बिहार जेल नियमों में संशोधन के बाद आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद मोहन सिंह को रिहा कर दिया गया है. इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं कृष्णैया की पत्नी ने अपनी याचिका में कहा है कि आजीवन कारावास की सज़ा का मतलब पूरे जीवन का कारावास है और इसकी व्याख्या 14 साल के कारावास में तब्दील नहीं की जा सकती है.
नई दिल्ली: बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन के नेतृत्व वाली भीड़ द्वारा 1994 में पीट-पीट कर मार दिए गए आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की पत्नी ने जेल से आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
बिहार के जेल नियमों में संशोधन के बाद गुरुवार (27 अप्रैल) सुबह आनंद मोहन को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, जी. कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने तर्क दिया है कि गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन को आजीवन कारावास की सजा का मतलब उसके पूरे जीवन का कारावास है और इसकी व्याख्या 14 साल के कारावास में तब्दील नहीं की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में उन्होंने कहा, ‘आजीवन कारावास, जब मौत की सजा के विकल्प के रूप में दिया जाता है, को अदालत के निर्देशानुसार सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और यह सजा माफी के आवेदन से परे हो.’
मोहन का नाम उन 20 से अधिक कैदियों की सूची में शामिल था, जिन्हें इस सप्ताह के शुरू में राज्य के कानून विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना द्वारा मुक्त करने का आदेश दिया गया था, क्योंकि उन्होंने 14 साल से अधिक समय सलाखों के पीछे बिताया था.
नीतीश कुमार सरकार द्वारा बिहार जेल नियमावली में बीते 10 अप्रैल को किए गए संशोधन के बाद उनकी सजा में छूट दी गई, जिसके तहत ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या में शामिल लोगों की जल्द रिहाई पर प्रतिबंध हटा दिया गया था. इसके बाद सरकार ने 27 कैदियों की रिहाई की अधिसूचना जारी की थी, जिनमें सांसद रहे आनंद मोहन सिंह का नाम भी शामिल था.
साल 1994 में जी. कृष्णैया को भीड़ द्वारा मार दिया गया था, जो आनंद मोहन सिंह की पार्टी से संबंधित एक अन्य गैंगस्टर-राजनीतिज्ञ की हत्या का विरोध कर रही थी. भीड़ को कथित तौर पर सिंह ने उकसाया था.
तेलंगाना के रहने वाले जी कृष्णैया, जो उस इलाके से गुजर रहे थे, को उनकी आधिकारिक कार से बाहर खींच लिया गया था और उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी.
निचली अदालत ने 2007 में आनंद मोहन सिंह, जिनके बेटे लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से विधायक हैं, को मौत की सजा सुनाई थी. हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था, जिसे 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था. वह 15 साल तक जेल में रहे.
राज्य सरकार के आलोचकों का दावा है कि यह मोहन की रिहाई सुगम बनाने के लिए किया गया था, जो राजपूत समुदाय से आने वाले कद्दावर नेता हैं और भाजपा के खिलाफ अपनी लड़ाई में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन को मजबूती दे सकते हैं.
राजनेताओं समेत कई अन्य लोगों को राज्य के जेल नियमों में संशोधन से लाभ हुआ है.
बहरहाल, इससे पहले जी. कृष्णैया की बेटा पद्मा कृष्णैया ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आनंद मोहन को रिहा करने के अपने फैसले पर दोबारा विचार करने का अनुरोध किया था और साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की भी अपील की थी.
वहीं, पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके बिहार के जेल नियमों में किए गए संशोधन को भी चुनौती दी गई थी, जिसके चलते आनंद मोहन को रिहाई मिली.