म्यांमार शरणार्थियों को सज़ा पूरी होने पर भी मणिपुर की जेलों में रखा गया है: मानवाधिकार आयोग

मणिपुर मानवाधिकार आयोग ने एक आदेश में कहा है कि हिरासत अवधि समाप्त होने के बाद भी राज्य की जेलों में रखे गए म्यांमार के शरणार्थियों को तत्काल रिहा किया जाए और राज्य सरकार उन्हें उनके देश निर्वासित करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री के समक्ष यह मामला उठाए.

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(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

मणिपुर मानवाधिकार आयोग ने एक आदेश में कहा है कि हिरासत अवधि समाप्त होने के बाद भी राज्य की जेलों में रखे गए म्यांमार के शरणार्थियों को तत्काल रिहा किया जाए और राज्य सरकार उन्हें उनके देश निर्वासित करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री के समक्ष यह मामला उठाए.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: मणिपुर सरकार ने राज्य के कुकी-ज़ोमी बहुल चुराचांदपुर जिले में म्यांमार के अवैध शरणार्थियों के घुसने का आरोप लगाया था, जबकि मणिपुर मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) द्वारा 3 मई को पारित एक आदेश में कहा गया है कि म्यांमार के शरणार्थियों को उनकी हिरासत अवधि समाप्त होने के बाद भी राज्य की जेलों में रखा गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एमएचआरसी ने उनकी तत्काल रिहाई के साथ और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह उनका तत्काल म्यांमार निर्वासन करने के मामले को केंद्रीय गृहमंत्री के समक्ष उठाए.

एमएचआरसी के अध्यक्ष जस्टिस यूबी साहा द्वारा पारित आदेश में कहा गया है कि ‘दोषी कैदियों को कारावास की अवधि पूरी होने के बाद भी जेल में रखा जाता है.’

आयोग के सूत्रों ने बताया कि वर्तमान में मणिपुर की जेलों में बच्चों समेत म्यांमार के 35 नागरिक बंद हैं.

आदेश में कहा गया है, ‘जेल अधिकारियों के अनुसार, उन्होंने मणिपुर सरकार के आयुक्त (गृह) के साथ शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने का मामला उठाया है.’

जस्टिस शाह के आदेश में कहा गया है, ‘हम जेल प्रशासन की समस्याओं को समझते हैं. सजायाफ्ता कैदियों को अन्य कैदियों की तरह रिहा नहीं किया जा सकता. जेल प्राधिकरण को उन्हें रिहा करने के बाद उन्हें उनके नाबालिग बच्चों के साथ मणिपुर सरकार के गृह विभाग को उन्हें हिरासत केंद्र में रखने या उनके देश निर्वासित करने के लिए सौंप देना चाहिए.’

आगे कहा गया, ‘मणिपुर का गृह विभाग केंद्र सरकार के साथ इस मामले को उठाए, ताकि वह म्यांमार सरकार के साथ इस मामले को उठा सके. निर्वासन के समय, यदि कोई हो, सरकार को उनकी तत्काल राहत के लिए उन्हें कुछ धन/वस्तु प्रदान करना चाहिए.’

एमएचआरसी ने म्यांमार की नागरिक मया मय मोन द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद यह मामला उठाया. उन्होंने आरोप लगाया गया था कि सजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी छह नाबालिगों को उनकी मां और दादी के साथ जेल में रखा गया है. उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके सजा के दौरान चुराचांदपुर जेल में रखा गया था. उनकी जेल की अवधि पूरी होने पर उन्हें इंफाल में केंद्रीय जेल में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसे राज्य सरकार अब अवैध अप्रवासियों के लिए एक निरोध केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर रही है.

शिकायतकर्ता कोविड महामारी से पहले भारत आई थीं. महामारी के दौरान मोन का वीजा समाप्त हो गया था और वह इसे नवीनीकृत करने में असमर्थ थीं, और तब से ही आश्रय में रह रही हैं.

महिला की शिकायत मिलने के बाद आयोग ने इंफाल केंद्रीय जेल के अधीक्षक को नोटिस जारी किया था, जो एमएचआरसी के सामने पेश हुए थे.

इंफाल केंद्रीय जेल के अधीक्षक ने अपनी स्थिति रिपोर्ट में कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा बताए गए नाबालिग बच्चों के नाम जेल रिकॉर्ड में दिए गए नामों से अलग हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी बच्चे को पुलिस ने न तो हिरासत में लिया और न ही गिरफ्तार किया.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उन्हें उनकी मां, दादी और अभिभावकों के साथ सुरक्षित हिरासत में रखा गया है. इन लोगों को पुलिस ने बिना वैध दस्तावेजों के मणिपुर में प्रवेश करने के लिए विदेशी अधिनियम की धारा 14 के तहत गिरफ्तार किया था.’

चुराचांदपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जुलाई और अगस्त 2022 में दोषी ठहराए जाने और पांच महीने की सजा सुनाए जाने के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

अधीक्षक ने रिपोर्ट में कहा, ‘इंफाल केंद्रीय जेल के अधीक्षक और जेल के आईजी ने संबंधित प्राधिकरण को उन्हें उनके देश में निर्वासित करने के लिए लिखा है. उन्हें अभी अदालत के निर्देश के अनुसार एक हिरासत केंद्र में रखा जा रहा है.’

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