अलवर मॉब लिंचिंग केस: अदालत ने कहा- ऐसी घटनाएं संविधान की आत्मा पर हमला हैं

जुलाई 2018 में अलवर ज़िले में कथित गोरक्षकों की भीड़ के हमले के बाद 31 वर्षीय रकबर ख़ान की मौत हो गई थी. मामले में फैसला सुनाते हुए ट्रायल कोर्ट ने कहा कि 'भले ही गायों को मारने के लिए ले जाया जा रहा हो, अभियुक्तों को क़ानून अपने हाथ में लेने और किसी पर हमला करने का कोई अधिकार नहीं था.'

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पुलिस की जीप में रकबर ख़ान. यह फोटो गोविंदगढ़ मोड़ पर नवल किशोर शर्मा ने खींची थी.

जुलाई 2018 में अलवर ज़िले में कथित गोरक्षकों की भीड़ के हमले के बाद 31 वर्षीय रकबर ख़ान की मौत हो गई थी. मामले में फैसला सुनाते हुए ट्रायल कोर्ट ने कहा कि ‘भले ही गायों को मारने के लिए ले जाया जा रहा हो, अभियुक्तों को क़ानून अपने हाथ में लेने और किसी पर हमला करने का कोई अधिकार नहीं था.’

पुलिस की जीप में रकबर ख़ान. यह फोटो गोविंदगढ़ मोड़ पर नवल किशोर शर्मा ने खींची थी.

नई दिल्ली: वर्ष 2018 के रकबर खान लिंचिंग मामले में अपने फैसले में अलवर की ट्रायल कोर्ट ने कहा कि कोई भी धर्म अपने नाम पर हिंसा या नफरत की अनुमति नहीं देता है और एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में ऐसी घटनाएं भारतीय संविधान की आत्मा पर हमला करती हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने सहायक उपनिरीक्षक (असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर- एएसआई) मोहन सिंह के खिलाफ भी विभागीय जांच की सिफारिश की है. उन पर आरोप है कि उन्होंने गो तस्करी के शक में 20 और 21 जुलाई 2018 की दरमियानी रात अलवर के लालवंडी में भीड़ द्वारा हमले का शिकार बने रकबर को अस्पताल ले जाने में देरी की.

ज्ञात हो कि अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुनील कुमार गोयल ने गुरुवार को मामले में चार लोगों को सात साल कैद की सजा सुनाई थी और मामले में स्थानीय विहिप नेता नवल किशोर को बरी कर दिया था.

जज ने अपने आदेश में कहा, ‘धर्म की आड़ में आरोपियों ने कानून अपने हाथ में लिया और गोतस्करों के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की. कोई भी धर्म धार्मिक हिंसा या घृणा फैलाने की अनुमति नहीं देता है … भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में इस तरह की अवैध गतिविधियां भारतीय संविधान की आत्मा को गंभीर रूप से नुकसान (या चोट) पहुंचाती हैं. समाज पर व्यापक प्रभाव डालने वाले ऐसे मामलों में अगर नरम रुख अपनाया जाता है तो इस बात की प्रबल संभावना है कि इससे समाज में नकारात्मक संदेश जाए.’

आदेश में यह भी कहा गया है कि ‘भले ही गायों को वध के लिए ले जाया जा रहा हो, अभियुक्तों को कानून अपने हाथ में लेने और किसी पर हमला करने का कोई अधिकार नहीं था.’

हालांकि, अदालत का कथन इस मामले के दोनों विशेष लोक अभियोजकों (एसपीपी) अशोक शर्मा और नासिर अली नकवी के बयानों के विपरीत है, जिन्होंने कहा था कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए सजा पर्याप्त नहीं है और वे इसके खिलाफ अपील करेंगे.

हालांकि, अपराध के दोषी चारों लोगों– धर्मेंद्र यादव, परमजीत, विजय कुमार और नरेश कुमार,  को गैर-इरादतन हत्या (धारा 304) और गलत तरीके से रोकने (धारा 341) का दोषी पाया गया और सात साल की कैद की सजा सुनाई गई. नकवी का कहना है कि उन्हें धारा (302) के तहत भी दोषी ठहराया जाना चाहिए था.

कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि ‘आरोपियों का हत्या का पक्का इरादा होता तो वे मौके पर ही रकबर उर्फ अकबर की हत्या कर सकते थे… लेकिन आरोपियों ने उसे (रकबर) घटना स्थल से पुलिस जीप तक ले जाने में मदद की, उसके शरीर से मिट्टी को धोया, कपड़े बदले, और यहां तक कि उसे पुलिस स्टेशन से अस्पताल ले जाने में भी मदद की, जो दर्शाता है कि उनका इरादा रकबर की हत्या करने का नहीं था.’ इसके अलावा, आदेश में कहा गया है कि (अगर उनका इरादा हत्या का होता तो) उन्होंने नवल किशोर को पुलिस को सूचित करने के लिए नहीं कहा होता.

अदालत के आदेश में यह भी कहा गया है कि आरोपी रकबर को पहले से नहीं जानते थे, उससे कोई दुश्मनी नहीं थी और उन्होंने केवल ‘लाठी जैसे साधारण हथियार का इस्तेमाल किया था. गो रक्षा दल से जुड़े होने के कारण, वे अति उत्साहित हो गए और गोहत्या को रोकने के लिए कानून अपने हाथ में ले लिया और रकबर पर हमला कर दिया.’

रकबर और असलम पैदल ही गायों को अलवर के एक गांव से हरियाणा में नूह जिले के कोलगांव अपने घर ले जा रहे थे, जब उन्हें पशु तस्करी के संदेह में अलवर के रामगढ़ थाना क्षेत्र के लालवंडी में भीड़ ने रोक लिया.

भीड़ द्वारा हमला किए जाने के दौरान असलम बचकर भाग निकलने में कामयाब रहे, लेकिन रकबर की भीड़ ने बर्बर तरीके से पिटाई की. इसके कुछ घंटों के भीतर ही उनकी मौत हो गई.

रकबर को सीधे अस्पताल ले जाने के बजाय पुलिस ने करीब 20-25 मिनट असलम की तलाश में बिताए, फिर रकबर को पुलिस थाने ले जाया गया- वे थाने के रास्ते में चाय के लिए भी रुके- फिर गायों को एक गोशाला में छोड़ने गए.

अदालत ने अपने आदेश में, एएसआई मोहन सिंह को यह कहते हुए फटकार लगाई कि वह ‘अपने कर्तव्य को निभाने में पूरी तरह से विफल रहे और गैर-जिम्मेदाराना, लापरवाह तरीके से काम किया. इसलिए जरूरी है कि उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए.’

नवल किशोर, जिन्हें अदालत ने बरी कर दिया था, पर आदेश में कहा गया है कि हालांकि असलम ने नवल किशोर की पहचान की है, लेकिन उनके बयान ‘अविश्वसनीय’ थे. आदेश में कहा गया है कि हमला होते ही असलम मौके से भाग गए थे.

साथ ही, आदेश में कहा गया है, ‘इसके अलावा, किसी ने भी नहीं कहा कि नवल किशोर के कपड़ों पर कीचड़ थी, जबकि वह स्थान कीचड़युक्त था और बारिश हो रही थी और अगर उसने हमला किया होता तो उसके भी कपड़ों पर कीचड़ होती.’

आरोपी के वकील ने इस थ्योरी को भी आगे बढ़ाया कि रकबर की पुलिस हिरासत में मारपीट की गई थी और जिसके चलते उसकी मौत हो गई, लेकिन अदालत ने कहा कि इस ओर इशारा करने वाला कोई सबूत नहीं है.