000 किलो टन की पॉली-विनाइल-क्लोराइड (पीवीसी) उत्पादन क्षमता होनी थी, जिसके लिए 3.1 मिलियन टन प्रति वर्ष कोयले की आवश्यकता थी, जिसे ऑस्ट्रेलिया, रूस और अन्य देशों से आयात किया जाना था. भारत में पीवीसी की मांग बढ़ रही है.
खबर के अनुसार प्रबंधन ने कहा है कि वह ‘विभिन्न व्यावसायिक कार्यक्षेत्रों में समूह स्तर पर कार्यान्वित की जा रही विभिन्न परियोजनाओं का पुनर्मूल्यांकन कर रहा है. भविष्य के नकदी प्रवाह और वित्त के आधार पर कुछ परियोजनाओं को इसकी निरंतरता और समयरेखा में संशोधन के लिए री-इवैल्यूएट किया जा रहा है.
एईएल के एक प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘हमारी प्रत्येक स्वतंत्र पोर्टफोलियो कंपनी की बैलेंस शीट बहुत मजबूत है. हमारे पास अग्रणी परियोजना विकास क्षमताएं, मजबूत कॉरपोरेट प्रशासन, सुरक्षित संपत्तियां, मजबूत कैश-फ्लो हैं और हमारी व्यावसायिक योजना पूरी तरह से वित्त पोषित है. हम अपने हितधारकों के लिए अपनी पहले बताई गई रणनीति के अमल को लेकर प्रतिबद्ध हैं.
इससे पहले समूह ने 7,000 करोड़ रुपये के कोयला संयंत्र की खरीद को रद्द कर दिया था और बिजली व्यापारी पीटीसी में हिस्सेदारी के लिए अपनी बोली भी वापस ले ली थी. ख़बरों में यह भी कहा गया कि समूह अंबुजा सीमेंट में अपनी हिस्सेदारी बेच रहा है – और यह पता चला कि यह कंपनी वास्तव में गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी की है.
उल्लेखनीय है कि जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं. इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.
बता दें कि भारत में विपक्षी दल लगातार इन आरोपों की जेपीसी जांच की मांग कर रहे हैं और इसे लेकर शीर्ष अदालत में याचिकाएं भी दायर की गई हैं.
पिछले महीने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट और उसके परिणामों को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि अदालत अपनी ख़ुद की एक जांच समिति नियुक्त करेगी. इस दौरान केंद्र द्वारा सीलबंद लिफाफे में सुझाए गए समिति के सदस्यों के नामों को अपारदर्शी बताकर शीर्ष अदालत ने ख़ारिज कर दिया था.
इसके बाद मार्च महीने की शुरुआत में कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता में जांच समिति बनाई. इसमें बैंकर केवी कामथ और ओपी भट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी, सेवानिवृत्त जज जेपी देवधर और अधिवक्ता सोमशेखर सुंदरसन शामिल हैं. साथ ही, कोर्ट ने बाजार नियामक सेबी से भी अपनी जांच दो महीनों में पूरी करके रिपोर्ट सौंपने को कहा है.
इस बीच, सोमवार (14 मार्च) को लोकसभा में केंद्र ने बताया था कि अडानी समूह के ख़िलाफ़ सिर्फ सेबी ही जांच कर रहा है, सरकार अपनी ओर से कोई अन्य जांच नहीं करा रही है.