बीते जनवरी माह में अमेरिका वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था.
नई दिल्ली: अमेरिका स्थित वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने छह सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल का गठन किया था, जिसने बीते 8 मई को शीर्ष अदालत को एक सीलबंद कवर में अपनी रिपोर्ट सौंपी है.
यह मामला अब भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष सुनवाई के लिए 12 मई को सूचीबद्ध किया गया है.
इकोनॉमिक टाइम्स अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यह ज्ञात नहीं है कि समिति ने 2 मार्च के आदेश में शीर्ष अदालत द्वारा बताए गए सभी मुद्दों की जांच पूरी कर ली है या क्या उसने जांच को पूरा करने के लिए और समय मांगा है.’
शीर्ष अदालत ने समिति के सदस्यों के रूप में केंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए नामों (सीलबंद लिफाफे में भी) को खारिज कर दिया था और अपनी विशेषज्ञ समिति के गठन की घोषणा की थी.
शीर्ष अदालत की समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे कर रहे हैं और पूर्व बैंकर केवी कामत तथा ओपी भट्ट, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी, प्रतिभूति वकील सोमशेखर सुंदरसन और हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जेपी देवधर इसमें शामिल हैं.
बीते मार्च महीने में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि बाजार नियामक सेबी अपनी चल रही जांच को दो महीने में पूरा करे और स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे.
विशेषज्ञों की समिति ढांचे को मजबूत करने के उपाय सुझाएगी, अडानी विवाद की जांच करेगी और वैधानिक ढांचे को मजबूत करने के उपाय सुझाएगी.
2 अप्रैल और 26 अप्रैल को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के अध्यक्ष ने इस मामले पर विशेषज्ञ समिति को जानकारी दी थी.
अदालत ने सेबी और विशेषज्ञ समिति दोनों को दो महीने के भीतर अपनी जांच पूरी करने को कहा था. 29 अप्रैल को सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी जांच पूरी करने के लिए छह महीने का समय मांगा था.
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बीते दिनों बताया था कि सेबी कम से कम तीन ऑफशोर इकाइयों के साथ अडानी समूह के लेनदेन में नियमों के संभावित उल्लंघन की जांच कर रहा है. मामले से वाकिफ लोगों ने समाचार एजेंसी को बताया कि इन इकाइयों के तार समूह के संस्थापक गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी से जुड़े हैं.
इससे पहले अडानी समूह ने घोषणा की थी कि ‘अडानी समूह और विनोद अडानी को एक ही व्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए’.
द वायर ने विश्लेषण किया कि अडानी समूह की कुछ कंपनियों की फ्री-फ्लोट स्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है.
स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध रहने के लिए सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए गैर-प्रवर्तकों के पास अपने शेयरों का कम से कम 25 प्रतिशत होना आवश्यक है – चाहे वह खुदरा निवेशक हों, म्यूचुअल फंड, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) या बीमा कंपनियां हों.
अडानी ग्रुप के मामले में ट्रेंडलाइन के डेटा से पता चलता है कि कुछ ऑफशोर इनवेस्टमेंट फंड्स (या एफपीआई) के पास ज्यादातर फ्री फ्लोट हैं.
द वायर द्वारा किए गए एक विश्लेषण में बताया गया था कि अगर अडानी परिवार के लिंक होने के लिए ऑफशोर फंडों का हिसाब लगाया जाता है तो फ्री फ्लोट केवल 25 प्रतिशत से कम या उससे भी कम हो जाएगा.
समाचार वेबसाइट मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट ने अडानी की ऑफशोर फर्मों पर एक खोजी रिपोर्ट में कहा है, ‘अगर आप इन [ऑफशोर] फंड्स को हटा देते हैं, तो अडानी एंटरप्राइजेज में प्रभावी [पब्लिक] शेयरहोल्डिंग केवल 10 प्रतिशत तक कम हो जाती है.’ अडानी ट्रांसमिशन में ‘प्रभावी सार्वजनिक फ्लोट लगभग 7-8 प्रतिशत है’.’
हालांकि, इन फंडों का स्वामित्व अज्ञात है, क्योंकि मॉरीशस एक टैक्स हैवन है और इस चिंता को सेबी ने जुलाई 2021 में उठाया था. इसने एफपीआई के संरक्षकों, जिनके पास अडानी की सूचीबद्ध फर्मों में शेयर हैं, से ‘अंतिम लाभार्थी’ का खुलासा करने के लिए कहा था.
एक साल बाद सितंबर 2022 में समाचार वेबसाइट ब्लूमबर्ग के स्तंभकार एंडी मुखर्जी ने इन ‘साइलेंट सोल्जर्स’ या ‘अडानी के भाग्य चालकों’ के बारे में लिखा था और कहा था कि ‘वे जांच किए जाने के लायक हैं’.
दिलचस्प बात यह है कि इस लेख में बताया गया था कि कैसे बाकी एफपीआई, जिनके विवरण ऑनलाइन उपलब्ध नहीं हैं, साल दर साल बढ़ते रहते हैं.
उल्लेखनीय है कि जनवरी में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल रहा है.
अडानी समूह ने इन आरोपों के जवाब में कहा था कि यह हिंडनबर्ग द्वारा भारत पर सोच-समझकर किया गया हमला है. समूह ने कहा था कि ये आरोप और कुछ नहीं सिर्फ ‘झूठ’ हैं. इस जवाब पर पलटवार करते हुए हिंडनबर्ग समूह की ओर से कहा गया था कि धोखाधड़ी को ‘राष्ट्रवाद’ या ‘कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रतिक्रिया’ से ढका नहीं जा सकता.
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