पुणे विश्वविद्यालय: गोल्ड मेडल पाने के लिए शाकाहारी होना ज़रूरी

सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार योग-प्राणायाम करने अथवा भारतीय सभ्यता-संस्कृति में रुचि रखने वाले छात्रों को ही मेडल के लिए प्राथमिकता दी जाएगी.

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(फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स)

सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार योग-प्राणायाम करने अथवा भारतीय सभ्यता-संस्कृति में रुचि रखने वाले छात्रों को ही मेडल के लिए प्राथमिकता दी जाएगी.

(फोटो: विकीमीडिया कॉमन्स)
सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (फोटो: विकीमीडिया कॉमन्स)

पुणे: सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय द्वारा शुक्रवार को जारी किए गए दिशा-निर्देशों के मुताबिक गोल्ड मेडल पाने के लिए छात्रों को शाकाहारी होना अनिवार्य है. इन दिशा-निर्देशों के अनुसार विश्वविद्यालय के मांसाहारी छात्र पढ़ने-लिखने में काबिल होने के बावजूद गोल्ड मेडल पाने के हकदार नहीं होंगे.

जनसत्ता की खबर के मुताबिक गोल्ड मेडल पाने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने कुछ शर्तें दी हैं जिनके अनुसार आवेदक को दसवीं, बारहवीं और ग्रेजुएशन की पढ़ाई में पहली श्रेणी या दूसरी श्रेणी के साथ पास होना चाहिए. इन्हीं शर्तों में शामिल शर्त नंबर सात जिसमें लिखा हुआ है कि मेडल के लिए केवल शाकाहारी और शराब न पीने वाले छात्र ही अप्लाई कर सकते हैं.

सूची में इस बात का भी जिक्र है कि जो छात्र योग और प्राणायाम करते हैं या जिनकी भारतीय सभ्यता-संस्कृति में भी रुचि है उन्हें मेडल के लिए प्राथमिकता दी जाएगी.

विश्वविद्यालय द्वारा जारी सर्कुलर
विश्वविद्यालय द्वारा जारी सर्कुलर

एनडीटीवी की खबर के अनुसार इस गोल्ड मेडल को योग महर्षि रामचंद्र गोपाल शेलर के नाम पर दिया जाता है. विश्वविद्यालय ने दावा किया है कि सर्कुलर पुराना है और इसके प्रकरण में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है. इसे हर साल की तरह जारी किया गया है.

सर्कुलर के अनुसार ये मेडल बारी-बारी से हर साल विज्ञान से पोस्ट ग्रैजुएट और गैर वैज्ञानिक विषय से पोस्ट ग्रैजुएट छात्र को दिया जाता है. इस साल इसे गैर विज्ञान विषय से पोस्ट ग्रैजुएट हुए छात्र को दिया जाना था.

इसी खबर में विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के मुताबिक, ‘सर्कुलर को हर साल बिना बदलाव किए जारी किया जाता है. इसके दिशा-निर्देश विश्वविद्यालय ने नहीं बनाए गए हैं बल्कि योग महर्षि शेलरमामा की ट्रस्ट द्वारा विश्वविद्यालय को सौंपें गए हैं.’

हालांकि विश्वविद्यालय ने अपने एक अन्य बयान में कहा है कि वह छात्रों में उनकी खाने-पीने की पसंद के आधार पर भेदभाव नहीं करते.