रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023 में भारत के संदर्भ में कहा गया है कि सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के ख़िलाफ़ मानहानि, राजद्रोह और राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डालने के आरोप बढ़ रहे हैं. पिछले साल इस सूचकांक में भारत 150वें पायदान पर था.
नई दिल्ली: रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने बुधवार (3 मई) को अपने विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक का 21वां संस्करण जारी किया और यह भारत के लिए बुरी खबर लेकर आया है.
रिपोर्ट के अनुसार, प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में 180 देशों में भारत 161वें पायदान पर रहा. बीते वर्ष की तुलना में भारत की रैंक 11 स्थान नीचे गिरी है. वर्ष 2022 में भारत 150वें पायदान पर रहा था. इस प्रकार भारत उन 31 देशों में शामिल है, जहां आरएसएफ का मानना है कि पत्रकारों के लिए स्थिति ‘बहुत गंभीर’ है.
भारत को इस तरह वर्गीकृत क्यों किया गया है, इस बारे में अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में आरएसएफ ने कहा है, ‘पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण मीडिया और मीडिया स्वामित्व का केंद्रीकरण सभी दिखाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और हिंदू राष्ट्रवाद के अवतार नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 से शासित ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है.’
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में पांच बिंदु शामिल होते हैं, जिनमें अंकों की गणना की जाती है और फिर देशों को रैंक दी जाती है. ये पांच – राजनीतिक संकेतक, आर्थिक संकेतक, विधायी संकेतक, सामाजिक संकेतक और सुरक्षा संकेतक हैं.
भारत के लिए सबसे चिंताजनक गिरावट सुरक्षा संकेतक श्रेणी में है, जहां भारत की रैंक 172 है. इसका मतलब है कि इस पैरामीटर पर 180 में से केवल आठ देशों की रैंक भारत से खराब है. इसलिए भारत पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के मामले में चीन, मेक्सिको, ईरान, पाकिस्तान, सीरिया, यमन, यूक्रेन और म्यांमार के अलावा दुनिया में सबसे खराब है.
सुरक्षा संकेतक ‘पत्रकारिता के तरीकों और नैतिकता के अनुसार समाचारों और सूचनाओं की पहचान करने, इकट्ठा करने और प्रसारित करने की क्षमता का मूल्यांकन करता है- जो बिना शारीरिक नुकसान, मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक संकट, या पेशेवर नुकसान के अनावश्यक जोखिम के बिना हो, उदाहरण के लिए किसी की नौकरी जाना, पेशेवर उपकरणों की जब्ती या मीडिया प्रतिष्ठानों में तोड़फोड़ जैसा कुछ न हो.’
आरएसएफ भारत के मीडिया परिदृश्य में कई गंभीर समस्याओं पर प्रकाश डालता है, जिनमें से एक स्वामित्व का केंद्रीकरण है:
‘मीडिया आउटलेट्स की भरमार स्वामित्व के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति छिपाती है. राष्ट्रीय स्तर पर केवल मुट्ठी भर कंपनिया हैं जो चारों ओर फैली हैं, जिनमें टाइम्स समूह, एचटी मीडिया लिमिटेड, द हिंदू समूह और नेटवर्क 18 शामिल हैं. देश की प्रमुख भाषा हिंदी में चार दैनिक अखबार तीन चौथाई पाठकों की हिस्सेदारी रखते हैं. क्षेत्रीय स्तर पर स्थानीय भाषाओं के प्रकाशनों में और भी केंद्रीकरण देखा जा सकता है, जैसे कि कोलकाता में बांग्ला भाषा का आनंदबाजार पत्रिका, मुंबई में मराठी में प्रकाशित लोकमत और दक्षिण भारत में मलयाला मनोरमा. सरकार के स्वामित्व वाला ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) नेटवर्क सभी समाचार रेडियो स्टेशनों का मालिक है.’
यह तथ्य इसे और भी अधिक दयनीय बनाता है कि इन कंपनियों और मोदी सरकार के बीच खुले तौर पर पारस्परिक रूप से लाभ पहुंचाने वाले संबंध हैं, इसमें कहा गया है: ‘मुख्य उदाहरण निस्संदेह मुकेश अंबानी- जो अब मोदी के करीबी मित्र हैं- के नेतृत्व वाला रिलायंस इंडस्ट्रीज समूह है, जो 70 से अधिक मीडिया आउटलेट का मालिक है जिनके कम से कम 80 करोड़ (800 मिलियन) फॉलोवर हैं. इसी तरह, व्यवसायी गौतम अडानी द्वारा 2022 के अंत में एनडीटीवी चैनल के अधिग्रहण ने मुख्यधारा के मीडिया में बहुलवाद के अंत का संकेत दिया है. अडानी नरेंद्र मोदी के बहुत करीबी हैं. ‘
आरएसएफ के अनुसार, कानूनी रूप से भी सत्ता में बैठे लोगों द्वारा पत्रकारों को कई तरह से परेशान किया जाता है- जिसमें राजद्रोह और आपराधिक मानहानि के आरोप शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारतीय कानून सैद्धांतिक रूप से सुरक्षात्मक है लेकिन सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ मानहानि, राजद्रोह, अदालत की अवमानना और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के आरोप बढ़ रहे हैं. उन पर ‘राष्ट्र-विरोधी’ होने का ठप्पा लगाया जाता है.’
पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में भी भारत खराब प्रदर्शन कर रहा है. आरएसएफ ने कहा है, ‘हर साल औसतन तीन या चार पत्रकार अपने काम के सिलसिले में जान गंवा देते हैं. भारत मीडिया के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है.’
रिपोर्ट विशेष तौर पर ऑनलाइन किए जाने वाले महिला पत्रकारों को निशाना बनाकर किए जाने वाले उत्पीड़न और कश्मीर में प्रेस के साथ पुलिस के हस्तक्षेप के बारे में बात करती है.
दक्षिण एशिया में भी भारत सूचकांक में सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में शामिल है. हालांकि, बांग्लादेश थोड़ा खराब स्थिति में 163वीं रैंक पर है, लेकिन पाकिस्तान भारत से कई रैंक आगे है. यहां तक कि अफगानिस्तान, जहां तालिबान सरकार स्वतंत्र पत्रकारों की दोस्त नहीं मानी जाती है, ने भी 152वीं रैंक के साथ बेहतर प्रदर्शन किया है. भूटान 90वें और श्रीलंका 135वें स्थान पर है.