कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के पति और कारोबारी रॉबर्ट वाड्रा के डीएलएफ के साथ हुए ज़मीन सौदे को लेकर भाजपा ने वाड्रा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. अब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दाख़िल एक हलफ़नामे में सरकार ने कहा है कि सौदे में कोई गड़बड़ी नहीं मिली है.
चंडीगढ़: साल 2008 के गुड़गांव जमीन सौदे से जुड़े मामले, जिसमें कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर धोखाधड़ी, जालसाजी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे, ने अब एक नया मोड़ ले लिया है.
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में भाजपा शासित हरियाणा सरकार के एक नवीनतम हलफनामे में कहा गया है कि गुड़गांव के मानेसर शहर के तहसीलदार को गुड़गांव के शिकोहपुर गांव (अब सेक्टर 83) की 3.5 एकड़ जमीन, जिसे 2012 में वाड्रा की स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी लिमिटेड ने रियल्टी प्रमुख डीएलएफ को बेचा था, के सौदे में कोई उल्लंघन नहीं मिला है.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक खबर बताती है कि मानेसर के तहसीलदार ने पिछले साल 12 मई को इस मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) को अपनी रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें उन्होंने यह दावा भी किया था कि जमीन के इस लेनदेन में राज्य सरकार को राजस्व का कोई नुकसान नहीं हुआ.
हलफनामे में दर्ज यह जानकारी वर्तमान और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की प्रगति की निगरानी के लिए चल रही जनहित याचिका के संबंध में हाईकोर्ट के समक्ष रखी गई थी.
यह जानकारी इसलिए चौंकाने वाली है क्योंकि उक्त भूमि सौदा, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस सरकार के दौरान हुआ था, को लेकर भाजपा द्वारा व्यापक अनियमितताओं का दावा किया गया था. यह भी आरोप लगाया गया था कि सौदा केवल वाड्रा को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किया गया था और एक अनुमान के अनुसार उन्होंने लगभग 44 करोड़ रुपये कमाए थे.
इन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई थी, लेकिन भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव और बाद में हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में इसे अपने प्रमुख मुद्दों में से एक बनाया था. कई लोगों का मानना था कि इसी के कारण पार्टी की राष्ट्रीय संभावनाओं के साथ-साथ हरियाणा में पहली सरकार के लिए रास्ता तैयार हुआ था.
सत्ता में आने के तुरंत बाद 2015 में भाजपा ने इस मामले, विशेष रूप से वाड्रा की फर्म को कॉलोनी लाइसेंस देने से संबंधित, की जांच के लिए सेवानिवृत्त जस्टिस एसएन ढींगरा का एक-सदस्यीय आयोग बनाया था, तीन साल बाद 2018 में पुलिस ने औपचारिक रूप से धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार के कई आरोपों के तहत मामला दर्ज किया, जिससे एसआईटी द्वारा वाड्रा, हुड्डा, डीएलएफ और अन्य के खिलाफ औपचारिक जांच शुरू की गई.
लेकिन जबसे मामला दर्ज किया गया, जांच की गति धीमी ही रही. चार्जशीट अब भी दाखिल नहीं हुई है. 2020 में ढींगरा आयोग की रिपोर्ट को भी विभिन्न चूकों का हवाला देते हुए रद्द कर दिया गया.
अब, हाईकोर्ट में पेश नए हलफनामे ने मामले को लेकर और अधिक सवाल खड़े कर दिए हैं.
इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए हुड्डा ने द वायर से कहा, ‘मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि मामला अभी भी विचाराधीन है, लेकिन इस मामले में कभी कोई गलत काम नहीं हुआ. मैं बस इतना ही कह सकता हूं कि यह शुरू से ही राजनीति से प्रेरित मामला था. मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.’
हालांकि, हरियाणा के महाधिवक्ता बीएल महाजन ने द वायर से कहा कि अभी तक मामले में किसी को क्लीन चिट नहीं मिली है.
महाजन ने बताया कि हलफनामे के सिर्फ एक पहलू पर फोकस किया जा रहा है. विस्तार से बताया गया है कि अभी जांच चल रही है. उन्होंने कहा कि आगे की जांच के लिए पिछले महीने एक नई एसआईटी का गठन किया गया है.
हलफनामे के अनुसार, अतिरिक्त मुख्य सचिव और वित्तीय आयुक्त से वाड्रा की फर्म और डीएलएफ के बीच भूमि सौदे के म्यूटेशन के संबंध में स्पष्टीकरण/कानूनी प्रावधान मांगे गए हैं.
रिकॉर्ड्स के अनुसार, हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका, जो उस समय होल्डिंग्स के महानिदेशक थे, ने वाड्रा से डीएलएफ के हाथों में जाने के एक महीने बाद ही भूमि सौदे के म्यूटेशन को रद्द कर दिया.
म्यूटेशन सेल डीड के पूरा होने के बाद सरकार के राजस्व रिकॉर्ड में स्वामित्व बदलने की प्रक्रिया है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि खेमका का म्यूटेशन रद्द करने का आदेश कभी लागू नहीं हुआ रिपोर्ट में 25 अप्रैल, 2014 को गुड़गांव के डिप्टी कमिश्नर के एक पत्राचार का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि म्यूटेशन की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है और जमीन का स्वामित्व डीएलएफ के पक्ष में है.
सौदा विवादस्पद कैसे हुआ
इस मामले में यह आरोप लगाया गया था कि वाड्रा की स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी लिमिटेड, जो 2007 में 1 लाख रुपये की वर्किंग कैपिटल के साथ अस्तित्व में आई थी, ने फरवरी 2008 में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से करोड़ों की कीमत वाली प्राइम जगह पर बहुत कम कीमत में 3.5 एकड़ जमीन खरीदी.
रियल एस्टेट विकास में कम अनुभव के बावजूद वाड्रा की फर्म को भूमि के उक्त टुकड़े पर एक वाणिज्यिक कॉलोनी विकसित करने का लाइसेंस दिया गया था. बाद में स्काई लाइट ने 18 सितंबर, 2012 को सेल डीड के जरिये कॉलोनी के लाइसेंस समेत जमीन का पूरा हिस्सा रियल्टी दिग्गज डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया.
मामले में एफआईआर गुड़गांव के एक निवासी सुरेंद्र वशिष्ठ की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वाड्रा को आर्थिक फायदा पहुंचाने के बदले तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने डीएफएफ को एक अन्य परियोजना, जो अब कानूनी विवाद में है, के लिए गुड़गांव के वजीराबाद क्षेत्र में 350 एकड़ जमीन की बोली जीतने में मदद की थी.
लेकिन राज्य सरकार के नवीनतम हलफनामे से पता चलता है कि वाड्रा की फर्म के बैंक स्टेटमेंट के अनुसार, स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के खाते से 7.45 करोड़ रुपये और लगभग 7.43 करोड़ रुपये क्रमशः 9 अगस्त, 2008 और 16 अगस्त, 2008 को ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खाते में ट्रांसफर किए गए थे.
इसने यह भी कहा कि 2008 में वाड्रा की फर्म को दिया गया कॉलोनी लाइसेंस, जमीन की बिक्री के बावजूद डीएलएफ को कभी भी ट्रांसफर नहीं किया गया था. बाद में 9 मार्च, 2022 को लाइसेंस को रद्द कर दिया गया.
वजीराबाद की 350 एकड़ जमीन को लेकर वजीराबाद के तहसीलदार द्वारा पुलिस को भेजी गई रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि उक्त जमीन डीएलएफ के नाम पर नहीं मिली है.
वजीराबाद तहसीलदार की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2007-08 के म्यूटेशन और जमाबंदी रिकॉर्ड के अनुसार उक्त भूमि अब भी राज्य सरकार की एजेंसी -हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के नाम पर है.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)