मणिपुर हिंसा: बिष्णुपुर में मंत्री के घर में तोड़फोड़, ताज़ा हिंसा में एक व्यक्ति की मौत

मणिपुर में बिष्णुपुर ज़िले ताज़ा हिंसा भड़कने के बाद फिर से अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है. राज्य में बीते 3 मई को कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा बढ़ने के बाद लगातार हिंसा जारी है. कुकी समेत अन्य आदिवासी समुदाय मेईतेई समाज के एसटी दर्जा देने की मांग का विरोध कर रहे हैं.

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3 मई की रात मणिपुर में भड़की हिंसा से सं​बंधित एक वीडियो का स्क्रीनग्रैब.

मणिपुर में बिष्णुपुर ज़िले ताज़ा हिंसा भड़कने के बाद फिर से अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है. राज्य में बीते 3 मई को कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा बढ़ने के बाद लगातार हिंसा जारी है. कुकी समेत अन्य आदिवासी समुदाय मेईतेई समाज के एसटी दर्जा देने की मांग का विरोध कर रहे हैं.

3 मई की रात मणिपुर में भड़की हिंसा से सं​बंधित एक वीडियो का स्क्रीनग्रैब.

नई दिल्ली: मणिपुर में तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है, बुधवार (24 मई) को ताजा हिंसा के कारण बिष्णुपुर जिले के थम्नापोकपी में एक व्यक्ति की मौत हो गई.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार सुबह उग्रवादियों द्वारा की गई गोलीबारी में एक व्यक्ति घायल हो गया था, इंफाल के अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गई.

मृतक व्यक्ति की पहचान चुराचांदपुर के ठेंगरा लिराक निवासी तोजम चंद्रमणि सिंह के रूप में हुई है. वह कथित तौर पर मोइरांग में एक राहत शिविर में रह रहे थे.

एक अन्य घटना में बिष्णुपुर जिले में ही राज्य के लोक निर्माण विभाग के मंत्री गोविंददास कोंथौजम के घर में तोड़फोड़ की गई. अखबार के अनुसार, बुधवार शाम को भीड़ ने निंगथौखोंग शहर में मंत्री के आवास पर धावा बोल दिया. घटना के समय मंत्री और उनके परिवार का कोई सदस्य घर में नहीं था.

कोंथौजम बिष्णुपुर से मौजूदा भाजपा विधायक हैं.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिष्णुपुर जिले में फिर से अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है और इंफाल पश्चिम जिले में कर्फ्यू में छूट को चार घंटे कम कर दिया गया.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सीआरपीएफ के एक पूर्व डीजी कुलदीप सिंह ने कहा कि ताजा हिंसा की पहली घटना मंगलवार और बुधवार (23-24 मई) की दरम्यानी रात को हुई, जब बिष्णुपुर जिले के त्रोंग्लोबी इलाके में तीन घरों में आग लगा दी गई. उसके बाद दोनों समुदायों (कुकी और मेईतेई) से संबंधित अधिक घरों को आग लगा दी गई.

बीते 3 मई को कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा बढ़ने के बाद कुलदीप सिंह को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को सलाह देने के लिए मणिपुर भेजा गया था.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, बुधवार की मौत पर सुरक्षा सलाहकार ने कहा, ‘उग्रवादियों ने सुबह करीब 9:30 बजे बिष्णुपुर के त्रोंग्लोबी इलाके में लोगों के एक समूह पर गोलीबारी की. फायरिंग में घायल एक व्यक्ति की अस्पताल ले जाते समय मौत हो गई.’

उन्होंने यह भी कहा कि कुकी बहुल कांगपोकपी जिले की सीमा से सटे इंफाल पश्चिम के सिंगडा में एक मेईतेई व्यक्ति उग्रवादियों की गोलीबारी में घायल हो गया.

राज्य में 3 मई को शुरू हुई हिंसक झड़पों में 70 से अधिक लोग मारे गए, लगभग 200 घायल हुए और करीब 40,000 लोग विस्थापित हुए हैं.

इसी बीच, राज्य में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें कथित तौर पर बढ़ रही हैं और तनाव बना हुआ है.

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिंसा के कारण राज्य के बाहर से उत्पादों का आयात प्रभावित हुआ है, कई वस्तुओं को सामान्य कीमत से दोगुनी कीमत पर बेचा जा रहा है.

पूर्वोत्तर के इस राज्य के अधिकांश हिस्सों में चावल, आलू, प्याज और अंडे के अलावा एलपीजी सिलेंडर और पेट्रोल सरकार द्वारा तय की गई कीमतों से काफी अधिक पर बिक रहे हैं.

3 मई के हिंसा के बाद इंफाल घाटी में ट्रकों की आवाजाही बाधाओं और ट्रांसपोर्टरों के बीच भय के कारण बंद हो गई थी.

एक रक्षा अधिकारी ने कहा, ‘परिणामस्वरूप राज्य में आवश्यक आपूर्ति का स्टॉक कम हो गया और महत्वपूर्ण स्तर तक पहुंचने लगा. अब एनएच-37 के माध्यम से आपूर्ति की योजना बनाई गई है.’

प्रवक्ता ने कहा कि एनएच-37 पर ट्रकों की आवाजाही 15 मई को शुरू हुई और सुरक्षा बल पूरी तरह से सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

राज्य सरकार ने हिंसा भड़कने के 18 दिन बाद खाद्य पदार्थों के संशोधित थोक और खुदरा कीमतों की सूची जारी की है.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर में सेना और असम राइफल्स के लगभग 10,000 और सीआरपीएफ और सीमा सुरक्षा बल बीएसएफ के 7,000 जवान तैनात हैं.

एनडीटीवी के मुताबिक, कथित तौर पर मेईतेई और कुकी दोनों समुदायों के लोगों ने बुधवार को दिल्ली में मणिपुर से आने वाले केंद्रीय मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के घर पर उनसे मुलाकात की. मणिपुर के एकमात्र अन्य सांसद लोरहो एस. फोजे भी इसमें शामिल हुए.

बैठक में भाग लेने वाले एक व्यक्ति ने एनडीटीवी को बताया, ‘मेईतेई और कुकी दोनों समुदायों के 10-10 बुद्धिजीवियों ने मणिपुर में शांति और सुलह लाने और आगे बढ़ने के तरीके पर चर्चा की. उन्होंने हजारों साल के साझा इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के बारे में बात की और इस बात पर सहमति जताई कि कोई भी उन्हें खोना नहीं चाहता है.’

इस बीच मणिपुर के एक आदिवासी निकाय इंडीजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने कुलदीप सिंह को एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि वे अब प्रभावशाली मेईतेई लोगों के साथ नहीं रह सकते हैं.’

द हिंदू एक रिपोर्ट के मुताबिक, फोरम ने कहा, ‘पहाड़ी और घाटी के लोगों का एक स्पष्ट विभाजन है, क्योंकि इंफाल (घाटी) में रहने वाले आदिवासी अब आदिवासी क्षेत्रों में लौट आए हैं और जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले मेईतेई इंफाल चले गए हैं.’

इधर, हिंसा के बाद मणिपुर के 10 विधायक, जो चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी-हमार समुदायों से ताल्लुक रखते हैं, ने दो बार अलग प्रशासन की मांग दोहरा चुके हैं.

इसी महीने विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दिए गए एक ज्ञापन में दावा किया था कि उनके लोगों ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में ‘विश्वास खो दिया है’ और 3 मई को भड़की हिंसा के बाद ‘घाटी में फिर से बसने’ के बारे में वे अब और नहीं सोच सकते हैं.

मालूम हो कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे.

यह मुद्दा एक बार फिर तब ज्वलंत हो गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.

ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप बीते 3 मई को निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.

बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.

इससे पहले बीते 8 मई को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा को एक ‘मानवीय समस्या’ बताया था. अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.

मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.

एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.

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