मार्च महीने में मणिपुर हाईकोर्ट ने मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए राज्य सरकार को सिफ़ारिश करने का निर्देश दिया था. यह निर्णय विवाद के कारणों में से एक है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी समुदाय को एससी/एसटी के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, राष्ट्रपति के पास होती है.
गुवाहाटी/नई दिल्ली: मणिपुर में जातीय हिंसा के चार दिन बाद 7 मई को एक असहज सी शांति देखी गई, हजारों लोगों ने या तो पड़ोसी राज्यों में शरण ले ली या उन्हें संघर्ष क्षेत्रों से निकाल लिया गया.
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 8 मई को मणिपुर संकट को एक ‘मानवीय समस्या’ कहा और इस बात को नोट किया कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.
दरअसल मणिपुर का बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग कर रहा है, जिसका राज्य के आदिवासी समुदायों की ओर से विरोध हो रहा है. बीते मार्च महीने में मणिपुर हाईकोर्ट ने मेईतेई समुदाय को एसटी में शामिल करने के लिए राज्य सरकार को सिफारिश करने का निर्देश दिया था.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और मणिपुर सरकार को संबोधित करते हुए कहा, हमने लोगों, संपत्ति की सुरक्षा और बहाली तथा स्थिरीकरण की आवश्यकता के बारे में अपनी चिंता स्पष्ट कर दी है. यह एक मानवीय समस्या है. हम जीवन और संपत्ति के नुकसान के बारे में गहराई से चिंतित हैं.’
केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से अदालत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए थे.
अदालत ने केंद्र और मणिपुर सरकार को विस्थापित लोगों को बुनियादी सुविधाएं, भोजन और दवा उपलब्ध कराने के लिए राहत शिविरों में उचित व्यवस्था करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
अदालत ने कहा कि जिन लोगों को चिकित्सा देखभाल की जरूरत है, उन्हें सेना या अन्य उपयुक्त अस्पतालों में ट्रांसफर किया जाना चाहिए.
पीठ ने सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि ‘विस्थापित लोग वापस लौटने में सक्षम हों’. इस पर मेहता ने जवाब दिया, ‘यही प्राथमिकता है’.
अदालत ने कहा कि सरकार को ‘विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास और धार्मिक पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए’.
अदालत ने मेहता की दलील दर्ज की कि ‘उपयुक्त मंच के समक्ष मणिपुर हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के 27 मार्च, 2023 के आदेश के संबंध में उचित कदम उठाए जा रहे हैं’.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘आपको हाईकोर्ट को संविधान पीठ के फैसलों के बारे में बताना चाहिए था, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट के पास शक्ति नहीं है. किसी समुदाय को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में नामित करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास होती है.’
सीजेआई ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े से यह बात कही, जिन्होंने मामले में मूल याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया था, जिसके कारण मणिपुर हाईकोर्ट ने 27 मार्च को आदेश (मेईतेई को एसटी में शामिल करने की सिफारिश) दिया था.
मणिपुर विधानसभा की पहाड़ी क्षेत्र समिति (एचएसी) के अध्यक्ष और भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई द्वारा शीर्ष अदालत में दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि हाईकोर्ट के आदेश के कारण मणिपुर में झड़पें हुईं.
गंगमेई और मणिपुर ट्राइबल फोरम दोनों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने विस्थापितों की सुरक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.
मणिपुर ट्राइबल फोरम ने भी हिंसा के दौरान आदिवासी समुदायों पर मेईतेई समुदाय के कथित अत्याचारों की जांच के लिए एसआईटी की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है.
द हिंदू के अनुसार, इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा, ‘यह हमारे काम का हिस्सा है.’
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पिछले दो दिनों में हिंसा की कोई घटना नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि अदालत को राज्य में स्थिति सामान्य होने तक इंतजार करना चाहिए.
उन्होंने अदालत को बताया कि राज्य में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की 52 कंपनियां और सेना/असम राइफल्स के 105 टुकड़ियां तैनात की गई हैं. अशांत इलाकों में फ्लैग मार्च किया गया. राज्य ने एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी को अपना सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया था और केंद्र ने मणिपुर के मुख्य सचिव के रूप में पदभार संभालने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी को वापस भेजा था.
उन्होंने कहा कि पिछले दो दिनों में कई घंटों के लिए कर्फ्यू में ढील दी गई थी. शांति के लिए बैठकें आयोजित की गईं और लगातार निगरानी की गई. उन्होंने कहा कि हेलीकॉप्टर और ड्रोन इलाके में गश्त कर रहे हैं. विस्थापितों को आश्रय, भोजन और दवा उपलब्ध कराने के लिए राहत शिविर खोले गए हैं.
मेहता ने आगे कहा, ‘जमीन पर सेना, अर्धसैनिक बल और अन्य एजेंसियां काम कर रही हैं. वे सफल रहे हैं. स्थिति सामान्य हो रही है. बड़े हित को देखते हुए इस मामले को एक सप्ताह या 10 दिनों तक के लिए टाल दें.’
अदालत ने कहा कि उसने अपनी चिंता व्यक्त की है, लेकिन सरकार को यह नहीं कह सकती कि ‘इतने सारे उपकरणों के साथ इस क्षेत्र में जाओ’.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, ‘सरकार को हमारी चिंता को लागू करना है, जो हर नागरिक की चिंता है. इसमें संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि वे ऐसा कर रहे हैं.’
खंडपीठ ने कहा कि वह नहीं चाहती कि अदालत की सुनवाई राज्य में किसी भी चीज को अस्थिर करने का एक और उदाहरण बने.
अदालत ने केंद्र और राज्य को 17 मई को सुनवाई की अगली तारीख से पहले एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.
कर्फ्यू में ढील, मोबाइल इंटरनेट बहाल नहीं करने का निर्णय
द हिंदू की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर के नवनियुक्त सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने बताया कि हालांकि हालात में सुधार के बाद कर्फ्यू में कुछ ढील दी गई थी, लेकिन राज्य में मोबाइल इंटरनेट को बहाल नहीं करने का निर्णय लिया गया है.
उन्होंने 7 मई को मरने वालों की अनुमानित संख्या 37 बताई और कहा कि प्रशासन इस बात की पुष्टि कर रहा है कि सभी मौतें हिंसा के कारण हुईं या नहीं. हालांकि, अस्पताल में शवों की संख्या के आधार पर मृतकों का अनौपचारिक आंकड़ा 50 को पार कर गया है. इससे पहले, एक अधिकारी ने ही 54 मौतें होने की पुष्टि की थी.
अशांति के बीच मणिपुर ने एक नए मुख्य सचिव की नियुक्ति की है और इस भूमिका के लिए आईएएस अधिकारी विनीत जोशी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से उनके मूल कैडर में वापस भेजने का अनुरोध किया है. वह 1992 के मणिपुर कैडर के आईएएस अधिकारी हैं.
इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में जारी हिंसा पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. इंडिया टुडे के मुताबिक, सोमवार को उन्होंने कहा कि मणिपुर में स्थिति नियंत्रण में है, क्योंकि हिंसा प्रभावित राज्य में कर्फ्यू जारी है. उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील भी की.
शाह ने आश्वासन दिया कि मणिपुर सरकार मेईतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति दर्जे के मामले पर निर्णय लेने से पहले सभी हितधारकों से परामर्श करेगी.
उन्होंने कहा, ‘अदालत ने एक आदेश पारित किया है. इस पर सभी संबंधित हितधारकों के साथ चर्चा की जाएगी और मणिपुर सरकार परामर्श के बाद उचित निर्णय लेगी. किसी भी व्यक्ति या समूह को डरने की कोई जरूरत नहीं है.’
वहीं, सोमवार को मामले पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई.
सबसे बुरी तरह प्रभावित जिलों में से एक चुराचांदपुर में अधिकारियों ने लोगों को आवश्यक आपूर्ति की वस्तुएं लाने के लिए सुबह 7 बजे से तीन घंटे के लिए अनिश्चितकालीन कर्फ्यू में ढील दी.
गौरतलब है कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे. तब से शुरू हुई हिंसा में आदिवासियों पर मेईतेई समूहों द्वारा हमले और आदिवासियों द्वारा उन पर हमले की खबरें आ रही हैं.
यह मुद्दा फिर से तब ज्वलंत हो गया, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने कहा कि पिछले दो दिनों में राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति में काफी सुधार हुआ है और इंफाल शहर में रविवार को दो घंटे के लिए कर्फ्यू में ढील दी गई.
उन्होंने कहा कि जिला पुलिस प्रमुखों को बदमाशों की पहचान करने और उन पर रोक लगाकर या गिरफ्तार करके सख्त कानूनी कार्रवाई करने के लिए कहा गया है. साथ ही बताया कि अब तक 30 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
यह उल्लेख करते हुए कि हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं, उन्होंने कहा कि प्रभावित लोगों को भोजन और पीने के पानी की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
पड़ोसी राज्यों में भी विस्थापितों ने शरण ली
उत्तर-पूर्व के अन्य राज्यों के अधिकारियों ने कहा कि लगभग 2,000 लोगों ने, ज्यादातर कुकी-ज़ोमी जनजातीय समूहों से, दक्षिणी असम के कछार जिले में सात राहत शिविरों में शरण ली है, जबकि 200 से अधिक लोग मिजोरम के सैतुअल और वैरेंगटे जिलों में चले गए हैं.
इस बीच, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि राज्य – विशेष तौर पर चुराचांदपुर में – हालात में सुधार हो रहा है और साथ ही कहा कि कर्फ्यू में आंशिक रूप से ढील देने का निर्णय जमीनी स्थिति के आकलन और राज्य सरकार एवं विभिन्न हितधारकों के बीच बातचीत के बाद लिया गया है.
वहीं, सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने कहा कि मारे गए लोगों की संख्या घोषित करने में प्रशासन सावधानी बरत रहा है, क्योंकि प्रत्येक मौत का सत्यापन किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘कई अफवाहें फैल रही हैं और जब तक हम प्रत्येक मौत की पुष्टि नहीं कर लेते, हम मरने वालों की संख्या जारी नहीं कर सकते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो ड्रग ओवरडोज या प्राकृतिक मौत मरे हैं, ऐसी मौतों को भी हिंसा में मारे गए लोगों में गिना जा रहा है. 7 मई तक 37 लोग मारे गए थे.’
इस बीच, इंफाल पूर्व में लैरोक वैफेई गांव के प्रमुख नेकलुन ने कहा कि क्षेत्र के नौ गांवों को शनिवार (6 मई) को जमींदोज कर दिया गया.
नेकलुन ने कहा, ‘घटना के समय हम जंगलों में छिपे हुए थे. अधिकांश घर खाली थे जब एक सशस्त्र समूह ने उन्हें जला दिया. अब एंड्रो में असम राइफल्स द्वारा चलाए जा रहे शिविर में करीब 700 ग्रामीण रह रहे हैं. 500 से ज्यादा घरों में आग लगा दी गई.’
इस घटना के बारे में पूछे जाने पर सुरक्षा सलाहकार सिंह बोले कि कुछ परित्यक्त झोपड़ियों को जला दिया गया है, लेकिन किसी की मौत नहीं हुई है.
शुक्रवार (5 मई) की एक घटना के संबंध में सिंह ने कहा कि चुराचांदपुर जिले में पांच मई की रात सुरक्षा बलों की गोलीबारी में एक महिला समेत तीन लोगों की मौत हो गई थी. उन्होंने कहा, ‘कुछ अफवाहों के बाद क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति खड़ी हो गई थी. असम राइफल्स के जवानों ने गोली चला दी, जिसमें तीन लोग मारे गए.’
द हिंदू ने बताया है कि एक न्यूज पोर्टल ईस्ट मोजो ने एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें सुरक्षा बल लोगों के एक समूह पर फायरिंग करते दिख रहे हैं. समूह में कई महिलाएं भी शामिल थीं. उन्होंने काफिले को आगे बढ़ने से रोकने के लिए मानव शृंखला बनाई थी.
साथ ही, सिंह ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 355 – जो केंद्र सरकार को आंतरिक उपद्रव और बाहरी आक्रमण से एक राज्य की रक्षा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का अधिकार देता है – को लागू नहीं किया गया है. उन्होंने कहा, ‘अगर इसे लागू किया गया होता तो एक अधिसूचना जारी होती.’
उनके मुताबिक, पुलिस शस्त्रागार से तीन मई से अब तक लूटे गए 134 हथियार बरामद किए गए हैं.
एक रक्षा प्रवक्ता ने कहा कि 25,000 से अधिक लोगों को संघर्ष क्षेत्रों से सुरक्षा बलों और सैन्य चौकियों के ऑपरेटिंग बेस में स्थानांतरित कर दिया गया है, जबकि मानव रहित हवाई वाहनों और हेलीकॉप्टरों के माध्यम से दंगा प्रभावित जिलों में निगरानी बढ़ा दी गई है.