एनसीईआरटी ने दसवीं की विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से चार्ल्स डार्विन, पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति समेत जैविक विकास (एवोल्यूशन) संबंधी सामग्री को हटाया है. इसे वापस सिलेबस में शामिल करने की मांग करते हुए 1,800 से अधिक वैज्ञानिकों और शिक्षकों ने कहा कि वे विज्ञान की स्कूली शिक्षा में किए ‘इस तरह के ख़तरनाक बदलावों’ से असहमत हैं.
नई दिल्ली: सीबीएसई के दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में विज्ञान के सिलेबस से जैविक विकास के सिद्धांत को हटाने के राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के फैसले के बारे में 1,800 से अधिक वैज्ञानिकों, विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षकों और अन्य शिक्षकों ने गंभीर चिंता जताई है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने कहा कि विकास की प्रक्रिया को समझना ‘वैज्ञानिक स्वभाव के निर्माण में महत्वपूर्ण’ है और छात्रों को इस जोखिम से वंचित करना ‘शिक्षा का मज़ाक’ है.
ब्रेकथ्रू साइंस सोसाइटी, विज्ञान, संस्कृति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए प्रतिबद्ध एक राष्ट्रव्यापी स्वैच्छिक संगठन है, जिसने ‘करिकुलम से विकास सिद्धांत के बहिष्कार के खिलाफ एक अपील’ शीर्षक से एक खुला पत्र जारी किया है. इसमें मांग की गई है कि माध्यमिक शिक्षा में डार्विनियन विकास के सिद्धांत को बहाल किया जाए.
पत्र पर 1,800 से अधिक वैज्ञानिकों, विज्ञान शिक्षकों और शिक्षकों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) और आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल हैं. इनका मानना है कि विज्ञान की इस बुनियादी खोज को जानने से वंचित रहने पर छात्रों की विचार प्रक्रिया में गंभीर रूप से प्रभावित होगी.
पत्र में कहा गया है, ‘जैविक विकास (Evolutionary biology) का ज्ञान और समझ न केवल जीव विज्ञान के किसी भी उप-क्षेत्र के लिए , बल्कि हमारे आसपास की दुनिया को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है. एवोलुशनरी बायोलॉजी विज्ञान का एक क्षेत्र है जिसका संबंध समाज और राष्ट्रों के रूप में जिन समस्याओं का सामना करते हैं, उनसे कैसे निपटते हैं जैसे चिकित्सा और दवा की खोज, महामारी विज्ञान, पारिस्थितिकी और पर्यावरण से लेकर मनोविज्ञान तक है, साथ ही यह मनुष्यों के बारे में हमारी समझ और जीवन में उनके स्थान के बारे में भी बताता है. हालांकि हम में से कई स्पष्ट रूप से नहीं जानते हैं कि कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के बीच प्राकृतिक चयन का सिद्धांत हमें यह समझने में मदद करता है कि कोई महामारी कैसे आगे बढ़ती है या कुछ प्रजातियां विलुप्त क्यों हो जाती हैं.’
अख़बार के अनुसार, एनसीईआरटी के पाठ्यपुस्तकों में विज्ञान विषयों को ‘युक्तिसंगत’ बनाने की कवायद में दसवीं कक्षा की किताब का अध्याय 9, जिसका शीर्षक ‘आनुवांशिकता और विकास’ (Heredity and Evolution) था, को अब केवल ‘आनुवंशिकता’ कर दिया गया है.
इस अध्याय में से हटाए गई सामग्री में चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन, पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति, मॉलिक्यूलर फाइलोजेनी, विकास और विकासवादी संबंधों का पता लगाना समेत कुछ अन्य टॉपिक भी शामिल हैं.
टेलीग्राफ के अनुसार, पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं ने यह भी कहा, ‘भारतीय छात्रों का केवल एक छोटा हिस्सा ही दसवीं और बारहवीं में विज्ञान स्ट्रीम चुनता है और उससे भी छोटा हिस्सा जीव विज्ञान (बायोलॉजी) को अपने विषय के रूप में चुनता है. इन परिस्थितियों में कक्षा दस के सिलेबस से विकास की प्रमुख अवधारणाओं को हटाने के परिणामस्वरूप अधिकांश छात्र इस महत्वपूर्ण हिस्से से वंचित रह जाएंगे.’
उन्होंने कहा कि वे विज्ञान की स्कूली शिक्षा में ‘इस तरह के खतरनाक बदलावों’ से असहमत हैं और दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में विकास सिद्धांत को वापस शामिल किए जाने की मांग करते हैं.
टेलीग्राफ द्वारा इन बदलावों और वैज्ञानिकों की चिंता को लेकर एनसीईआरटी के निदेशक से सवाल किए जाने पर उनका जवाब नहीं दिया गया.
उल्लेखनीय है कि बीते दिनों सामने आया था कि एनसीईआरटी ने मुगलों के इतिहास पर पूरे अध्यायों के साथ गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगे, नक्सली आंदोलन और दलित लेखकों के जिक्र को भी अपने पाठ्यक्रम से हटाया है. इसके परिणामस्वरूप सीबीएसई, उत्तर प्रदेश और एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को मानने वाले अन्य राज्य बोर्डों के सिलेबस में बदलाव होंगे.
इन्हीं बदलावों में भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के सभी संदर्भों और जम्मू कश्मीर के विलय की शर्त को भी हटा दिया है. कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की किताब ‘इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन ऐट वर्क’ के पहले अध्याय से आजाद के संदर्भ को हटाया गया है.