सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति के समक्ष केंद्र सरकार ने जो आंकड़े रखे हैं, उनके मुताबिक़ वित्त वर्ष 2022-23 में अनुसूचित जाति के छात्रों और अन्य के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, लेकिन वास्तविक व्यय केवल 56 लाख रुपये किया गया.
नई दिल्ली: वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले नौ महीनों में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय अनुसूचित जाति के छात्रों और अन्य लोगों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लिए अपने आवंटन का केवल 0.1 फीसदी ही खर्च कर पाया. वहीं, अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लिए आवंटित राशि का आधे से भी कम खर्च कर सका.
द हिंदू के मुताबिक, यह खुलासा उन सरकारी आंकड़ों से हुआ है जो सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत किए गए थे.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग की 2023-24 के लिए अनुदान मांगों पर गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में पेश अपनी रिपोर्ट में संसदीय समिति ने यह भी बताया कि पीएम-यशस्वी योजना के तहत आवंटित 1,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का करीब 2 फीसदी ही 31 दिसंबर 2022 तक खर्च किया गया.
बता दें कि पीएम-यशस्वी योजना में अन्य पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और विमुक्त जनजाति के लिए प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है.
समिति ने कहा कि एससी छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति के मामले में सरकार आवंटित 5,660 करोड़ रुपये में से 31 दिसंबर 2022 तक सिर्फ 2500.22 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई थी. इसी समयावधि में, एससी छात्रों और अन्य के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना पर वास्तविक व्यय केवल 56 लाख रुपये किया गया, जबकि आवंटित 500 करोड़ रुपये हुए थे.
समिति ने कहा कि एससी छात्रों के लिए बनी योजनाओं में कम खर्च का कारण केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए बनी एक नई संवितरण प्रणाली के चलते हुई देरी थी, जिसमें राज्य के योगदान की आवश्यकता होती है. हालांकि, पीएम-यशस्वी योजना में भी आवंटित राशि का कम उपयोग देखा गया, जबकि यह 100 फीसदी केंद्र समर्थित योजना है.
समिति ने साथ ही कहा, ‘समिति को लगता है कि यह नई प्रणाली जिसमें राज्यों को अपना अंश पहले जारी करना होता है, उन मामलों में प्रक्रिया को धीमा कर देती है जहां विभिन्न कारणों के चलते राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अपना अंश समय पर जारी करने की स्थिति में नहीं होते. ‘
कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को अपना अंश पहले जारी नहीं करने के लिए फटकार लगाते हुए समिति ने उन छात्रों के लिए चिंता व्यक्त की जो इसके परिणाम भुगत रहे हैं और कहा, ‘विभाग (सामाजिक न्याय और अधिकारिता) को इस मुद्दे को उचित स्तर उठाना चाहिए.’
सरकार ने समिति के समक्ष कहा कि प्री-मैट्रिक योजना के तहत कम व्यय का कारण यह था कि विलय योजना के रूप में 2022-23 इसके कार्यान्वयन का पहला वर्ष था, जिसके कारण राज्य और केंद्रशासित प्रदेश सरकारें समय पर अपने छात्रवृत्ति पोर्टल स्थापित नहीं कर सकीं. इससे पहले, योजना दो भागों में विभाजित थी- एक एससी छात्रों के लिए और एक एक जोखिमपूर्ण पेशे में लगे लोगों के बच्चों के लिए. इसे एक में विलय कर दिया गया और 2022-23 से लागू किया गया.
नई प्रणाली के तहत, केंद्र लाभार्थी के आधार से जुड़े बैंक खाते में डीबीटी (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) के माध्यम से अपने हिस्से का 60 फीसदी धन भेजता है, लेकिन यह संबंधित राज्य सरकार द्वारा अपना 40 फीसदी हिस्सा जारी करने के बाद ही भेजा जाता है.
सरकार ने कहा कि इसी तरह की शुरुआती समस्याएं तब देखी गईं थीं जब साल भर पहले एससी छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति को नई भुगतान प्रणाली में स्थानांतरित किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप 2021-22 में सरकार 3,415.62 करोड़ रुपये के आवंटन में से केवल 1,978.55 करोड़ रुपये ही खर्च कर सकी.
संसदीय समिति ने उम्मीद जताई कि संबंधित राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की सरकारें ‘मिशन मोड’ में प्री-मैट्रिक योजना के कार्यान्वयन में अपनी भूमिका निभाएंगी.
समिति ने सरकार से गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में भी प्री-मैट्रिक योजना को प्रचारित करने का आह्वान किया और स्कूलों में हेल्प-डेस्क स्थापित करने, स्कूलों की प्रबंधन समितियों तक पहुंचने और सुबह की सभाओं में घोषणा करने जैसे उपायों का सुझाव दिया.