सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 को संशोधित करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की गजट अधिसूचना गुरुवार को जारी की गई. इसमें कहा गया है कि गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेकर द्वारा ‘झूठी या भ्रामक जानकारी’ बताई गई सामग्री को हटाने के लिए बाध्य होंगी.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने गुरुवार (6 अप्रैल) को ‘मध्यस्थों’- ‘ सोशल मीडिया मध्यस्थ और महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ समेत एक मध्यस्थ’ के रूप में परिभाषित- के लिए केंद्र सरकार के किसी भी काम के संबंध में नकली, झूठी या भ्रामक जानकारी को प्रकाशित, साझा या होस्ट न करने’ को अनिवार्य बनाते हुए नियमों को अधिसूचित किया.
रिपोर्ट के अनुसार, अब से सरकार की फैक्ट-चेकिंग इकाई ‘फर्जी, झूठी या भ्रामक जानकारी’ की पहचान करेगी.
सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 को संशोधित करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की गजट अधिसूचना गुरुवार को जारी की गई.
पीटीआई ने इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर के हवाले से बताया है, ‘सरकार ने मंत्रालय के माध्यम से एक इकाई को अधिसूचित करने का फैसला किया है और वह संगठन ऑनलाइन सामग्री और वो सामग्री जो सरकार से संबंधित है, के सभी पहलुओं का फैक्ट-चेकर होगा.’
मंत्री ने कहा कि गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियां सरकार द्वारा अधिसूचित फैक्ट-चेकर द्वारा ‘झूठी या भ्रामक जानकारी’ बताई गई सामग्री को हटाने में विफल रहने पर प्राप्त सुरक्षा खो सकती हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास निश्चित रूप से एक प्रारूप होगा कि संगठन कैसा दिखेगा, क्या यह पीआईबी फैक्ट-चेक होगा और नियम क्या होंगे. हम निश्चित रूप से इसे साझा करेंगे जैसा कि हम अधिसूचित करते हैं.’
उन्होंने कहा कि सरकार के प्रेस और सूचना ब्यूरो (पीआईबी) को आईटी नियमों के तहत फैक्ट-चेकर होने के लिए अधिसूचित करने की आवश्यकता है.
स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर हमला
इस बीच, डिजिटल अधिकार समूह इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने कहा कि इन संशोधित नियमों की अधिसूचना ‘बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को प्रभावित करेगी’, विशेष रूप से समाचार प्रकाशक, पत्रकार, कार्यकर्ता और अन्य प्रभावित होंगे.
समूह ने कहा, ‘फैक्ट-चेक इकाई प्रभावी रूप से आईटी अधिनियम-2000 की धारा 69ए के तहत वैधानिक रूप से निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए सोशल मीडिया मंचों और यहां तक कि इंटरनेट पर मौजूद अन्य मध्यस्थों को सामग्री हटाने के आदेश जारी कर सकती है.’
आईएफएफ ने आगे कहा, ‘मूल कानून यानी आईटी अधिनियम के दायरे का विस्तार करने के लिए आवश्यक संसदीय प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के अलावा, ये अधिसूचित संशोधन श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2013) मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी घोर उल्लंघन हैं, जिसमें सामग्री को ब्लॉक करने के लिए सख्त प्रक्रियाएं निर्धारित की गई थीं. अंत में, ‘फर्जी’, ‘झूठे’, ‘भ्रामक’ जैसे अपरिभाषित शब्दों की अस्पष्टता ऐसी व्यापक शक्तियों को दुरुपयोग के लिए अतिसंवेदनशील बनाती है.’
गौरतलब है कि कई विपक्षी दलों ने आईटी नियमों के मसौदा संशोधनों पर चिंता जताई थी और उन्हें ‘अत्यधिक मनमाना और एकतरफा’ करार दिया था.
कांग्रेस प्रवक्ता और सोशल मीडिया एंड डिजिटल फ्लेटफॉर्म्स की अध्यक्ष सुप्रिया श्रीनेत ने द वायर से कहा था , ‘यह इंटरनेट, डिजिटल मीडिया मंचों और सोशल मीडिया मंचों को चुप कराने के अलावा और कुछ नहीं है. ये एकमात्र आखिरी गढ़ हैं जो डटकर खड़े हैं और अभी भी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं. मुख्यधारा के मीडिया के सरेंडर ने सरकार को डिजिटल और सोशल मीडिया मंचों के साथ भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया है.’
बता दें कि द वायर, द लीफलेट और अन्य मीडिया संगठनों ने आईटी नियम- 2021 की संवैधानिकता को चुनौती दी है और बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन धाराओं के प्रावधान पर रोक लगा दी है जो सीधे डिजिटल समाचार साइटों पर लागू होती हैं.
हालांकि, नए नियम ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मध्यस्थों पर लागू होते हैं जो उस सामग्री को हटाने या ब्लॉक करने के लिए दबाव में आएंगे, जिसे सरकार एकतरफा रूप से ‘फर्जी’ या ‘भ्रामक’- जिसे क़ानून में परिभाषित नहीं किया है- घोषित करेगी.
ट्विटर ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष आईटी नियमों की शक्तियों को चुनौती भी दी है, लेकिन मध्यस्थों पर लागू होने वाले प्रावधानों पर कोई रोक नहीं लगी है.
मोदी सरकार ने आईटी नियमों को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट की एकल पीठ में स्थानांतरित करने की मांग की है, लेकिन इस याचिका पर अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है.