बीते 2 अप्रैल को चीन ने भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में 11 जगहों के नाम बदलकर अपने नाम दे दिए थे. भारत ने इसे ख़ारिज करते हुए अरुणाचल को अपना अभिन्न अंग बताया है. वहीं विपक्षी दलों ने इस विषय पर चुप रहने और संसद में किसी भी प्रश्न और बहस को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की है.
गुवाहाटी: चीन ने ‘मानकीकृत भौगोलिक नामों’ की एक सूची जारी करके भारत के अरुणाचल प्रदेश पर फिर से अपना दावा जताया है. इस सूची में सीमावर्ती राज्य के 11 स्थान शामिल हैं, जो वास्तव में अज्ञात चोटियों, पृथक वन क्षेत्रों, अस्तित्वविहीन नदियों और कस्बों को दिए गए रैंडम नाम हैं, जो तिब्बत के न्यिंगची प्रांत में मेडोग, ज़यू और कोना काउंटी के हिस्से के रूप में सतही रूप से एक साथ घिरे हुए हैं.
उदाहरण के लिए, चीन ने दो नदियों को ‘किबुरी हे’ और ‘गेडुओ हे’ नाम दिया है, हालांकि इसने दोनों नदियों के को-ऑर्डिनेट प्रदान नहीं किए, उसके नागरिक मामलों के मंत्रालय ने केवल दावा किया कि ये ‘विशिष्ट स्थान’ हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, सूची में उन्होंने ज़मीथांग से आगे के जंगलों वाले पहाड़ी क्षेत्र में एक ‘जमीन के टुकड़े’ को ‘बैंगकिन’ कहा है, जो दोनों देशों की सीमा का सीमांकन करने वाली मैकमोहन रेखा के करीब अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में भारत का आखिरी गांव है.
आधिकारिक सूत्रों द्वारा इस अभ्यास को पश्चिम बंगाल के कलाईकुंडा एयरबेस में 10 से 21 अप्रैल तक होने वाले कोप इंडिया आईएएफ-यूएस वायु सेना के युद्ध अभ्यास से पहले चीन की ‘शरारत’ के रूप में खारिज कर दिया है.
यह सूची चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय द्वारा 2 अप्रैल को जारी की गई थी, जिसमें तिब्बती और चीनी पिनयिन दोनों का उपयोग किया गया था – जो उच्चारण के आधार पर लैटिन वर्णमाला में देशी शब्दों और नामों को लिखने की प्रणाली है.
नामकरण की यह सूची अपनी तरह की ऐसी तीसरी सूची थी. इसे चीन द्वारा ‘दक्षिणी तिब्बत में सार्वजनिक रूप से उपयोग किए जाने वाले स्थानों के नामों का संकलन’ के साथ-साथ प्रशासनिक जिलों, चुनिंदा को-ऑर्डिनेट और श्रेणियों के रूप में परिभाषित किया गया था.
चीन की सूची में ‘जियांगकाज़ोंग’ नाम की एक बस्ती की एक प्रविष्टि शामिल है, जिसके निर्देशांक जवाहर नवोदय विद्यालय के पश्चिम में तवांग शहर के एक घर के हैं.
सूची में ‘दाडोंग’ नाम की एक अन्य बस्ती के भी निर्देशांक मिलते हैं, जो गूगल मैप के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी सियांग जिले में तातो शहर के हिस्से के रूप में चिह्नित एक बड़ी खुली जगह को संदर्भित करते हैं.
चीन ने एक और ‘जमीन के टुकड़े’ का नाम बदलकर ‘गुयुटोंग’ रख दिया है, जो वास्तव में पूर्वी अरुणाचल के अंजॉ जिले में किबिथू के उत्तर में लोहित नदी के पश्चिमी तट के पास एक जंगल है.
‘लुओसु री’, ‘दिपु री’, ‘डोंगज़िला फेंग’, ‘निमगांग फेंग’ और ‘जिउनिउज़े गंगरी’ के लिए उल्लिखित निर्देशांक पूर्वोत्तर राज्य के विभिन्न स्थानों में फैले पर्वत शिखरों की चोटी हैं.
हालांकि, चीन द्वारा किए गए दावों को भारत द्वारा खारिज कर दिया गया है, लेकिन चीनी विदेश मंत्रालय सूचीबद्ध 11 स्थानों पर ‘संप्रभु अधिकार’ का दावा कर रहा है. वह लगातार यह दावा कर रहा है कि वे स्थान ‘तिब्बत के दक्षिणी भाग ज़ंगनान’ से संबंधित हैं.
इस बीच, ह्वाइट हाउस की सेक्रेटरी केरीन जीन-पियरे ने एक बयान में कहा है कि अमेरिका चीन के इस कदम का विरोध करता है.
मालूम हो कि छह साल में तीसरी बार चीन ने पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा दोहराते हुए राज्य के भौगोलिक नक्शे में जगहों के लिए चीनी नामों की घोषणा की है.
चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने बीते रविवार (2 अप्रैल) को ‘जंगनम’, जो पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के लिए चीनी नाम है, में 11 स्थानों के लिए ‘मानकीकृत’ नाम जारी किए.
जिन क्षेत्रों का नामकरण किया गया, उनमें दो आवासीय क्षेत्र, पांच पर्वत शिखर और दो नदियां शामिल हैं. दस्तावेज में उनके निर्देशांक, स्थान के नाम की श्रेणी और अधीनस्थ प्रशासनिक जिले शामिल थे.
यह चीनी अक्षरों, तिब्बती और पिनयिन में चीन द्वारा घोषित नामों का तीसरा बैच है.
छह नामों का पहला बैच नवंबर 2017 में तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा के कुछ दिनों बाद जारी किया गया था.
दूसरा बैच दिसंबर 2021 में चीन के नए भूमि सीमा कानून के प्रभावी होने के दो दिन पहले जारी किया गया था.
दूसरे बैच के बाद भारत ने कहा भी था कि अरुणाचल प्रदेश ‘हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा.’ विदेश मंत्रालय ने कहा था, ‘अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नामकरण करना इस तथ्य को बदलता नहीं है.’
चीन द्वारा उकसावे का नया प्रयास
विवादित सीमा पर भारत के खिलाफ भड़काऊ कदमों की अपनी शृंखला को जारी रखते हुए बीजिंग ने अब अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित दो तिब्बती नगरों को शहर का दर्जा देने की अपनी योजना का ऐलान किया है.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने इस संबंध में जानकारी दी है. इस कदम से दो हिमालयी पड़ोसियों के बीच तनाव और अधिक भड़कने की संभावना है.
तिब्बत में अधिकारियों ने सोमवार को कहा कि पूर्वी क्षेत्र के साथ लगीं दो काउंटी – मिलिन और कुओना – को शहर का दर्जा दिया जाएगा और सीधे क्षेत्रीय सरकार के प्रशासनिक दायरे में लिया जाएगा.
दोनों क्षेत्रों की आबादी 25,000 से कम है, लेकिन मिलिन – जिसे मेनलिंग के नाम से भी जाना जाता है – एक महत्वपूर्ण सीमावर्ती शहर और परिवहन केंद्र है, जिसका 180 किलोमीटर का क्षेत्र भारतीय सीमा से सटा हुआ है.
यह रेल द्वारा क्षेत्रीय राजधानी ल्हासा से जुड़ा हुआ है और तिब्बत एवं झिंजियांग को जोड़ने वाले एक राजमार्ग के साथ-साथ इसका अपना हवाई अड्डा भी है.
कुओना, जिसे कोना या सोना के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण-पश्चिम में भूटान की सीमा से लगा है और तवांग क्षेत्र की सीमा पर है. समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार, नए शहर कुओना एक हिस्से के रूप में चीन द्वारा दावा किए गए क्षेत्र का एक हिस्सा भारत में भी आता है.
गौरतलब है कि दिसंबर 2022 में तवांग सेक्टर में दोनों देशों के सैनिक आपस में भिड़ गए थे, भारतीय सेना के मुताबिक दर्जनों सैनिकों को ‘मामूली चोटें’ आई थीं.
नए परिवर्तनों का कोई और विवरण नहीं दिया गया है, लेकिन चीन की प्रशासनिक व्यवस्था के तहत इस तरह के उन्नयन में आमतौर पर स्थानीय विकास के लिए अधिक संसाधन आवंटित किए जाते हैं और स्थानीय अधिकारियों को अधिक अधिकार दिए जाते हैं.
दो सीमावर्ती नगरों के लिए नए शहर का दर्जा देने की यह घोषणा चीनी नागरिक मामलों के मंत्रालय की उपरोक्त घोषणा के बाद आई है, जिसमें उसने इस भारतीय राज्य में 11 स्थानों का नाम बदल दिया था और एक नक्शा प्रकाशित कर उसमें अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताया था.
इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, ‘अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविच्छेद्य अंग है, रहा है और रहेगा. बनावटी नाम देने का प्रयास इस वास्तविकता को नहीं बदलेगा.’
भारतीय बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि नाम परिवर्तन ‘पूरी तरह से चीन की संप्रभुता के दायरे में’ है. माओ ने बीजिंग में संवाददाताओं से कहा, ‘दक्षिणी तिब्बत क्षेत्र चीनी इलाका है.’
गौरतलबा है कि दोनों देश 2020 से लद्दाख में लंबे समय तक गतिरोध में भी शामिल रहे हैं. एक सरकारी सम्मेलन में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सुरक्षा बलों को क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 65 में से 26 गश्त बिंदुओं तक पहुंच से वंचित कर दिया गया है.
विपक्षी दलों ने इस विषय पर चुप रहने और संसद में किसी भी प्रश्न और बहस को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की है. वहीं, कांग्रेस ने बुधवार को सीमा की स्थिति पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक की मांग की थी.
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