मणिपुर ट्राइबल फोरम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि हिंसा के दौरान उनके द्वारा सूचीबद्ध किए गए प्रत्येक मौत के मामले में एफ़आईआर दर्ज कर मुक़दमा एसआईटी द्वारा चलाया जाए. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कर्नाटक में चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के बजाय हिंसा प्रभावित मणिपुर के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करने को कहा.
नई दिल्ली: मणिपुर में जारी हिंसा के बीच सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई है, जिसमें प्रभावशाली मेईतेई समुदाय के सदस्यों द्व्रारा कथित रूप से आदिवासियों पर किए गए अत्याचारों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने की मांग की गई है.
गौरतलब है कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई से तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे. तब से शुरू हुई हिंसा में आदिवासियों पर मेईतेई समूहों द्वारा हमले और आदिवासियों द्वारा उन पर हमले की खबरें आ रही हैं.
यह मुद्दा फिर से तब ज्वलंत हो गया, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में मणिपुर ट्राइबल फोरम (एमटीएफ) द्वारा शनिवार (6 मई) को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में कहा गया है कि 3 मई से लगभग 40 चर्चों को तोड़ दिया गया है, घरों, वाहनों और यहां तक कि अस्पतालों को भी जला दिया गया है. इसके अलावा आदिवासियों के 58 गांवों व उसके आसपास के इलाकों में प्रभावशाली समुदाय की भीड़ द्वारा हमला किया गया है.
#WATCH | Rapid Action Force (RAF) conducts flag march in Imphal, Manipur for area dominance.#ManipurViolence pic.twitter.com/yCOQdBWS1n
— ANI (@ANI) May 6, 2023
याचिका में दावा किया गया है कि हमलों में लगभग 30 आदिवासी मारे गए और 132 घायल हो गए. आरोप लगाया गया है कि ये हमले मेईतेई समुदाय के सदस्यों द्वारा किए गए थे.
इसमें कहा गया है कि इंफाल में सुरक्षा बलों द्वारा स्थापित किए गए अस्थायी शिविरों में हजारों आदिवासी रह रहे हैं और कई लोग अपनी निजी संपत्तियों में फंसे हैं, जो अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं.
आपातकालीन राहत के रूप में याचिका में मांग की गई है कि पहाड़ी जिले के सभी आदिवासी जो वर्तमान में इंफाल या घाटी क्षेत्र में हैं, उन्हें केंद्रीय बलों की सुरक्षा में उनके संबंधित जिलों में उनके घरों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए और हमले के जोखिम वाली सभी आदिवासी बस्तियों में पर्याप्त रूप से सुरक्षा दी जानी चाहिए.
इसमें दावा किया गया है कि सुरक्षा बलों के शिविरों में स्थिति गंभीर है, कई लोग बिना भोजन के हैं.
याचिका में कहा गया है कि लगभग 15 गांवों के निवासी, जो हमलों के चलते जंगलों में भाग गए थे, उन्हें भी सुरक्षित निकाले जाने की जरूरत है.
इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने मांग की है कि उनके द्वारा सूचीबद्ध प्रत्येक मौत के मामले में एफआईआर दर्ज की जाए और कहा है कि इन मामलों की जांच व मुकदमा एसआईटी द्वारा चलाया जाए, जिसकी अध्यक्षता असम के पूर्व डीजीपी हरेकृष्ण डेका करें और निगरानी मेघालय राज्य मानवाधिकार आयोग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष और पूर्व मुख्य न्यायाधीश तिनलियानथांग वैफेई करें, जो मूल रूप से मणिपुर के रहने वाले हैं.
इसके अलावा, मणिपुर ट्राइबल फोरम ने मांग की है कि राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह भीड़ द्वारा तोड़े गए लगभग 40 चर्चों का पुनर्निर्माण करे और ऐसे सभी धार्मिक संस्थानों की रक्षा करे, जो भीड़ की हिंसा में नुकसान पहुंचाए जाने के जोखिम में हैं.
इस दौरान याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि नुकसान के उनके आकलन से पता चलता है कि कुकी समुदायों के आदिवासी लोग हिंसा का खामियाजा भुगत रहे हैं, उन्होंने कहा कि मेईतेई समुदाय से संबंधित कुछ चर्चों में भी तोड़फोड़ की गई है.
#WATCH | #ManipurViolence | Several people take refuge in a shelter camp in Moirang, Manipur after their houses were burnt down by miscreants. pic.twitter.com/x9QihAtiym
— ANI (@ANI) May 6, 2023
मणिपुर में मेइतेई समुदाय के निवासियों ने द हिंदू को बताया कि उनके कई लोगों को मोरेह और चुराचांदपुर जैसे इलाकों में हिंसा का सामना करना पड़ा है और वे पहाड़ी जिलों में भी फंसे हुए हैं.
ट्राइबल फोरम ने याचिका में कहा है कि उसके पास ऐसे वीडियो और तस्वीरें हैं, जो भीड़ द्वारा चर्चों को जलाते और गांवों पर हमला कराते दिखाते हैं. साथ ही जोड़ा कि बड़ी संख्या में नफरत भरे भाषणों को भी ऑनलाइन फैलाए जाने की संभावना है.
इसमें कहा गया है कि आदिवासी लोगों की तलाश कर रही भीड़ द्वारा कई इलाकों में ‘घर-घर तलाशी’ ली जा रही है. आगे चिंता जताई गई है कि संघर्ष मणिपुर के बाहर तक फैल सकता है.
याचिका में कहा गया है कि संघर्ष पहले ही दिल्ली तक फैल चुका था, जहां विजय नगर में दो आदिवासियों पर कथित तौर पर हमला किया गया. साथ ही कुकी समुदाय के सदस्यों पर कथित तौर पर हमला हुआ.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय सेना ने रविवार को एक बयान में कहा कि सेना और असम राइफल्स ने संकटग्रस्त मणिपुर में अब तक 23,000 नागरिकों को बचाया है और उन्हें ऑपरेटिंग बेस में ले जाया गया है.
इससे पहले शनिवार देर रात मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा था कि चुराचांदपुर जिले में ‘कानून और व्यवस्था की स्थिति’ में सुधार तथा ‘राज्य सरकार और विभिन्न हितधारकों के बीच बातचीत’ के बाद मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि कर्फ्यू में आंशिक रूप से ढील दी जाएगी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, चुराचांदपुर जिले में जनजीवन सामान्य होने के बीच रविवार सुबह कर्फ्यू में ढील के दौरान लोगों को भोजन, दवाइयां और अन्य जरूरी सामान खरीदने के लिए अपने घरों से बाहर निकलते देखा गया.
इस बीच, एक रक्षा प्रवक्ता के हवाले से बताया गया है कि सेना ने यूएवी (मानव रहित हवाई वाहन) और इंफाल घाटी के भीतर हेलीकॉप्टरों की तैनाती के जरिये हवाई निगरानी में भी काफी वृद्धि की है.
उत्तर प्रदेश, सिक्किम और महाराष्ट्र ने अपने राज्य के छात्रों को मणिपुर से निकालने की बात कही है.
इरोम शर्मिला ने प्रधानमंत्री-गृहमंत्री से राज्य का दौरा करने की अपील की
इस बीच, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू ने मणिपुर की महिलाओं से अपील की कि उनकी जातीय पहचान कुछ भी हो, वे संघर्षग्रस्त राज्य में शांति लाने के लिए मिलकर काम करें.
Tribals in Manipur are on the road to escape to neighboring states from the violence by non-tribals, while Modi is doing his road show in Karnataka! pic.twitter.com/IAgNViB9AO
— Ashok Swain (@ashoswai) May 6, 2023
शनिवार को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से ‘समस्या को समझने’ और ‘उसका समाधान करने’ के लिए मणिपुर का दौरा करने का अनुरोध किया. मणिपुर इरोम शर्मिला का गृह राज्य है.
‘आयरन लेडी’ के तौर पर जानी जाने वाली इरोम शर्मिला ने कहा कि ‘मणिपुर जल रहा है और अपने लोगों की पीड़ा को देखकर मुझे बहुत दुख हुआ है. मैं सभी, मेईतेई और आदिवासियों, से एकजुटता दिखाने और हिंसा समाप्त करने की अपील करती हूं.’
बता दें कि इरोम शर्मिला 16 वर्षों तक भूख हड़ताल पर रही थीं, उन्हें भोजन की नली से जबरन खिलाया जाता था. वह राज्य में शांति के लिए काम कर रहे एक महिला आंदोलन का चेहरा रही थीं, जिसमें सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफस्पा) को हटाने की मांग की गई थी. यह कानून सुरक्षा बलों को असीमित शक्तियां देता था.
उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में और अधिक सैनिक भेजने से हालात नहीं सुधरेंगे और प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री शाह या भारत के मुख्य न्यायाधीश से मणिपुर का दौरा करने और समस्या को समझने, उसका मूल कारण पता लगाने और फिर उसका समाधान खोजने का आग्रह किया.
कर्नाटक चुनाव प्रचार के बजाय मणिपुर के प्रति कर्तव्य निभाएं प्रधानमंत्री: कांग्रेस
द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस ने बीते शुक्रवार (5 मई) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कर्नाटक में चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के बजाय हिंसा प्रभावित मणिपुर के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करने को कहा. साथ ही राज्य में शांति बनाए रखने में ‘पूरी तरह विफल’ रहने के लिए गृह मंत्री अमित शाह को बर्खास्त करने की मांग की.
कांग्रेस ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की भी मांग की.
पार्टी ने कहा, ‘मोदी जी, आप देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं और कर्नाटक के लोग भी देख रहे हैं कि मणिपुर में क्या हो रहा है और चाहते हैं कि आप पहले राज्य में शांति बहाल करके इसे जलने से बचाएं.’
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, ‘कर्नाटक में वोट मांगना आपके ‘कर्तव्य’ के खिलाफ है और हम आपको याद दिलाना चाहते हैं कि आपका कर्तव्य मणिपुर को बचाना है.’
मालूम हो कि मणिपुर का बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग कर रहा है, जिसका आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे उनके संवैधानिक सुरक्षा उपाय और अधिकार प्रभावित होंगे.
मेईतेई समाज की मांग के विरोध में आदिवासी संगठनों द्वारा निकाले गए एक मार्च के दौरान बीते 3 मई को मणिपुर में भड़की हिंसा में अब तक कम से कम 54 लोगों की मौत हो गई है.
बीते 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा आयोजित ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान चुराचांदपुर जिले के तोरबुंग क्षेत्र में पहली बार हिंसा भड़की थी.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.