मणिपुर का बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय ख़ुद को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा है, जिसका नगा और कुकी समेत कई आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं. इस विवाद के केंद्र में मणिपुर हाईकोर्ट का वह आदेश भी है, जिसमें मेईतेई को एसटी दर्जा देने संबंधी बात कही गई थी.
नई दिल्ली: बहुसंख्यक मेईतेई समाज द्वारा खुद का अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग के विरोध में निकाले गए एक मार्च के दौरान बीते 3 मई को मणिपुर में भड़की हिंसा में कम से कम 54 लोगों की मौत हो गई है.
अधिकारियों ने बताया कि 54 मृतकों में से 16 शव चुराचांदपुर जिला अस्पताल के मुर्दाघर में रखे हुए हैं, जबकि 15 शव इंफाल पूर्वी जिले के जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान में हैं.
अधिकारी ने बताया कि इंफाल पश्चिम जिले के लाम्फेल में क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान ने 23 लोगों के मरने की सूचना दी है.
समाचार वेबसाइट असम ट्रिब्यून में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, इस बीच पुलिस ने कहा है कि चुराचांदपुर जिले में शुक्रवार रात दो अलग-अलग मुठभेड़ों में पहाड़ी इलाके में रहने वाले पांच उग्रवादी मारे गए और इंडिया रिजर्व बटालियन के दो जवान घायल हो गए.
पुलिस ने कहा कि चुराचांदपुर जिले के सैटन में सुरक्षा बलों और उग्रवादियों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें चार उग्रवादी मारे गए.
पुलिस ने कहा, ‘टोरबंग में आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों पर गोलियां चलाईं, जिससे उन्हें जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी. जिसमें एक उग्रवादी मारा गया और इंडिया रिसर्व बटालियन (आईआरबी) के दो जवान घायल हो गए.’
इंडियन एक्सप्रेस ने मणिपुर में फिर से हिंसा भड़कने की जानकारी देते हुए शनिवार को अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि चुराचांदपुर में चार लोगों की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई जब सुरक्षा बल इलाके से मेईतेई के लोगों को निकाल रहे थे.
इस संबंध में आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा) एसोसिएशन ने कहा है कि इंफाल में लेमिनथांग हाओकिप के रूप में पहचाने गए एक कर सहायक (टैक्स असिस्टेंट) की हत्या कर दी गई है. एसोसिएशन ने ट्वीट किया, ‘आईआरएस एसोसिएशन हिंसा के नृशंस कृत्य की कड़ी निंदा करता है, जिसके परिणामस्वरूप इम्फाल में टैक्स असिस्टेंट लेमिनथांग हाओकिप की मौत हो गई. कोई भी कारण या विचारधारा अपनी ड्यूटी कर रहे एक निर्दोष लोक सेवक की हत्या को सही नहीं ठहरा सकते हैं. इस मुश्किल घड़ी में हमारी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं.’
IRS Association strongly condemns the dastardly act of violence resulting in the death of Sh. Letminthang Haokip, Tax Assistant in Imphal. No cause or ideology can justify the killing of an innocent public servant on duty. Our thoughts are with his family in this difficult hour. pic.twitter.com/MQgeCDO95O
— IRS Association (@IRSAssociation) May 5, 2023
चुराचांदपुर में यह गोलीबारी राज्य के बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच भयंकर संघर्ष के कुछ दिनों के बाद हुई है. इसकी शुरुआत बीते बुधवार (3 मई) को हुई हिंसा से हुई थी.
जहां राज्य की राजधानी इंफाल ने कुकी समुदाय को हिंसा का सामना करना पड़ा है, वहीं मेईतेई समुदाय को पहाड़ी जनजातियों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में निशाना बनाया गया है.
चुराचांदपुर में ताजा गोलीबारी तब हुई जब इलाके से मेईतेई तो निकाले जाने की कार्रवाई में आदिवासियों ने कथित रूप से हस्तक्षेप करने की कोशिश की.
चुराचांदपुर निवासी शोधकर्ता मुआन हंससिंह (24 वर्ष) ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि कस्बे में अशांति शुक्रवार शाम करीब 7 बजे शुरू हुई.
उन्होंने आरोप लगाया, ‘सुरक्षाकर्मियों की तैनाती के कारण लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं. शाम करीब 7 बजे हमें सूचना मिली कि सुरक्षाकर्मी कस्बे में फंसे मेईतेई लोगों को निकालने जा रहे हैं. (इस कार्रवाई का विरोध करने वाले) लोग शहर के प्रमुख मार्ग तिदिम रोड पर इसे बंद करने के लिए एकत्र हो गए. हमने अवरोध खड़ा करने में महिलाओं को आगे कर दिया, क्योंकि हमने सोचा था कि उन पर गोली नहीं चलाई जाएगी, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने गोलियां चलाईं और चार लोगों की मौत हो गई.’
इंफाल में असम राइफल्स के एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें इनपुट मिला था कि ‘80 से 200’ लोग जमा हुए थे और गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई.
उन्होंने कहा, ‘राज्य के विभिन्न हिस्सों से लोगों को निकालने का काम लगातार जारी है.’ साथ ही कहा कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में सड़कों को अवरुद्ध करना आम बात है.
केंद्रीय सुरक्षा बलों के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी चार लोगों के मारे जाने की पुष्टि की.
इस बीच, सीआरपीएफ के डीआईजी (ऑपरेशन) ने अपने बल को एक आंतरिक संचार में छुट्टी पर गए सीआरपीएफ कर्मचारियों और उनके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैं.
यह कदम छुट्टी पर गए सीआरपीएफ कॉन्स्टेबल चोंखोलेन हाओकिप की गोली मारकर हत्या किए जाने के एक दिन बाद उठाया गया है. हाओकिप को तब गोली मार दी गई थी जब उन्होंने गांव में आग लगाने वाले लोगों को रोकने की कोशिश की थी.
लगभग 13 हजार लोगों को बचाया गया
असम ट्रिब्यून के मुताबिक एक रक्षा प्रवक्ता ने कहा कि लगभग 13,000 लोगों को बचाकर सुरक्षित आश्रयों में भेजा गया है. कुछ को सेना के शिविरों में भेज दिया गया, क्योंकि सेना ने चुराचांदपुर, मोरेह, काकचिंग और कांगपोकपी जिलों को अपने ‘नियंत्रण’ में ले लिया.
इंफाल घाटी में शनिवार को जनजीवन सामान्य नजर आया, क्योंकि दुकानें और बाजार फिर से खुल गए और सड़कों पर कारें चलने लगीं. सभी प्रमुख क्षेत्रों और सड़कों पर सेना की टुकड़ियों, रैपिड एक्शन फोर्स और केंद्रीय पुलिस बलों को भेजकर सुरक्षा की स्थिति को मजबूत किया गया है.
रक्षा अधिकारी ने शुक्रवार रात कहा, ‘पिछले 12 घंटों में इंफाल पूर्वी और पश्चिमी जिलों में आगजनी की छिटपुट घटनाएं और असामाजिक तत्वों द्वारा नाकेबंदी करने का प्रयास किया गया. हालांकि, स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया था.’
हालांकि, घटनाओं का विवरण नहीं दिया गया.
कई सूत्रों ने कहा कि समुदायों के बीच लड़ाई में कई लोग मारे गए और लगभग 100 घायल हो गए. हालांकि पुलिस इसकी पुष्टि करने को तैयार नहीं है.
हिंसा में मारे गए लोगों के शव इंफाल पूर्व और पश्चिम, चुराचांदपुर और बिशेनपुर जैसे जिलों से लाए गए हैं. गोली लगने से घायल कई लोगों का इलाज रिम्स और जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान में भी चल रहा है.
पीआरओ ने कहा, ‘सुरक्षा बलों द्वारा त्वरित प्रतिक्रिया के कारण हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों के विभिन्न अल्पसंख्यक इलाकों से सभी समुदायों के नागरिकों को बचाया गया. नतीजतन, चुराचांदपुर, कांगपोकपी, मोरेह और काकचिंग अब पूरी तरह से नियंत्रण में हैं और कल (शुक्रवार) रात से किसी बड़ी हिंसा की सूचना नहीं है.’
सेना और असम राइफल्स के लगभग 10,000 सैनिकों को राज्य में तैनात किया गया है. यह राज्य बीते 3 मई से मेईतेई समुदाय (जो मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं) और नगा तथा कुकी आदिवासियों (जो पहाड़ी जिलों के निवासी हैं) के बीच हुई हिंसक झड़पों की चपेट में है.
रक्षा अधिकारी ने कहा, ‘लगभग 13,000 नागरिकों को बचाया गया है, जो वर्तमान में कंपनी ऑपरेटिंग बेस और सैन्य गैरीसन के भीतर विशेष रूप से बनाए गए विभिन्न बोर्डिंग सुविधाओं में रह रहे हैं.’
वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और शीर्ष अधिकारियों के साथ मणिपुर में स्थिति की समीक्षा की. केंद्र ने वहां शांति बनाए रखने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल और दंगा रोधी वाहनों को भी भेजा है.
सूत्रों ने बताया कि लगभग 1,000 और केंद्रीय अर्धसैनिक बल दंगा रोधी वाहनों के साथ शुक्रवार को मणिपुर पहुंच गए थे.
इस बीच, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) के एक प्रवक्ता ने कहा कि मणिपुर जाने वाली ट्रेनों को शुक्रवार को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया.
बहुसंख्यक मेईतेई को एसटी दर्जा देने की मांग पर विवाद
मालूम हो कि मणिपुर का बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग कर रहा है, जिसका आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे उनके संवैधानिक सुरक्षा उपाय और अधिकार प्रभावित होंगे.
रिपोर्ट के अनुसार, मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान चुराचांदपुर जिले के तोरबुंग क्षेत्र में पहली बार हिंसा भड़की थी.
मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते मार्च महीने में राज्य सरकार को मेईतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग पर चार सप्ताह के भीतर केंद्र को सिफारिश भेजने के लिए कहा था, जिसके बाद नगा और कुकी समुदाय सहित अन्य आदिवासियों ने इस मार्च का आयोजन किया था.
पुलिस ने कहा कि टोरबुंग में मार्च के दौरान एक सशस्त्र भीड़ ने मेईतेई समुदाय के लोगों पर कथित तौर पर हमला किया, जिसके कारण घाटी के जिलों में जवाबी हमले हुए जिसने पूरे राज्य में हिंसा भड़क गई.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.
सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर
इस बीच पहाड़ी क्षेत्र समिति (एचएसी) के अध्यक्ष और भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई ने सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है, जिसमें मणिपुर हाईकोर्ट के 27 मार्च के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जो मेईतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे की बात करता है.
राज्य में बढ़ते तनाव के केंद्र में वही आदेश है.
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को मेईतेई को एसटी का दर्जा देने के लिए एक सिफारिश केंद्र को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था.
अप्रैल में हाईकोर्ट के आदेश के सार्वजनिक होने के बाद एचएसी ने 20 अप्रैल को आदेश की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि एचएसी से न तो परामर्श किया गया और न ही मामले में पक्षकार बनाया गया था. इसने राज्य और केंद्र सरकारों से भी आदेश को चुनौती देने की अपील की थी.
हाईकोर्ट के आदेश और एचएसी के प्रस्ताव की पृष्ठभूमि में मौजूदा एसटी समुदायों द्वारा मेईतेई को एसटी में शामिल किए जाने के विरोध में प्रदर्शन बढ़ गए और 3 मई को हिंसा भड़क उठी.
द हिंदू के मुताबिक, गुरुवार (4 मई) को दायर याचिका में भाजपा विधायक गंगमेई ने अपने वकीलों के माध्यम से तर्क दिया है कि 27 मार्च के हाईकोर्ट के आदेश के कारण इस मुद्दे पर राज्य में तनाव बढ़ गया है, जिसके कारण हिंसा जारी है.
गंगमेई ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने विवादित आदेश जारी करते समय तीन मामलों में गलती की थी. उन्होंने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट राज्य सरकार को किसी समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने के लिए कोई सिफारिश प्रस्तुत करने का निर्देश सिर्फ इसलिए नहीं दे सकता, क्योंकि उनका एक प्रतिनिधित्व मौजूद है.
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकालने में गलती की है कि यह मुद्दा 10 साल से लंबित है और मेईतेई आदिवासी हैं.
गंगमेई ने तर्क दिया कि भले ही अदालत ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला हो कि मेईतेई एक जनजाति के रूप में योग्य हैं, फिर भी वह उन्हें एसटी में शामिल करने की सिफारिश के लिए राज्य सरकार को निर्देश नहीं दे सकती है.
इसके अलावा उन्होंने तर्क दिया कि अगर इस तरह के निर्देश जारी किए जाने थे तो भी पहाड़ी क्षेत्र समिति को नोटिस दिया जाना चाहिए था और उसे सुना जाना चाहिए था.
याचिका में कहा गया है कि वर्तमान में केंद्र सरकार के पास मेईतेई को एसटी में शामिल करने का कोई प्रस्ताव लंबित नहीं है. इसके अलावा राज्य द्वारा केंद्र सरकार को ऐसा कोई प्रस्ताव कभी नहीं भेजा गया है, जो कि समावेशन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक आवश्यक कदम है.