सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच को गंभीर अपराध माना, राज्यों से स्वत: संज्ञान लेकर केस दर्ज करने कहा

सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच की घटनाओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में राज्यों की निष्क्रियता को लेकर दायर याचिकाओं को सुनते हुए चेतावनी दी कि राज्य सरकारों की कार्रवाई वक्ता के धर्म की परवाह किए बिना होनी चाहिए. कार्रवाई में किसी भी तरह की हिचकिचाहट को अदालत की अवमानना ​​के रूप में देखा जाएगा.

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(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच की घटनाओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में राज्यों की निष्क्रियता को लेकर दायर याचिकाओं को सुनते हुए चेतावनी दी कि राज्य सरकारों की कार्रवाई वक्ता के धर्म की परवाह किए बिना होनी चाहिए. कार्रवाई में किसी भी तरह की हिचकिचाहट को अदालत की अवमानना ​​के रूप में देखा जाएगा.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नफरती भाषण (हेट स्पीच) को एक ऐसा गंभीर अपराध करार दिया जो देश के धर्मनिरपेक्षी ताने-बाने को प्रभावित करने में सक्षम है और राज्यों को निर्देश दिया कि वे ऐसे अपराधों में भले ही कोई शिकायत दर्ज न हो, फिर भी मामला दर्ज करें.

शीर्ष अदालत द्वारा यह टिप्पणी हेट स्पीच की घटनाओं के खिलाफ कार्रवाई करने में राज्यों की निष्क्रियता को लेकर दायर याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई के दौरान की गई.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने कहा कि इस तरह के मामले दर्ज करने में देरी को कोर्ट की अवमानना माना जाएगा.

ज्ञात हो कि इससे पहले पिछले महीने जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा था कि नफरत भरे भाषण (हेट स्पीच) दिए जा रहे हैं, क्योंकि सरकार कमजोर और शक्तिहीन है. वह समय पर कार्रवाई नहीं करती और यह तब रुकेगा, जिस क्षण राजनीति और धर्म अलग कर दिए जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट की शुक्रवार की टिप्पणी हेट स्पीच और हिंसा की बढ़ती घटनाओं, जो विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के बीच चिंता और भय पैदा कर रही हैं, के बीच आई है.

लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने शु्क्रवार को अपने अक्टूबर 2022 के आदेश (जिसने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पुलिस को नफरत भरी भाषा के मामलों के खिलाफ स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया) के आवेदन को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक बढ़ा दिया.

इसलिए अब सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को किसी औपचारिक शिकायत की प्रतीक्षा किए बिना नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए स्वत: कार्रवाई करने का आदेश दिया गया है.

21 अक्टूबर, 2022 को पारित प्रारंभिक आदेश केवल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश की सरकारों पर लागू था.

अदालत ने चेतावनी दी कि कार्रवाई वक्ता के धर्म की परवाह किए बिना की जानी चाहिए. कार्रवाई करने में किसी भी तरह की हिचकिचाहट को अदालत की अवमानना ​​के रूप में देखा जाएगा.

पीठ ने आदेश में कहा, ‘प्रतिवादी यह सुनिश्चित करेंगे कि जब भी कोई भाषण या ऐसी घटना होती है जो आईपीसी की धारा 153ए, 153बी, 295ए और 506 आदि जैसे अपराधों के तहत आती है, तो शिकायत दर्ज कराए जाने के बिना ही मामले को दर्ज करने और कानून के अनुसार अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही स्वत: संज्ञान लेकर की जाएगी.’

यह आदेश एडवोकेट निजाम पाशा (याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला के लिए) द्वारा दायर एक याचिका में पारित किया गया था, जिसमें नफरत फैलाने वाले भाषणों पर अंकुश लगाने के लिए निर्देश मांगे गए थे. उनकी याचिका में यह निर्देश देने का सुझाव दिया गया था कि प्रत्येक राज्य में नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए, जो हेट स्पीच पर कार्रवाई के लिए जिम्मेदार हो.

बीते 29 मार्च को अदालत ने एक अवमानना ​​याचिका में महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था. याचिका में आरोप लगाया गया था कि राज्य के अधिकारी रैलियों के दौरान दिए गए घृणास्पद भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहे.

मालूम हो कि अक्टूबर 2022 में शीर्ष अदालत ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पुलिस प्रमुखों को औपचारिक शिकायतों का इंतजार किए बिना आपराधिक मामले दर्ज करके नफरत भरे भाषणों के अपराधियों के खिलाफ ‘तत्काल’ स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया था.

इसके अलावा शीर्ष अदालत ने तीनों राज्यों की सरकारों को उनके अधिकार क्षेत्र में हुए नफरत भरे भाषणों से संबंधित अपराधों पर की गई कार्रवाई के संबंध में अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया था.

पीठ ने कहा था कि राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने के लिए नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, भले ही वे किसी भी धर्म के हों.

पीठ ने आदेश में कहा था, ‘भारत का संविधान इसे एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और बंधुत्व के रूप में देखता है, व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित करता है और देश की एकता और अखंडता प्रस्तावना में निहित मार्गदर्शक सिद्धांत हैं. जब तक विभिन्न धर्मों या जातियों के समुदाय के सदस्य सद्भाव से रहने में सक्षम नहीं होंगे, तब तक बंधुत्व नहीं हो सकता है.’