‘मोदी सरनेम’ आपराधिक मानहानि मामले में अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगाने से सूरत की एक अदालत के इनकार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी है. हालांकि जस्टिस गीता गोपी ने बिना कोई कारण बताए मामले की सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया.
नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस गीता गोपी ने बुधवार को ‘मोदी सरनेम’ आपराधिक मानहानि मामले में अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगाने से सूरत की अदालत के इनकार को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता राहुल गांधी की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया.
राहुल गांधी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता पंकज चंपानेरी ने बुधवार सुबह जस्टिस गोपी की अदालत के समक्ष 29 अप्रैल को मामले की तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया. याचिका को आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन मामलों की श्रेणी में रखा गया था.
डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि गुजरात सरकार के सहायक सरकारी वकील ने इस कदम का विरोध किया, क्योंकि उनका मत था कि मामले को तत्काल सुनवाई की अनुमति नहीं जानी चाहिए. इस पर चंपानेरी ने कहा कि मामला एक निजी शिकायत है और राज्य का इससे कोई लेना-देना नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने हालांकि बिना कोई कारण बताए मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया.
इसके बाद राहुल के वकील चंपानेरी ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एजे देसाई के समक्ष मामले का फिर से उल्लेख किया और अनुरोध किया कि मामले को किसी भी अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए रखा जाए, अगर वह 29 अप्रैल को उचित समझे.
एक सूत्र के अनुसार, राहुल की ओर से गुजरात के बाहर के वकीलों को पेश होना है, जिसके कारण सुनवाई की एक विशिष्ट तारीख के लिए अनुरोध किया जा रहा है.
जस्टिस गोपी के इनकार के बाद एसीजे देसाई अदालत के प्रशासनिक पक्ष से कहेंगे कि मामले को पहले और किस तारीख को सूचीबद्ध किया जाएगा.
राहुल गांधी ने गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में अनुपातहीन सजा के आधार पर इस पर रोक लगाने की मांग की है और कहा है कि इस तरह की सजा ने लोकसभा से उनकी सदस्यता की अयोग्यता के माध्यम से उन्हें अपरिवर्तनीय नुकसान पहुंचाया है.
इससे पहले बीते 20 अप्रैल को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा की सूरत की एक अदालत ने राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया था.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि ‘अगर इस तरह की शक्ति का आकस्मिक और यांत्रिक तरीके से प्रयोग किया जाता है, तो इसका न्याय वितरण प्रणाली के संबंध में जनता की धारणा पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा और इस तरह के आदेश से न्यायपालिका में जनता का विश्वास हिल जाएगा.’
मालूम हो कि द वायर ने रिपोर्ट किया है कि न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा ने तुलसीराम प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामले में भाजपा नेता और अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के वकील के रूप में कार्य किया था. इस मामले के राजनीतिक महत्व को देखते हुए 2024 के आम चुनावों के बाद यह संभव है कि हितों के टकराव पर सवाल उठाए जा सकते हैं.
बीते 23 मार्च को सूरत की एक अदालत ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनकी कथित ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ दायर 2019 के आपराधिक मानहानि मामले में दो साल की जेल की सजा सुनाई थी.
हालांकि इसके कुछ ही देर बाद अदालत ने 15,000 रुपये के मुचलके पर राहुल गांधी की जमानत मंजूर कर ली और उन्हें इसके खिलाफ अपील करने की अनुमति देने के लिए 30 दिनों के लिए सजा पर रोक लगा दी थी.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 8(3) के अनुसार, यदि किसी सांसद को किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और कम से कम दो साल की सजा सुनाई जाती है, तो वह अयोग्यता का पात्र होगा.
राहुल के खिलाफ भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी द्वारा 13 अप्रैल, 2019 को केस दर्ज कराया गया था. उन्होंने कर्नाटक के कोलार में लोकसभा चुनाव के समय एक रैली में राहुल द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर शिकायत की थी.
राहुल गांधी ने कथित तौर पर रैली के दौरान कहा था, ‘सभी चोर, चाहे वह नीरव मोदी हों, ललित मोदी हों या नरेंद्र मोदी, उनके नाम में मोदी क्यों है.’
दोषी ठहराए जाने के अगले दिन 24 मार्च को राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया. लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया था कि वायनाड से सांसद राहुल गांधी को 23 मार्च 2023 से अयोग्य घोषित कर दिया गया है. इसके बाद उन्हें उनका सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस भी मिला था.
उन्होंने प्रोटोकॉल के मुताबिक बीते 22 अप्रैल को अपना तुगलक लेन का सरकारी बंगला खाली कर दिया. 2004 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से जीतने के बाद उन्हें पहली बार बंगला आवंटित किया गया था.
‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी के लिए बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भी राहुल गांधी के खिलाफ याचिका दायर की है.
इस मामले में पटना की निचली अदालत ने राहुल गांधी को पेश होकर अपना पक्ष रखने को कहा था. हालांकि बीते 24 अप्रैल को पटना हाईकोर्ट ने राहुल गांधी को राहत देते हुए निचली अदालत के आदेश पर 15 मई तक रोक लगा दी.