सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र में शिवसेना में बगावत के बाद उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली एमवीए सरकार के गिरने संबंधी याचिकाओं को सुन रहा था. अपने फैसले में इसने कहा कि तत्कालीन राज्यपाल का पार्टी के भीतरी विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट कराने का निर्णय ग़लत और स्पीकर द्वारा बागी एकनाथ शिंदे गुट से पार्टी सचेतक नियुक्त करना अवैध था.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में शिवसेना में हुई दोफाड़ के बाद नीत महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के गिरने और एकनाथ शिंदे-भाजपा सरकार बनने से जुड़ी याचिका की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को यह माना कि महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल और स्पीकर ने कानून के अनुरूप कार्रवाई नहीं की.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि वह उद्धव ठाकरे सरकार को बहाल नहीं कर सकता क्योंकि ठाकरे ने शिंदे गुट के अलग होने के बाद फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना ही इस्तीफ़ा दे दिया था.
अदालत महाराष्ट्र में पिछले साल शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे नीत एमवीए) सरकार गिरने से कई अनेक याचिकाओं को सुन रही थी.
भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने एकमत से कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल का पार्टी के भीतर के विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट कराने का फैसला गलत है और यह भी कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट से पार्टी सचेतक (ह्विप) नियुक्त करना अवैध था.
Supreme Court says the Speaker's decision to appoint Gogawale (Shinde group) as chief Whip of the Shiv Sena party was illegal. https://t.co/tP0JU51BkZ
— ANI (@ANI) May 11, 2023
सीजेआई ने कहा, ‘न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और किसी पार्टी के भीतरी या दलों के बीच विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है.’ उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल के पास मौजूद सामग्री से इस निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई कारण नहीं था कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं और ठाकरे सदन में बहुमत खो चुके हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि शिंदे गुट द्वारा समर्थित भारतशेत गोगावाले की शिवसेना पार्टी के ह्विप के रूप में नियुक्ति अवैध थी.
उल्लेखनीय है कि फरवरी महीने में इस मामले से जुड़ी एक सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्यपालों को राजनीति में नहीं उतरना चाहिए.
ज्ञात हो कि जून 2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों के एक समूह ने ठाकरे के खिलाफ यह कहते हुए कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करने का निर्णय पार्टी की हिंदुत्व विचारधारा के खिलाफ है, बगावत कर दी थी.
जब यह स्पष्ट हो गया कि बागी विधायक, भाजपा द्वारा नियुक्त राज्यपाल के समर्थन से विश्वास मत के लिए जाएंगे, तो शिंदे को तत्कालीन डिप्टी स्पीकर से अयोग्यता का नोटिस मिला. बागियों को अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए या नहीं, इस पर विचार करने के लिए गुट ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था.
27 जून 2022 को शीर्ष अदालत ने अयोग्यता नोटिस पर जवाब दाखिल करने के लिए समय बढ़ाकर शिंदे को अंतरिम राहत दी. बाद में 29 जून को राज्यपाल द्वारा बुलाए गए फ्लोर टेस्ट को हरी झंडी दे दी थी.