पुलवामा हमला: सीआरपीएफ जांच में ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता और लंबे क़ाफ़िले को कारण माना गया था

जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने द वायर को दिए एक इंटरव्यू में वर्ष 2019 में सीआरपीएफ के क़ाफ़िले पर हुए आतंकी हमले के लिए ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता की ओर भी इशारा किया है. इस संबंध में सीआरपीएफ द्वारा कराई गई एक आंतरिक जांच भी कुछ ऐसा ही इशारा करती है.

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पुलवामा हमले के बाद घटनास्थल पर क्षतिग्रस्त वाहन और सुरक्षाकर्मी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने द वायर को दिए एक इंटरव्यू में वर्ष 2019 में सीआरपीएफ के क़ाफ़िले पर हुए आतंकी हमले के लिए ख़ुफ़िया तंत्र की विफलता की ओर भी इशारा किया है. इस संबंध में सीआरपीएफ द्वारा कराई गई एक आंतरिक जांच भी कुछ ऐसा ही इशारा करती है.

पुलवामा हमले के बाद जारी राहत कार्य की एक तस्वीर. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने द वायर को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि पुलवामा हमले से पहले सीआरपीएफ द्वारा अपने जवानों को ले जाने के लिए मांगे गए पांच एयरक्राफ्ट को उपलब्ध कराने से गृह मंत्रालय ने इनकार कर दिया था, जिसका परिणाम यह निकला कि सड़क मार्ग से एक काफिले में बड़ी संख्या में जा रहे भारतीय जवान घात लगाए बैठे आतंकवादियों के घातक हमले का शिकार हो गए.

इस संबंध में द संडे एक्सप्रेस ने टिप्पणी के लिए सीआरपीएफ के महानिदेशक (डीजी) एसएल थाउसेन से संपर्क किया. उन्होंने फोन कॉल और मैसेज का जवाब नहीं दिया. डीजी और एडीजी (ऑपरेशंस) को भेजे गए ईमेल का भी कोई जवाब नहीं मिला.

14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए घातक कार बम हमले, जिसमें 40 जवानों की मौत हो गई थी, के बाद बल ने उन चूकों की आंतरिक जांच की थी, जिनके चलते हमला हुआ था.

जांच में मुख्य रूप से हमले के प्रमुख कारणों के रूप में खुफिया तंत्र की विफलता और काफिले की अत्यधिक लंबाई को चिह्नित किया गया था.

सूत्रों के मुताबिक, सीआरपीएफ की जांच में पाया गया था कि जहां आईईडी हमलों के बारे में कई इनपुट (सूचनाएं) थे, लेकिन काफिले के बारे में कुछ भी खास साझा नहीं किया गया था. इसमें सेना की आवाजाही के लिए सुरक्षा तैयारियों में खामियों में एक के तौर पर काफिले की लंबाई को भी माना गया था.

सरकार ने हमले के बाद जम्मू कश्मीर में तैनात सभी सैनिकों के लिए हवाई यात्रा को मंजूरी दे दी थी.

सूत्रों ने कहा कि जांच में इस ओर इशारा किया गया था कि संबंधित दिन काफिले में 78 वाहन थे, जो कि असामान्य तौर लंबा था. सूत्रों ने बताया, जांच में कहा गया कि इससे न केवल काफिले की आवाजाही के बारे में सूचना लीक होने की संभावना बनी, बल्कि यह सबकी नजरों में भी आ गया.

रिपोर्ट के अनुसार, दोपहर करीब 3:30 बजे जब काफिला पुलवामा से गुजर रहा था, तभी एक कार बगल वाली सड़क से हाईवे पर आ गई और विस्फोट से पहले काफिले की 5वीं बस के करीब चलने लगी. जांच में एक सीआरपीएफ ट्रूपर की भूमिका की भी सराहना की गई थी, जिसने हाईवे पर जाते समय कार को देखा था और उसे रोकने की कोशिश की थी. वह भी धमाके में शहीद हो गया.

सूत्रों के मुताबिक, काफिला काफी लंबा हो गया था, क्योंकि इससे पहले कई दिनों तक बर्फबारी के कारण श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर कोई हलचल नहीं हुई थी. इसके चलते घाटी से कहीं और ड्यूटी के लिए जाने वाले सुरक्षा बलों के जवानों को श्रीनगर में रोक दिया गया था.

गृह मंत्रालय द्वारा जांच एनआईए को सौंप दी गई थी. एनआईए ने हमले के लिए जैश-ए-मोहम्मद और पाकिस्तान को दोषी ठहराते हुए मामले में 13,800 पन्नों की आरोप-पत्र (Chargesheet) दायर की थी.

यह दावा करते हुए कि हमले में लगभग 35 किलोग्राम आरडीएक्स सहित लगभग 200 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था, आरोप-पत्र में 19 लोगों को आरोपी बनाया गया था.

इसमें जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर, उसका भाई रऊफ असगर और अम्मार अल्वी व उसका भतीजा मोहम्मद उमर फारूक शामिल थे, जो हमले के प्रमुख योजनाकार थे और 2018 में घुसपैठ करके भारत आए थे और पुलवामा हमले के बाद मार्च 2019 में एक एनकाउंटर में मारे गए थे.

फारूक आईसी 814 हाईजैक करने वाले मोहम्मद इब्राहिम अतहर का बेटा है. ज्ञात हो कि 1999 में एयर इंडिया के विमान के अपहरण के चलते मसूद अजहर को भारतीय हिरासत से रिहा कर दिया गया था.

रिपोर्ट के अनुसार, एनआईए ने जम्मू के सांबा सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर एक सुरंग का उपयोग करके अप्रैल 2018 में मोहम्मद उमर फारूक सहित जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकियों के एक समूह के भारत में आने के सबूत का उल्लेख किया था.

हमले के समय, पाकिस्तान में नंबरों और फारूक और उसके सहयोगियों के नंबरों के बीच सैकड़ों वॉट्सऐप कॉल किए गए थे. एनआईए पाकिस्तान में इन नंबरों के सटीक स्थान की जानकारी देने में सक्षम थी.

इसके अलावा एनआईए ने एक पहचान-पत्र भी संलग्न किया है, जिस पर ‘पाकिस्तान राष्ट्रीय पहचान पत्र’ लिखा हुआ है. इसमें फारूक की तस्वीर थी और उसका ब्योरा था.

सूत्रों ने कहा कि इस तरह के पहचान-पत्र पाकिस्तान के राष्ट्रीय डेटाबेस और पंजीकरण प्राधिकरण द्वारा जारी किए जाते हैं और ये मतदान के लिए और पासपोर्ट बनवाने के लिए अनिवार्य होते हैं.