केंद्र ने संसदीय समिति को बताया- सीवर सफाई में जान गंवाने के मामले में अब तक एक दोषसिद्धि

सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति के समक्ष केंद्र सरकार ने बताया है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग अधिनियम के तहत अब तक 616 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है, जिनमें से अब तक केवल एक मामले में दोषसिद्धि हुई है.

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​​(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति के समक्ष केंद्र सरकार ने बताया है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग अधिनियम के तहत अब तक 616 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है, जिनमें से अब तक केवल एक मामले में दोषसिद्धि हुई है.

​​(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने एक संसदीय स्थायी समिति को सूचित किया है कि ऐसे 616 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है जहां ठेकेदारों ने सीवर में कार्य करने वाले श्रमिकों को सुरक्षा सामग्री और उपकरण प्रदान नहीं किए थे. सरकार ने कहा कि मैला ढोना (निषेध) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में से अब तक एक मामले में दोषसिद्धि हुई है.

द हिंदू के मुताबिक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने यह जानकारी सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत की, जिसे एक रिपोर्ट के रूप में गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में रखा गया. इसमें कहा गया है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग अधिनियम कार्यान्वयन सख्ती से किया जाना चाहिए और भ्रष्ट ठेकेदारों को तुरंत पकड़ा और दोषी ठहराया जाना चाहिए.

सरकार ने संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुत किया कि 1993 से सीवर और सेप्टिक टैंक की जोखिमपूर्ण सफाई के कारण भारत में कुल 1,035 लोगों की मौत हुई है और 836 पीड़ितों के परिवारों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 10 लाख रुपये का पूरा मुआवजा दिया गया है. इसके अतिरिक्त, 112 पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये से थोड़ा कम मिला है.

बीते फरवरी माह में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया था कि 2018 से 2022 के बीच सीवर और सेप्टिक टैंक में 308 लोगों की मौत हुई थी. तमिलनाडु में सबसे अधिक 52, इसके बाद उत्तर प्रदेश में 46 और हरियाणा में 40 लोगों की मौत के मामले सामने आए थे.

सरकार के अनुसार, इसी अवधि में महाराष्ट्र में 38, दिल्ली में 33, गुजरात में 23 और कर्नाटक में 23 लोगों की मौत सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई थी.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, अब तक 74 मृतकों के परिजनों को मुआवजा नहीं मिला है. संसदीय समिति ने सरकार से कहा है कि इन 74 लोगों के परिजनों को, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए अब तक मुआवजा नहीं मिला है, तेजी से मुआवजा जारी किया जाए.

यह पूछे जाने पर कि सीवर और सेप्टिक टैंक में प्रवेश करने वाले श्रमिकों को सुरक्षा उपकरण प्रदान करने में विफल रहने वाले ठेकेदारों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है, सामाजिक न्याय मंत्रालय के एक प्रतिनिधि ने कहा कि इस संबंध में केंद्र सरकार की जिम्मेदारी एफआईआर दर्ज हो, यह सुनिश्चित करना है.

सरकार ने कहा कि उसने ऐसे मामलों में सफलतापूर्वक 616 एफआईआर दर्ज कराई हैं जिनमें मैनुअल स्कैवेंजिंग अधिनियम के प्रावधान जोड़े गए हैं. इसके अलावा, सरकार ने कहा कि वह संबंधित प्रमुख सचिवों के साथ इन मामलों की स्थिति पर नियमित नजर रखे हुए है.

दोषसिद्धि पर सामाजिक न्याय सचिव ने कहा, ‘अब तक एक दोषसिद्धि हो चुकी है, इसलिए हमें इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना है.’ हालांकि, मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि वर्तमान में सर्वोच्च प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि तत्काल मुआवजा दिया जाए और जोखिमपूर्ण सीवर सफाई से कोई मौत न हो.

मैनुअल स्कैवेंजिंग अधिनियम के मामलों में दोषसिद्धि सुनिश्चित करने के लिए की गई कार्रवाई पर अपडेट की मांग करते हुए भाजपा सांसद रमा देवी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने रिपोर्ट में कहा कि इस संबंध में नियमों को कड़ाई से लागू किया जाए ताकि ठेकेदारों को तुरंत पकड़कर दोषी ठहराया जा सके.

मालूम हो कि बीते एक फरवरी को इस वर्ष के केंद्रीय बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई की खतरनाक प्रथाओं से बचने के लिए सरकार के 100 प्रतिशत मशीनीकृत सीवर सफाई पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया था.

उन्होंने कहा था कि सफाई को ‘मैनहोल टू मशीनहोल’ मोड में लाया जाएगा. साथ ही कहा था कि सीवर में गैस से होने वाली मौतों को रोकने के लिए शहरी स्वच्छता में मशीनों के उपयोग पर ध्यान दिया जाएगा.

देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है और आए दिन सीवर सफाई के दौरान लोगों की मौत की खबरें आती रहती हैं.

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.

27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि साल 1993 से सीवरेज कार्य (मैनहोल, सेप्टिक टैंक) में जान गंवाने वाले सभी व्यक्तियों के परिवारों की पहचान करें और उनके आधार पर परिवार के सदस्यों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए.