आईएनएस ने सरकार से ख़बरों की फैक्ट-चेकिंग संबंधी नए नियमों को वापस लेने की मांग की

बीते 6 अप्रैल को अधिसूचित नए आईटी नियमों में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को एक फैक्ट-चेक इकाई का गठन करने का अधिकार होगा, जो केंद्र सरकार के किसी भी काम के संबंध में फ़र्ज़ी, झूठी या भ्रामक ख़बर का पता लगाएगा. ​मीडिया संगठनों ने इसे सेंसरशिप के समान बताया है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

बीते 6 अप्रैल को अधिसूचित नए आईटी नियमों में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को एक फैक्ट-चेक इकाई का गठन करने का अधिकार होगा, जो केंद्र सरकार के किसी भी काम के संबंध में फ़र्ज़ी, झूठी या भ्रामक ख़बर का पता लगाएगा. ​मीडिया संगठनों ने इसे सेंसरशिप के समान बताया है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने बीते बुधवार को केंद्र से 6 अप्रैल को अधिसूचित आईटी नियमों में संशोधन को वापस लेने का आग्रह किया.

संगठन की ओर से कहा गया है कि यह कदम सरकार या उसकी नामित एजेंसी को कोई खबर फर्जी है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए ‘पूर्ण’ और ‘मनमानी’ शक्ति प्रदान करेगा.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईएनएस ने किसी भी अधिसूचना के साथ आने से पहले मीडिया संगठनों और प्रेस निकायों जैसे हितधारकों के साथ व्यापक और सार्थक परामर्श की मांग की, क्योंकि इस कदम मीडिया और इसकी विश्वसनीयता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.

बीते 6 अप्रैल को अधिसूचित नए आईटी नियमों में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को एक फैक्ट-चेक इकाई का गठन करने का अधिकार होगा, जो केंद्र सरकार के किसी भी काम के संबंध में फर्जी, झूठी या भ्रामक खबर का पता लगाएगा.

इकाई के पास सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) और अन्य सेवा प्रदाताओं सहित मध्यस्थों को निर्देश जारी करने का अधिकार होगा कि वे ऐसी सामग्री को हटा दें.

गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा ‘फर्जी या भ्रामक’ करार दी गई सामग्री इंटरनेट से हटाने को बाध्य होंगी.

आईएनएस के बयान में कहा गया है, ‘इस तरह की शक्ति को मनमाना माना जाता है, क्योंकि संबंधित पक्षों को सुने बिना इसका प्रयोग किया जाएगा और इस प्रकार प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा.’

इसने कहा कि अधिसूचित नियमों में यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि ऐसी इकाई के लिए शासन तंत्र क्या होगा, अपनी शक्तियों के प्रयोग में किस प्रकार की न्यायिक निगरानी उपलब्ध होगी, क्या अपील करने का अधिकार होगा?

आईएनएस ने कहा, ‘यह सब देखते हुए हम कहने के लिए विवश हैं, यह प्रेस की सेंसरशिप के समान है और इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत का उल्लंघन है.’

आईएनएस ने कहा कि इससे पहले आलोचना के बाद मंत्रालय ने मीडिया संगठनों और निकायों के साथ परामर्श करने का वादा किया था. यह खेद का विषय है कि मंत्रालय द्वारा इस संशोधन को अधिसूचित करने से पहले हितधारकों के साथ कोई सार्थक परामर्श करने का कोई प्रयास नहीं किया है.

इससे पहले एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी नए आईटी (संशोधन) नियमों को लेकर चिंता जाहिर की थी. गिल्ड का कहना था कि इन संशोधनों का देश में प्रेस की स्वतंत्रता पर गहरा प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

एडिटर्स गिल्ड ने कहा था कि नए नियमों से केंद्र सरकार को खुद की एक ‘फैक्ट-चेक इकाई’ गठित करने की शक्ति दी है, जिसके पास केंद्र सरकार के किसी भी कामकाज आदि के संबंध में क्या ‘फर्जी या गलत या भ्रामक’ है, यह निर्धारित करने की व्यापक शक्तियां होंगी और वह ‘मध्यस्थों’ (सोशल मीडिया मंच, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और अन्य सेवा प्रदाताओं सहित) को ऐसी सामग्री को हटाने के निर्देश सकेगी.

गिल्ड का कहना था, ‘यह सब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ और सेंसरशिप के समान है.’

डिजिटल अधिकार समूह इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने कहा था कि इन संशोधित नियमों की अधिसूचना ‘बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को प्रभावित करेगी’, विशेष रूप से समाचार प्रकाशक, पत्रकार, कार्यकर्ता और अन्य प्रभावित होंगे.

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