अकादमिक मामलों पर दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थायी समिति ने स्नातक पाठ्यक्रम से डॉ. बीआर आंबेडकर के दर्शन पर एक वैकल्पिक पाठ्यक्रम हटाने की सिफ़ारिश की है. हालांकि, दर्शनशास्त्र विभाग ने इसका कड़ा विरोध करते हुए कुलपति से पाठ्यक्रम को बनाए रखने का अनुरोध किया है.
नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की एक स्टैंडिंग कमेटी द्वारा स्नातक पाठ्यक्रम से डॉ. बीआर आंबेडकर के दर्शन पर एक इलेक्टिव कोर्स (वैकल्पिक पाठ्यक्रम) हटाने का प्रस्ताव दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, दर्शनशास्त्र विभाग ने अकादमिक मामलों पर विश्वविद्यालय की स्थायी समिति के इसका कड़ा विरोध करते हुए कुलपति योगेश सिंह से पाठ्यक्रम को बनाए रखने का अनुरोध किया है.
सूत्रों के अनुसार, पहली बार बीए (दर्शनशास्त्र) से पाठ्यक्रम को हटाने का सुझाव 8 मई को दिया गया था और 12 मई को हुई विभाग की स्नातकोत्तर और स्नातक पाठ्यक्रम समिति की बैठक में इस पर चर्चा की गई थी.
विभाग की करिकुलम समिति ने इस आधार पर कि ‘आंबेडकर देश के बहुसंख्यक लोगों की सामाजिक आकांक्षाओं के एक स्वदेशी विचार प्रतिनिधि हैं’ और उन पर शोध बढ़ रहे हैं, इस प्रस्ताव पर कड़ी असहमति दर्ज करवाई थी.
अख़बार के अनुसार, स्थायी समिति का सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आधार पर की जा रही पाठ्यक्रम समीक्षा के हिस्से के रूप में आया है.
हालांकि, स्थायी समिति के एक सदस्य ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अभी तक कोई बदलाव नहीं किया गया है और अंतिम निर्णय शैक्षणिक मामलों पर शीर्ष निर्णय लेने वाली अकादमिक परिषद का होगा.
अख़बार द्वारा संपर्क किए जाने पर स्थायी समिति के अध्यक्ष और डीन ऑफ कॉलेजेस बलराम पाणि ने कहा, ‘यह (आंबेडकर पाठ्यक्रम) हटाया नहीं जा रहा है और यह सुझाव समिति द्वारा नहीं दिया गया था. सुझाव यह था कि नए पाठ्यक्रम और पुराने पाठ्यक्रम को एक साथ मिलाया जाना चाहिए और इसे इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि यह छात्रों के लिए रुचिकर हो और ऐसे तैयार किया जाए कि इसे कई कॉलेजों में भी अपनाया जाए… हमने सुझाव दिया था कि सभी पृष्ठभूमि के विचारकों के दर्शन को जोड़ा जाना चाहिए.’
रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने बताया कि वास्तव में प्रस्ताव कोर्स को हटाने का ही था.
8 मई की बैठक में उपस्थित कला संकाय के डीन अमिताव चक्रवर्ती ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘इससे पहले पेश किए गए दर्शन पाठ्यक्रमों के लिए कई सुझाव दिए गए थे. ऐसा ही एक सुझाव ‘बीआर आंबेडकर के दर्शन’ पाठ्यक्रम की सामग्री को ठीक करना था … और भारत के अन्य दार्शनिक विचारकों के विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले पाठ्यक्रमों को पेश करना था, ताकि छात्रों के पास किसी भी विचारक, जिनके बारे में वे पढ़ना चाहते हैं, को चुनने का विकल्प हो.’
नाम न छापने की शर्त पर दर्शनशास्त्र विभाग के एक प्रोफेसर ने कहा, ‘द फिलॉसफी ऑफ आंबेडकर’ अनिवार्य पाठ्यक्रम नहीं है, बल्कि एक वैकल्पिक पाठ्यक्रम है. छात्र इसे पढ़ने या न पढ़ने का विकल्प चुन सकते हैं… सवाल यह है कि इस नए पाठ्यक्रम के तहत अन्य विचारकों पर पेपर जोड़ने का प्रस्ताव क्यों दिया जा रहा है.’
डीयू साउथ कैंपस के निदेशक और स्थायी समिति के सदस्य श्रीप्रकाश सिंह ने कहा, ‘कुछ भी हटाया नहीं गया है. स्थायी समिति की अगली बैठक मंगलवार को होनी है और अंतिम फैसला एकेडमिक काउंसिल द्वारा लिया जाएगा. यह हमेशा कुछ मुद्दों पर समिति द्वारा विभाग को सामूहिक सलाह होती है.’
सोमवार को एक उप-समिति, जिसे स्थायी समिति द्वारा पाठ्यक्रम संशोधन पर चर्चा करने के लिए गठित किया गया था, ने सुझाव दिया कि आंबेडकर के दर्शन पर पेपर को बरकरार रखा जाए और छात्रों के चयन के लिए कुछ अन्य विचारकों को जोड़ा जा सकता है.
सूत्रों के अनुसार, नए पाठ्यक्रम में महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद और पेरियार पर कुछ अन्य दार्शनिक विचारकों पर विचार किया जा रहा है. इन सुझावों को मंगलवार को स्टैंडिंग कमेटी के सामने और बाद में एकेडमिक काउंसिल के सामने अंतिम मंजूरी के लिए रखा जाएगा.
आंबेडकर दर्शन पर पाठ्यक्रम 2015 में शुरू किया गया था. इसमें आंबेडकर का जीवन और आवश्यक लेखन, उनकी अवधारणाएं और उनकी शोध पद्धति शामिल हैं.