इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग का आदेश दिया

वाराणसी अदालत द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित ‘शिवलिंग’ के वैज्ञानिक सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग के लिए आवेदन को ख़ारिज करने के बाद याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी थी. पिछले साल हुए सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद में मिली एक संरचना को हिंदू पक्ष द्वारा ‘शिवलिंग’ और मुस्लिम पक्ष द्वारा ‘फव्वारा’ होने का दावा किया गया था.

ज्ञानवापी मस्जिद. (फाइल फोटो: पीटीआई)

वाराणसी अदालत द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित ‘शिवलिंग’ के वैज्ञानिक सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग के लिए आवेदन को ख़ारिज करने के बाद याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी थी. पिछले साल हुए सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद में मिली एक संरचना को हिंदू पक्ष द्वारा ‘शिवलिंग’ और मुस्लिम पक्ष द्वारा ‘फव्वारा’ होने का दावा किया गया था.

ज्ञानवापी मस्जिद. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के एक आदेश को दरकिनार करते हुए बीते शुक्रवार (12 मई) को वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पिछले साल एक वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण के दौरान पाए गए एक कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग सहित एक ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ का आदेश दिया है.

सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद में मिली एक संरचना को हिंदू पक्ष द्वारा ‘शिवलिंग’ और मुस्लिम पक्ष द्वारा ‘फव्वारा’ होने का दावा किया गया था. यह संरचना पिछले साल 16 मई को मस्जिद परिसर में सर्वेक्षण के दौरान पाई गई थी.

वाराणसी के जिला न्यायाधीश द्वारा 14 अक्टूबर, 2022 को कथित ‘शिवलिंग’ के वैज्ञानिक सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग के लिए उनके आवेदन को खारिज करने के बाद याचिकाकर्ताओं लक्ष्मी देवी और तीन अन्य ने हाईकोर्ट में आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी.

पांच हिंदू पक्षकार में से चार ने कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग की मांग की थी, जो अदालत के आदेश पर कराए गए मस्जिद परिसर के वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान ‘वज़ूखाना’ में मिला था. ‘वजूखाना’ एक छोटा जलाशय होता है जिसका उपयोग मुस्लिम नमाज़ अदा करने से पहले वजू (हाथ-पांव धोने आदि) करने के लिए करते हैं.

मस्जिद समिति ने कार्बन डेटिंग की मांग का विरोध किया था और कहा था कि वह ‘शिवलिंग’ नहीं, बल्कि वजूखाने के फव्वारे का हिस्सा है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में याचिकाकर्ताओं ने ‘16 मई 2022 को खोजे गए शिवलिंग के नीचे निर्माण की प्रकृति का पता लगाने के लिए उपयुक्त सर्वेक्षण करने या ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) और/या याचिकाकर्ताओं को शामिल कर उत्खनन करने’ की प्रार्थना की थी.

याचिका में ‘कार्बन डेटिंग या कथित शिवलिंग की उम्र, प्रकृति और अन्य घटकों को निर्धारित करने के लिए वैज्ञानिक जांच’ के लिए प्रार्थना की गई थी.

हाईकोर्ट की जस्टिस अरविंद कुमार मिश्रा-प्रथम की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह आदेश पारित किया.

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हाईकोर्ट ने मस्जिद परिसर के अंदर पाए गए ‘शिवलिंग’ की वैज्ञानिक जांच के लिए हमारी प्रार्थना पर सहमति व्यक्त की है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह एक फव्वारा है. हम कहते हैं कि यह शिवलिंग है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि बिना किसी नुकसान के शिवलिंग का विश्लेषण और अध्ययन किया जाए.’

अदालत ने वाराणसी के जिला न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया है. जिला न्यायाधीश ने अपने आदेश में कार्बन डेटिंग विश्लेषण और कथित शिवलिंग के अन्य वैज्ञानिक सर्वेक्षण की हमारी प्रार्थना को खारिज कर दिया था.

अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी (एआईएमसी) का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद फरमान अहमद नकवी ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए या नहीं, इस पर निर्णय मस्जिद समिति और अन्य जिम्मेदार लोगों के साथ चर्चा के बाद लिया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘हम जल्द इस संबंध में फैसला करेंगे.’

नकवी ने कहा, ‘अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार कर लिया है और आदेश दिया है कि मस्जिद परिसर में मिले ढांचे की कार्बन डेटिंग सहित वैज्ञानिक जांच की जाए. अदालत ने पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की राय मांगी थी, जिसने कुछ आपत्तियों के साथ अदालत को बताया कि कार्बन डेटिंग एक नई विधि के माध्यम से की जा सकती है, जिससे संरचना को नुकसान नहीं होगा.’

उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संरचना की रक्षा की जानी चाहिए. वहीं एएसआई ने सर्वे होने पर इसकी सुरक्षा को लेकर भी आपत्ति जताई है. अगर सर्वे के दौरान संरचना को कुछ होता है तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा.’

पिछले साल 8 अप्रैल को पांच स्थानीय महिलाओं द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में मां शृंगार गौरी स्थल पर अदालत द्वारा नियुक्त आयोग द्वारा एक सर्वेक्षण का आदेश दिया था. इसने आयोग को ‘कार्रवाई की वीडियोग्राफी तैयार करने’ और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था.

परिसर का सर्वेक्षण तीन दिनों में किया गया था, जो पिछले साल 16 मई को समाप्त हुआ था. सर्वेक्षण अदालत द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नरों, दोनों पक्षों के वकीलों, सभी संबंधित पक्षों और अधिकारियों की उपस्थिति में किया गया था.

मालूम हो कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह तथा अन्य ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.

इसके साथ ही मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.

पूजा की अनुमति मांगने वाली याचिका के खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन देखने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद समिति ने चुनौती दी थी, जिसे सितंबर 2022 में अदालत ने खारिज कर दिया था.

इससे पहले शीर्ष अदालत ने बीते 17 मई 2022 को वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को ज्ञानवापी मस्जिद में शृंगार गौरी परिसर के भीतर उस इलाके को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था, जहां एक सर्वेक्षण के दौरान एक कथित ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया गया है. साथ ही मुसलमानों को ‘नमाज’ पढ़ने की अनुमति देने का भी निर्देश दिया था.

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