पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न महिला संगठनों ने मणिपुर में शांति बहाल करने की अपील की

मणिपुर में जारी हिंसा के संबंध में पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के विभिन्न महिला संगठनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि मणिपुर और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में चल रहे विभिन्न संघर्षों का मूल कारण सदियों का उपनिवेशवाद, हाशिए पर रखा जाना, उपेक्षा, भेदभाव, सुशासन की कमी, सैन्यीकरण, शस्त्रीकरण और इस क्षेत्र का अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध के एक मार्ग के रूप में दुरुपयोग किया जाना है. 

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मणिपुर में हिंसा के कारण विस्थापित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है. (फोटो: आर्मी पीआरओ कोहिमा)

मणिपुर में जारी हिंसा के संबंध में पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न महिला संगठनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को और अधिक नुकसान व जीवन की हानि को रोकने के लिए तेज़ी से कार्य करना चाहिए और पुनर्वास की प्रक्रिया भी शुरू करनी चाहिए.

मणिपुर में कार्यरत सुरक्षा बल. (फोटो: आर्मी पीआरओ कोहिमा)

नई दिल्ली: पूर्वोत्तर राज्यों के कई महिला अधिकार समूहों और संगठनों ने मणिपुर में शांति की अपील करते हुए एक बयान जारी किया है. यह बयान पूर्वोत्तर भारत की चिंतित महिलाओं और नॉर्थ-ईस्ट इंडिया वुमेन इनिशिएटिव फॉर पीस की ओर से जारी किया गया है. इस पर इन राज्यों के 15 महिला संगठनों ने हस्ताक्षर किए हैं.

गौरतलब है कि मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर पिछले कुछ दिनों से अंतरजातीय हिंसा में कम से कम 54 मौतें हो गई हैं.

राज्य के सभी गुटों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए और मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए संगठनों ने पूर्वोत्तर  में हिंसा के मूल कारणों के बारे में भी बात की.

उन्होंने कहा, ‘हम जानते हैं कि मणिपुर और हमारे पूरे क्षेत्र में चल रहे विभिन्न संघर्षों का मूल कारण सदियों का उपनिवेशवाद, हाशिये पर रखा जाना, उपेक्षा, भेदभाव, सुशासन की कमी, सैन्यीकरण, शस्त्रीकरण और इस क्षेत्र का अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध – जिसमें बंदूकें, ड्रग्स और मानव तस्करी शामिल हैं – के एक मार्ग के रूप में दुरुपयोग किया जाना है. हम यह भी जानते हैं कि इस क्षेत्र के इतिहास का अध्ययन नहीं किया गया है या इसे शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है, जिससे विभिन्न स्वदेशी समुदायों के बीच की समझ में भारी अंतर है.’

उनका मानना है कि इस हिंसा से आगे बढ़ने के लिए ‘सच कहने, एक-दूसरे के इतिहास, कहानियों और संघर्ष को जानने की एक प्रक्रिया’ की जरूरत है.

बयान में कहा गया है, ‘हम कई चुनौतियों को साझा करने, अपनी कहानियों को बताने, गलतियों को स्वीकार करने और सामूहिक उपचार और क्षमा की दिशा में काम करने में हमें सक्षम बनाने के लिए एक ‘पूर्वोत्तर भारत सत्य और सुलह आयोग’ की स्थापना का आह्वान करते हैं.’

बयान में कहा गया है कि राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को और अधिक नुकसान व जीवन की हानि को रोकने के लिए तेजी से कार्य करना चाहिए और पुनर्वास की प्रक्रिया भी शुरू करनी चाहिए.

मणिपुर और पूर्वोत्तर भारत के विवादों की समाधान प्रक्रिया में महिलाओं को शामिल करने का आह्वान करते हुए बयान में कहा गया है, ‘हम उपनिवेश विरोधी संघर्षों में मणिपुर और पूर्वोत्तर भारत की महिलाओं के शक्तिशाली नेतृत्व की भूमिका को स्वीकारते हैं. हम 17 शांति वार्ताओं और विभिन्न संघर्षों को हल करने से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं को शामिल करने का आह्वान करते हैं. यदि हम अपने क्षेत्र में एक न्यायसंगत और स्थायी शांति का निर्माण करना चाहते हैं तो महिलाओं के दृष्टिकोण, अनुभव और नेतृत्व को पहचाना और महत्व दिया जाना चाहिए.’

बयान में पूर्वोत्तर भारत की महिलाओं ने आगे कहा है, ‘हम मणिपुर और केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वे वर्तमान हिंसा को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाते रहें, युद्धरत समुदायों के बीच बातचीत का आह्वान करें और उन परिवारों के लिए राहत और पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू करें, जिन्होंने हिंसा में अपने प्रियजनों, अपने घरों, दुकानों और आजीविका को खो दिया है.’

उन्होंने कहा है, ‘हम पूर्वोत्तर भारत की महिलाएं सतर्क रहेंगी और मणिपुर व पूर्वोत्तर भारत में अपने बच्चों और कमजोर समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए करीबी तालमेल बनाए रखेंगी.’

अंत में वे कहती हैं, ‘हम सभी पक्षों से सभी हिंसक कृत्यों को रोकने और शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए सार्थक वार्ता में शामिल होने का आह्वान करते हैं.’

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