ईसाई समुदाय और संस्थानों को निशाना बनाकर किए जा रहे हमलों से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय से कहा है कि वह संबंधित राज्यों से ईसाइयों पर हमलों से जुड़े मामलों में की गई कार्रवाई का डेटा एकत्र करे. यह डेटा कम से कम आठ राज्यों से एकत्र किया जाना है.
नई दिल्ली: ईसाई समुदाय और संस्थानों को निशाना बनाकर किए जा रहे हमलों से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (29 मार्च) को केंद्रीय गृह मंत्रालय को ठीक दो सप्ताह का समय दिया है कि वह याचिकाकर्ता द्वारा आरोपित घटनाओं में दर्ज की गईं एफआईआर, जांच की स्थिति, गिरफ्तारी और आरोप पत्र दायर करने संबंधी डेटा इकट्ठा करे. इन घटनाओं में की गई कार्रवाई का यह डेटा कम से कम आठ राज्यों से इकट्ठा करना है.
द हिंदू के मुताबिक, भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विवरण को एकत्र करने और शीर्ष अदालत में एक रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश मंत्रालय को पिछले साल सितंबर में दिया गया था. मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि कुछ राज्यों ने जवाब देने में समय लिया.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिलक्ता कॉलिन गोंजाल्वेज ने कहा कि ईसाइयों के खिलाफ हमलों में 2022 के बाद ‘तेज वृद्धि’ देखी गई है.
उन्होंने कहा, ‘ईसाइयों पर हमला किया जाता है और ईसाइयों के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज कर ली जाती है. पादरियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है. ईसाइयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती हैं और वे जमानत पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि मीडिया के कुछ वर्गों और रैलियों में सामुदायिक घृणा का विस्फोट हुआ है.
उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने घृणा पर नजर रखने और यहां तक कि अपराधियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके इसे प्रकट होने से रोकने के लिए नोडल पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति का आदेश दिया था.
उन्होंने बताया, ‘एक भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई है.’ अदालत मामले को 14 अप्रैल को सूचीबद्ध करते हुए कहा कि वह राज्यों को औपचारिक नोटिस जारी करने से पहले गृह मंत्रालय की रिपोर्ट का इंतजार करेगी.
विचाराधीन आठ राज्य- बिहार, हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश हैं.
इन राज्यों को 2021 में हुई आपराधिक घटनाओं पर अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाई को सत्यापित करना है. राज्य इस सत्यापन रिपोर्ट को मंत्रालय को सौंपेंगे, जो इनके आधार पर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करेगा.
केंद्र द्वारा अदालत में दायर एक प्रारंभिक हलफनामे ने पहले तो इन याचिकाओं में लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि वे ‘झूठ’ और ‘चुनिंदा (सलेक्टिव) दस्तावेजों’ पर आधारित हैं. मंत्रालय ने विरोध में कहा था कि पारिवारिक झगड़ों और निजी जमीन के विवादों को भी सांप्रदायिक घटना बनाकर दिखाया जा रहा है.
गौरतलब है कि बीते दिनों मेघालय के प्रमुख ईसाई संगठनों ने भी ‘देश में ईसाई समुदाय को निशाना बनाने के बढ़ते मामलों’ पर चिंता व्यक्त करते हुए इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘गहरी चुप्पी’ पर अफसोस जताया था.
इससे पहले, बीते माह पूर्व सिविल सेवकों ने भी ‘ईसाइयों में व्याप्त डर के माहौल’ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था. ईसाई समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा और भेदभाव की घटनाओं के संदर्भ में कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के बैनर तले पूर्व सिविल सेवकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया था कि वे ईसाई समुदाय के लोगों को आश्वस्त करें कि उनके साथ कार्यपालिका और कानून समान और निष्पक्ष व्यवहार करेंगे.
उन्होंने बताया था कि यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के अनुसार, ईसाइयों पर हमले 2020 के 279 से बढ़कर 2021 में 505 और 2022 में (अक्टूबर तक) 511 हो गए थे.
गौरतलब है कि याचिका में 2021 की घटनाओं का जिक्र है. संयोगवश, 2021 में ईसाइयों पर हमलों के संबंध में द वायर की एक रिपोर्ट बताती है कि 2021 के शुरुआती 9 महीनों में ही ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के देश में 300 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे.