सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की मासिक रिपोर्ट के डेटा के आधार पर एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्र सरकार की 150 करोड़ रुपये से अधिक लागत वालीं 1,449 परियोजनाएं चल रही हैं. मार्च 2023 तक इन परियोजनाओं में औसतन 3 साल से अधिक की देरी देखी गई.
नई दिल्ली: विलंबित या देरी से चल रहीं केंद्र सरकार की परियोजनाओं का हिस्सा मार्च 2023 में 56.7 फीसदी तक पहुंच गया. जो करीब 20 वर्षों का उच्चतम आंकड़ा है.
यह जानकारी बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपनी एक रिपोर्ट में इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग डिवीजन द्वारा प्रकाशित सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की मासिक रिपोर्ट के डेटा के आधार पर दी है.
मंत्रालय की फ्लैश रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार की 150 करोड़ रुपये से अधिक लागत वालीं 1,449 परियोजनाएं चल रही हैं. मार्च 2023 तक इन परियोजनाओं में औसतन 3 साल से अधिक की देरी देखी गई.
अखबार का कहना है कि परियोजनाओं की लागत अब मूल अनुमानित लागत से 22.02 फीसदी अधिक होने की उम्मीद है. इसका मतलब है 4.6 ट्रिलियन रुपये (4.6 लाख करोड़) का अतिरिक्त व्यय – या फिर 120 गुना अधिक, जो कि कोंकण रेलवे परियोजना को पूरा करने में खर्च किए गए जिसकी लागत 1997 में 3,550 करोड़ रुपये थी. प्रतिशत के आधार पर इतनी उच्च लागत वृद्धि आखिरी बार 2004 में पिछली एनडीए सरकार के समय थी.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, विलंबित परियोजनाओं में भारतीय रेलवे का बड़ा हिस्सा है और इसकी लागत वृद्धि 2.5 ट्रिलियन (2.5 लाख करोड़) है. इसके बाद ऊर्जा क्षेत्र (0.6 ट्रिलियन) और जल संसाधन (0.5 ट्रिलियन) का नंबर आता है.
विलंबित केंद्र सरकार की परियोजनाओं की हिस्सेदारी 2018 में 19.3 फीसदी के निचले स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन यह हिस्सेदारी डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के तहत इतनी अधिक नहीं थी, जितनी अब मोदी सरकार के अधीन है. यूपीए-युग में देरी के लिए सरकार के भीतर पॉलिसी पैरालिसिस (Policy Paralysis) को दोषी ठहराया गया था.
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