अमेरिका ने भारत निर्मित आई-ड्रॉप को एक दुर्लभ स्ट्रेन फैलने का कारण बताया

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने बताया है कि चेन्नई की ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर द्वारा निर्मित ‘इज्रीकेयर आर्टिफिशियल टियर्स’ आई-ड्रॉप के चलते एक दवा-प्रतिरोधी जीवाणु का स्ट्रेन फैलने संबंधी 68 मामले 16 राज्यों में सामने आए हैं, जिनमें 3 लोगों की मौत हो चुकी है, 8 लोग आंखों की रोशनी खो चुके हैं.

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(फोटो साभार: ezricare-info.com)

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने बताया है कि चेन्नई की ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर द्वारा निर्मित ‘इज्रीकेयर आर्टिफिशियल टियर्स’ आई-ड्रॉप के चलते एक दवा-प्रतिरोधी जीवाणु का स्ट्रेन फैलने संबंधी 68 मामले 16 राज्यों में सामने आए हैं, जिनमें 3 लोगों की मौत हो चुकी है, 8 लोग आंखों की रोशनी खो चुके हैं.

(फोटो साभार: ezricare-info.com)

नई दिल्ली: चेन्नई की ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर द्वारा निर्मित ‘इज्रीकेयर आर्टिफिशियल टियर्स’ आई ड्रॉप अमेरिका में जांच के दायरे में है. इसका कारण एक दवा-प्रतिरोधी जीवाणु स्ट्रेन, जो आंखों के संक्रमण समेत कई प्रकार के संक्रमणों से संबद्ध है, का बहुस्तरीय प्रकोप है.

उल्लेखनीय है कि ‘आर्टिफिशियल टियर्स ल्यूब्रीकेंट’ का उपयोग आंखों में जलन होने या आंखों में सूखापन हो जाने पर किया जाता है.

द सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि ‘स्ट्रेन का फैलाव दूषित स्रोत (आई-ड्रॉप) से हुआ है.’

सीडीसी के अनुसार, प्रकोप फैलाने वाला जीवाणु, वीआईएम-जीईएस-सीआरपीए, व्यापक तौर पर दवा-प्रतिरोधी स्यूडोमोनस एरुगिनोसा जीवाणु की एक दुर्लभ नस्ल (Strain) है और अमेरिका में पहले इसके मामले नहीं देखे गए हैं. जीवाणु के इस स्ट्रेन के 16 राज्यों में 68 मामले सामने आए हैं.

इनमें से 37 मरीज चार स्वास्थ्य सेवा सुविधा केंद्रों से जुड़े थे. तीन लोगों की मौत हो गई है और 8 लोग अपनी आंखों की रोशनी खो चुके हैं और 4 लोगों की सर्जरी करके आंख की पुतली निकालनी पड़ी है.

सीडीसी का निष्कर्ष इसके द्वारा की गई उन स्वास्थ्य सेवा केंद्रों की जांच पर आधारित है, जहां से मामले सामने आए थे और आई-ड्रॉप की खुली बोतलों का परीक्षण किया गया था.

इस साल फरवरी में कंपनी ने भी स्वैच्छिक तौर पर आई-ड्रॉप वापस लेने की पहल की थी.

सीडीसी ने आई-ड्रॉप्स की खुली बोतलों का परीक्षण किया और कई लॉट (Lot/खेप) दूषित पाए गए.

यह पूछे जाने पर कि क्या दवा परिवहन और भंडारण के दौरान दूषित हो सकती है, सीडीसी ने इंडियन एक्सप्रेस को एक ईमेल के माध्यम से दिए जवाब में कहा है कि ‘यह संभावना नहीं है.’

सीडीसी ने कहा, ‘यदि उत्पाद पूरी तरह से सील नहीं किया गया होता तो परिवहन या भंडारण के दौरान दवा दूषित हो सकती थी. हालांकि, प्रकोप फैलाने वाले स्ट्रेन का व्यापक स्वभाव एक खास स्रोत की ओर संकेत करता है और भंडारण एवं वितरण मार्गों पर कई बिंदुओं से दूषित होने का इशारा नहीं करता है.’

स्वास्थ्य सेवा सुविधा केंद्रों पर सीडीसी ने मरीजों का रिकॉर्ड इस्तेमाल करते हुए एक मामला-नियंत्रण (Case-Control) अध्ययन किया था.

अध्ययन के अनुसार, संक्रमण वाले व्यक्तियों में आर्टिफिशियल टियर ड्रॉप का इस्तेमाल करने की संभावना पांच गुना अधिक थी. सीडीसी स्पष्ट रूप से कहता है कि यह दोनों के बीच एक संबंध स्थापित करता है, लेकिन जरूरी नहीं कि एक कारण-संबंधी जुड़ाव हो.

अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) को परीक्षण के लिए आई ड्रॉप की सीलबंद बोतलें भेजी गई थीं. इसके निष्कर्षों के बारे में पूछे जाने पर एफडीए ने एक ईमेल में कहा, ‘यूएस एफडीए अपनी इस जिम्मेदारी को गंभीरता से लेता है कि जिन चिकित्सीय उत्पादों पर अमेरिकी जनता भरोसा कर रही है, वे हमारे गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशीलता संबंधी कठोर मानकों को पूरा करना सुनिश्चित करते हों.’

एफडीए इस मुद्दे की जांच कर रहा है और एजेंसी आम तौर पर वर्तमान में चल रहे अनुपालन मामलों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं करती है.

सूत्रों के मुताबिक, भारतीय दवा नियामक – जिसने चेन्नई के पास विनिर्माण संयंत्र से नियंत्रण नमूने (कंट्रोल सैंपल) एकत्र किए थे – को आई-ड्रॉप में कोई दूषित पदार्थ नहीं मिला. नियंत्रण नमूने कंपनी द्वारा निर्यात और रखरखाव किए गए बैचों के वे नमूने होते हैं, जो गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाओं के हिस्से के रूप में रखे जाते हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि समान नमूने भारत में यूएस एफडीए द्वारा एकत्र किए गए थे और बेंगलुरु में एक मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में परीक्षण किए गए थे.

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि इन नमूनों में भी दूषित पदार्थ नहीं थे.

यूएस एफडीए द्वारा भारत में विनिर्माण स्थल के किए गए एक निरीक्षण में कई खामियां पाई गई थीं, जिनमें दवा सामग्री से लेकर पैकेजिंग सामग्री तक मानकों पर खरी नहीं उतरती थी. गुणवत्ता नियंत्रण इकाई से समीक्षा किए बिना ही दवा को अमेरिकी बाजार सहित अन्य बाजारों में भेज दिया गया था. साफ-सफाई का भी घोर अभाव था.

बता दें कि फरवरी माह में अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं से चेन्नई में निर्मित इज्रीकेयर आर्टिफिशियल टियर का इस्तेमाल बंद करने का अनुरोध किया था, क्योंकि वह 12 अमेरिकी राज्यों में कम से कम 55 संक्रमण के मामलों की जांच कर रहा था, जिनमें स्थायी रूप से आंखों की रोशनी जाना और एक मौत का मामला शामिल था. हालांकि, ये आंकड़े अब बढ़ गए हैं.

इसके बाद कंपनी ने अमेरिकी बाजार से अपनी आई-ड्रॉप स्वेच्छा से वापस मंगा ली थी.

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