अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह पर लगाए गए आरोपों की जांच कर रहे भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अब तक की जांच में 12 संदिग्ध लेन-देन के अलावा, उसने और भी संभावित उल्लंघन पाए हैं, जिनकी जांच पूरी करने के लिए कम से कम छह माह की ज़रूरत होगी.
नई दिल्ली: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट से अडानी समूह के खिलाफ कानूनों के कथित उल्लंघन की जांच पूरी करने के लिए छह महीने का समय मांगा.
अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च की जनवरी माह में प्रकाशित एक रिपोर्ट के बाद अडानी समूह को भारी नुकसान हुआ था और 140 बिलियन डॉलर से अधिक की बाजार पूंजी में कमी आई थी.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने बीते 2 मार्च को बाजार नियामक सेबी को दो महीने के भीतर अपनी जांच समाप्त करने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया था.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेबी ने कहा है, ‘12 संदिग्ध लेन-देन से संबंधित जांच/परीक्षण के संबंध में, प्रथमदृष्टया यह देखा गया है कि ये लेन-देन जटिल हैं और इनमें कई उप लेन-देन हैं और इन लेन-देन की बारीकी से जांच करने की जरूरत होगी.’
सेबी ने कहा कि सामान्य तौर पर इस तरह के लेन-देन की जांच में कम से कम 15 महीने का समय लगेगा, लेकिन वह इसे छह महीने के भीतर समाप्त करने के लिए सभी उचित प्रयास कर रहा ह.
नियामक ने 2020 की अमेरिकी प्रतिभूति विनिमय आयोग (एसईसी, यूएसए) के प्रवर्तन प्रभाग की वार्षिक रिपोर्ट पर भी जोर दिया, जिसमें बताया गया है कि आम तौर पर अमेरिकी एसईसी को समान जांच पूरी करने में लगभग 34 महीने लगते हैं. याचिका में कम से कम 6 महीने के और समय की मांग की गई है.
सेबी ने कहा कि 12 ‘संदिग्ध लेन-देन’ पर गौर करने के अलावा उसने और भी संभावित उल्लंघन पाए हैं.
सेबी ने कहा कि उसने पहले ही एक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट और प्रथमदृष्टया पाए गए निष्कर्ष छह सदस्यीय समिति को सौंप दिए हैं, जिसका नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एएम सप्रे कर रहे हैं. अडानी मामले में इस समिति का गठन 2 मार्च को किया गया था.
हालांकि, नियामक ने कहा कि निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने और कुछ विश्लेषणों को फिर से सत्यापित करने के लिए कम से कम छह महीने की आवश्यकता होगी.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 8 मई को होने की उम्मीद है.
अडानी समूह ने एक बयान में कहा कि वह जांच का स्वागत करता है, ‘जो सभी पक्षों को सुनने और सभी मुद्दों से निपटने का एक उचित अवसर प्रदान करती है.’
समूह की ओर से कहा गया, ‘हम सभी कानूनों, नियमों और विनियमों का पूरी तरह से अनुपालन कर रहे हैं और हमें विश्वास है कि सच्चाई की जीत होगी. हम सेबी के साथ पूरी तरह से सहयोग कर रहे हैं और अपना पूरा समर्थन और सहयोग देना जारी रखेंगे.’
उल्लेखनीय है कि जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं. इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.
इसके बाद, मार्च महीने की शुरुआत में कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता में जांच समिति बनाई.
इसमें बैंकर केवी कामथ और ओपी भट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी, सेवानिवृत्त जज जेपी देवधर और अधिवक्ता सोमशेखर सुंदरसन शामिल हैं. कोर्ट ने बाजार नियामक सेबी से भी अपनी जांच दो महीनों में पूरी करके रिपोर्ट सौंपने को कहा था.