दिल्ली: केंद्र की नीतियों के ख़िलाफ़ मज़दूरों और किसानों ने रैली निकाली

कई ट्रेड यूनियनों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में विभिन्न राज्यों से आए श्रमिकों और किसानों के साथ एक रैली का आयोजन किया. आयोजकों ने ​कहा कि किसान-मज़दूर अपनी आजीविका के साधनों पर हो रहे हमले को समाप्त करने तथा शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सम्मानजनक जीवन की अनुमति देने वाली नीतियों के लिए आवाज़ उठाने आए हैं.

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रामलीला मैदान में आयोजित विरोध मार्च में देशभर के विभिन्न राज्यों से करीब एक लाख मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों ने भाग लिया. (फोटो: ट्विटर/@cituhq)

कई ट्रेड यूनियनों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में विभिन्न राज्यों से आए श्रमिकों और किसानों के साथ एक रैली का आयोजन किया. आयोजकों ने ​कहा कि किसान-मज़दूर अपनी आजीविका के साधनों पर हो रहे हमले को समाप्त करने तथा शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सम्मानजनक जीवन की अनुमति देने वाली नीतियों के लिए आवाज़ उठाने आए हैं.

रामलीला मैदान में आयोजित रैली में देशभर के विभिन्न राज्यों से मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों ने भाग लिया. (फोटो: ट्विटर/@cituhq)

नई दिल्ली: कई वामपंथी ट्रेड यूनियनों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में श्रमिकों और किसानों के साथ भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की बुनियादी जरूरतों की कथित उपेक्षा और आजीविका के नुकसान के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए एक रैली की.

द हिंदू के मुताबिक, मजदूर-किसान संघर्ष रैली का आयोजन सेंटर ऑफ ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) और ऑल इंडिया एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन (एआईएडब्ल्यूयू) ने किया था.

रैली में देशभर के विभिन्न राज्यों से करीब एक लाख मजदूरों, किसानों और खेतिहर मजदूरों ने भाग लिया.

एक बयान में कहा गया है कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, गुजरात सहित देश के विभिन्न हिस्सों से श्रमिक, किसान और खेत मजदूरों ने रैली में भाग लिया.

द हिंदू के मुताबिक, किसानों और श्रमिकों ने मांग की कि उन्हें प्रति माह 26,000 रुपये की न्यूनतम मजदूरी, सभी श्रमिकों को 10,000 रुपये की पेंशन और गारंटीकृत खरीद के साथ सभी कृषि उपज के लिए स्वामीनाथन समिति की सिफारिश के आधार पर कानूनी रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दी जाए.

उन्होंने केंद्र से गरीब और मध्यम वर्ग के किसानों और कृषि श्रमिकों के सभी कृषि ऋण माफ करने का आग्रह किया. चार श्रम संहिताओं को रद्द करना और बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने की भी मांग की.

रैली को संबोधित करते हुए एआईकेएस के अध्यक्ष अशोक धवले ने नरेंद्र मोदी सरकार की तुलना औपनिवेशिक शासन से की.

उन्होंने कहा, ‘महामारी के दौरान ऑक्सीजन और मेडिकल बेड की कमी के कारण लाखों भारतीयों की मौत हो गई है. लाखों किसानों ने आत्महत्या की. अगर इस ‘मोदानी’ सरकार को ठीक नहीं किया जा सकता है, तो इसे समाप्त करना होगा और यह 2024 में समाप्त हो जाएगी.’

आयोजकों ने कहा कि किसान-मजदूर अपनी आजीविका के साधनों पर हो रहे हमले को समाप्त करने और शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, उनके और उनके बच्चों के लिए एक सम्मानजनक जीवन की अनुमति देने वाली नीतियों के लिए आवाज उठाने आए हैं.

सीटू, एआईकेएस और एआईएडब्ल्यूयू ने एक संयुक्त बयान में कहा, ‘मजदूरों और किसानों ने राष्ट्र की संपत्ति को नष्ट करने के लिए भाजपा सरकार के खिलाफ रोष व्यक्त किया और मेहनतकश लोगों के जीवन को घेरने वाले गंभीर आर्थिक संकट से ध्यान हटाने के लिए घृणा अभियानों का दृढ़ विरोध किया.’

रैली के आयोजकों में से एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने कहा, ‘अर्थव्यवस्था संकट में है और किसी के पास कोई विचार नहीं है कि इससे कैसे निकला जाए. संकट की स्थिति में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को बेचना कोई समाधान नहीं है.’

नेताओं ने केंद्र को चेताया कि यह रैली देश के मेहनतकश लोगों की बुनियादी जरूरतों की उपेक्षा और बड़े कॉरपोरेट घरानों पर लाभ की बौछार के खिलाफ बढ़ते गुस्से का संकेत है.

नेताओं ने कहा, ‘दशकों से विकसित सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े प्रतिष्ठानों (सरकारी कंपनियों) को निजी मालिकों को औने-पौने दामों पर बेचने, श्रमिकों और किसानों को उनके मूल अधिकारों से वंचित करने, भारतीय कृषि और डेयरी क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए विदेशी पूंजी को आमंत्रित करने, लोगों की गाढ़ी कमाई को लूटने में ठगों को शामिल करने- यह सब वर्तमान सरकार द्वारा तेजी से बढ़ावा दिया जा रहा है.’

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