सूरत अदालत के न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुखभाई वर्मा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें दो साल की सज़ा सुनाई थी. वर्मा समेत 68 न्यायिक अधिकारियों को 65 प्रतिशत कोटा नियम के तहत ज़िला न्यायाधीशों के पद पर पदोन्नति के गुजरात सरकार और हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट 8 मई को न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुखभाई वर्मा समेत 68 न्यायिक अधिकारियों को 65 प्रतिशत कोटा नियम के तहत जिला न्यायाधीशों के पद पर पदोन्नति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा.
न्यायिक मजिस्ट्रेट वर्मा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें दो साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी.
सीनियर सिविल जज कैडर के दो न्यायिक अधिकारियों – गुजरात सरकार के कानूनी विभाग में अवर सचिव रविकुमार महेता और गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सहायक निदेशक सचिन प्रतापराय मेहता – द्वारा जिला जज कैडर में 68 न्यायिक अधिकारियों के चयन को चुनौती दी गई है.
28 मार्च को दायर याचिका में नियुक्ति को रद्द करने के लिए अदालत के निर्देश की मांग की गई है.
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता पुरविश मलकान ने 10 मार्च को गुजरात हाईकोर्ट द्वारा जारी चयन सूची और राज्य सरकार द्वारा उनकी नियुक्ति की अधिसूचना को रद्द करने के लिए शीर्ष अदालत के निर्देश की मांग की.
यह भी मांग की गई है कि हाईकोर्ट को योग्यता के साथ वरिष्ठता के सिद्धांत पर एक नई मेरिट सूची तैयार करने का निर्देश दिया जाए.
बीते 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने उप-न्यायिक मामले पर न्यायाधीशों के ट्रांसफर पर 18 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी करने के लिए हाईकोर्ट से अपना असंतोष व्यक्त किया था.
अधिसूचना के अनुसार, न्यायिक मजिस्ट्रेट वर्मा को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में राजकोट जिला अदालत में ट्रांफसर किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इस उल्लंघन को प्रथमदृष्टया ‘अदालत की प्रक्रिया को पार करने’ वाला कदम बताया.
इस आशय के लिए शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के सचिव से ‘पदोन्नति देने में असाधारण तत्परता दिखाने और कार्यवाही के अंतिम परिणाम के अधीन पदोन्नति प्रदान करने की अधिसूचना दिनांक 18/04/2023 को जारी करने पर स्पष्टीकरण मांगा.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तथ्य के बावजूद कि प्रतिवादी, विशेष रूप से राज्य सरकार वर्तमान कार्यवाही से अवगत थी और तथ्य यह है कि, वर्तमान कार्यवाही में इस न्यायालय ने नोटिस को 28/04/2023 को वापस करने योग्य बना दिया था, राज्य सरकार ने पदोन्नति आदेश दिनांक 18/04/2023 अर्थात वर्तमान कार्यवाही में इस न्यायालय द्वारा जारी नोटिस की प्राप्ति के बाद जारी किया है.’
अदालत के अनुसार, ‘पदोन्नति आदेश दिनांक 18/04/2023 में राज्य सरकार ने भी कहा है कि जो पदोन्नति दी जाती है वह कार्यवाही के परिणाम के अधीन होती है. हम उस हड़बड़ी की सराहना नहीं करते हैं, जिसमें राज्य ने 18/04/2023 को पदोन्नति आदेश को मंजूरी दी और पारित किया, जबकि यह मामला इस कोर्ट के कब्जे में था और नोटिस जारी करते हुए एक विस्तृत आदेश पारित किया गया था.’
आगे कहा गया, ‘यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चयन वर्ष 2022 का था और इसलिए पदोन्नति आदेश पारित करने में कोई असाधारण आवश्यकता नहीं थी और वह भी तब जब इस मामले को यह अदालत देख रही थी.’
अदालत ने विशेष रूप से गुजरात हाईकोर्ट से जवाब मांगा कि क्या संबंधित पद पर ‘पदोन्नति वरिष्ठता के साथ योग्यता’ (Seniority-cum-Merit) या ‘योग्यता के साथ वरिष्ठता’ (Merit-cum-Seniority) के आधार पर दी जानी है और साथ ही पूरी योग्यता सूची (Merit List) को रिकॉर्ड पर रखने को कहा है.
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि कई चयनित उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक प्राप्त करने के बावजूद कम अंक वालों को नियुक्त किया गया है, इस प्रकार ‘योग्यता के साथ वरिष्ठता’ के सिद्धांत को छोड़कर ‘वरिष्ठता के साथ योग्यता’ के आधार पर नियुक्तियां की गईं.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि भर्ती नियमों के अनुसार जिला जज के पद को ‘योग्यता के साथ वरिष्ठता’ के सिद्धांत के आधार पर 65 प्रतिशत आरक्षण रखते हुए और उपयुक्तता परीक्षा पास करके भरा जाना चाहिए.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने बीते 13 अप्रैल को उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया था, जिसमें गुजरात सरकार और हाईकोर्ट और 68 चयनित उम्मीदवार शामिल थे. उत्तरदाताओं से 28 अप्रैल तक जवाब देने की उम्मीद थी.
बीते 23 मार्च को सूरत की एक अदालत के न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुखभाई वर्मा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनकी कथित ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ दायर 2019 के आपराधिक मानहानि मामले में दो साल की जेल की सजा सुनाई थी.
राहुल के खिलाफ भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी द्वारा 13 अप्रैल, 2019 को केस दर्ज कराया गया था. उन्होंने कर्नाटक के कोलार में लोकसभा चुनाव के समय एक रैली में राहुल द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर शिकायत की थी.
राहुल गांधी ने कथित तौर पर रैली के दौरान कहा था, ‘सभी चोर, चाहे वह नीरव मोदी हों, ललित मोदी हों या नरेंद्र मोदी, उनके नाम में मोदी क्यों है.’
दोषी ठहराए जाने के अगले दिन 24 मार्च को राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था.
बीते 20 अप्रैल को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा की सूरत की एक अदालत ने इस मामले में राहुल गांधी को मिली दो साल की सजा पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया था.
अपील के भाजपा से सीधे संबंध के साथ राजनीतिक निहितार्थ थे, क्योंकि सत्र न्यायालय के फैसले से राहुल गांधी को संसद में लौटने में मदद मिल सकती थी.
बीते 13 अप्रैल को द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया था कि न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा ने तुलसीराम प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामले में भाजपा नेता और अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के वकील के रूप में कार्य किया था.
इसके बाद राहुल गांधी ने सूरत की सत्र अदालत के फैसले से राहत पाने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जस्टिस गीता गोपी को बीते 27 अप्रैल को मामले की सुनवाई करनी थी, लेकिन उन्होंने बिना कोई कारण बताए खुद को इससे अलग कर लिया था.
अब गुजरात हाईकोर्ट में जस्टिस हेमंत एम. प्रच्छक इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं. जस्टिस प्रच्छक 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक के मामले में आरोपी भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी का बचाव करने वाले वकीलों में से एक थे.