सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बिहार में हर क्षेत्र में बहुत जातिवाद है

सुप्रीम कोर्ट बिहार में चल रही जातिगत जनगणना पर रोक लगाने संबंधी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. उसने आगे इस पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए पटना हाईकोर्ट को तीन दिनों में ‘प्राथमिकता के साथ’ इसका निपटान करने का निर्देश दिया है.

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(फोटो साभार: Pinakpani/Wikimedia Commons, CC BY-SA 4.0)

सुप्रीम कोर्ट बिहार में चल रही जातिगत जनगणना पर रोक लगाने संबंधी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. उसने आगे इस पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए पटना हाईकोर्ट को तीन दिनों में ‘प्राथमिकता के साथ’ इसका निपटान करने का निर्देश दिया है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार (28 अप्रैल) को यह कहते हुए कि बिहार में बहुत जातिवाद है, उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें राज्य में चल रही जातिगत जनगणना पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई थी.

इसके बजाय, शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका के साथ पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा और हाईकोर्ट को तीन दिनों में ‘प्राथमिकता के साथ’ इसका निपटान करने का निर्देश दिया.

बार एंड बेंच के मुताबिक, खंडपीठ के दो जजों में से एक जस्टिस एमआर शाह ने टिप्पणी की, ‘वहां बहुत जातिवाद है. हर क्षेत्र में. नौकरशाही में, राजनीति में, सेवा में.’

वास्तव में याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत का दरवाजा तब खटखटाया था, जब हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक के लिए उनकी याचिका खारिज कर दी थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को अंतरिम राहत देने या न देने का फैसला करने से पहले गुण-दोष के आधार पर मामले की सुनवाई करनी चाहिए थी.

जस्टिस शाह ने कहा, ‘इस तरह या उस तरह, अंतरिम राहत के लिए याचिका पर योग्यता के आधार पर विचार किया जाना है. खंडपीठ को इस पर विचार करने दें. हम स्पष्ट करते हैं कि हमने गुण-दोष के आधार पर कुछ नहीं कहा है और इस पर हाईकोर्ट को निर्णय लेना है.’

यह याचिका जाति आधारित नीतियों और आरक्षण के खिलाफ काम करने वाले संगठन ‘यूथ फॉर इक्वालिटी’ ने दायर की थी.

इस बीच, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि सिर्फ चुनाव को देखते हुए जाति आधारित जनगणना की जा रही है और यह गंभीर मामला है. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में व्यापक जातिवाद है.

वहीं, बिहार सरकार के वकील ने अदालत के समक्ष बताया कि जाति आधारित जनगणना करने के सरकार के कदम के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की जा रही हैं.

खंडपीठ के दूसरे जज जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बिहार सरकार से पूछा कि किस ‘जल्दबाजी’ में इस तरह का सर्वे किया जा रहा है.

इस पर बिहार सरकार के वकील ने जवाब दिया कि यह संविधान में निहित निर्देशक सिद्धांतों के अनुपालन का मामला है. इस पर जस्टिस पारदीवाला ने यह कहते हुए प्रतिक्रिया दी कि ‘क्या निर्देशक सिद्धांत?’

अदालत ने तब पटना हाईकोर्ट को मामला देखने और तीन दिनों में इसे ‘प्राथमिकता के साथ’ निपटाने का निर्देश दिया.

बता दें कि बिहार में जाति सर्वे का पहला चरण 7 जनवरी से 21 जनवरी के बीच आयोजित हुआ था. दूसरा चरण अप्रैल को शुरू हुआ और 15 मई तक चलेगा.

इससे पहले इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने तीन जनहित याचिकाओं (पीआईएल) को ठुकरा दिया था, जिनमें जातिगत जनगणना को रोकने के लिए अदालत से बिहार सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी.

जस्टिस बीआर गवई ने टिप्पणी की थी, ‘यह एक प्रचार हित याचिका है. अगर हम इसकी इजाजत देते हैं तो वे कैसे तय करेंगे कि कितना आरक्षण दिया जाना है? आप वापस लेना चाहते हैं? जाइए और हाईकोर्ट के समक्ष दायर कीजिए. माफ कीजिए, हम ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करते हैं.’

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