मणिपुर में हिंसक विरोध फिर तेज़ हो गया है, जहां 25 मई को भीड़ ने केंद्रीय विदेश और शिक्षा राज्यमंत्री आरके रंजन सिंह के पूर्वी इंफाल ज़िले के कोंगबा स्थित घर में घुसने की कोशिश की. उधर, मुख्यमंत्री ने बताया कि 38 संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की गई है जहां केंद्रीय और राज्य बलों के जवान संयुक्त रूप से काम करेंगे.
नई दिल्ली: मणिपुर में हिंसक विरोध तेज हो गया है. बीते 25 मई को भारी भीड़ ने केंद्रीय विदेश और शिक्षा राज्य मंत्री आरके रंजन सिंह के पूर्वी इंफाल जिले के कोंगबा में स्थित घर में घुसने की कोशिश की. राज्य में जातीय संघर्ष करीब 25 दिन पहले शुरू हुआ था.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) और मणिपुर पुलिस के जवान मौके पर पहुंचे और भीड़ को घर में घुसने से पहले तितर-बितर कर दिया. उस दौरान सिंह घर में मौजूद थे.
शुक्रवार (26 मई) को राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने जनता से ‘चिंता न करने’ का आग्रह किया, क्योंकि पहाड़ियों और घाटी दोनों में सशस्त्र बदमाशों के खिलाफ अभियान शुरू हो गया है.
अखबार के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने कहा कि 38 संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की गई है जहां केंद्रीय और राज्य बलों के सैनिक संयुक्त रूप से काम करेंगे.
इसमें से ज्यादातर संवेदनशील क्षेत्र बिष्णुपुर जिले के टोरबंग क्षेत्र सहित कुकी-बहुल जिलों की सीमा से सटे घाटी जिलों के क्षेत्रों में स्थित हैं. टोरबुंग क्षेत्र राज्य में तनाव भड़कने का नया केंद्र है. अब तक हिंसा में लगभग 75 लोगों के मारे जाने और कई गंभीर रूप से घायल होने की सूचना है.
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि शुक्रवार तक राज्य में केंद्रीय बलों के 34,000 जवान तैनात थे. उन्होंने दावा किया कि उनकी उपस्थिति ने हिंसा की आशंका की मौजूदा स्थिति को कुछ हद तक कम कर दिया है.
मणिपुर के पड़ोसी बिष्णुपुर जिले में मेइतेई गांवों की कई महिलाओं ने जिले के क्वाकटा क्षेत्र में केंद्रीय सशस्त्र बलों के प्रवेश को रोक दिया, जहां 24 मई की तड़के भड़की हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई और एक अन्य घायल हो गए थे.
द प्रिंट की एक ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहने और तख्तियां लिए हुए, डंडों और गुलेल से लैस होकर सुरक्षा बलों पर चिल्लाते हुए उनसे वापस जाने को कहा.
बिष्णुपुर की घटना के बाद – बिष्णुपुर, इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम में सुबह 5 बजे से शाम 4 बजे के बीच कर्फ्यू में ढील रद्द कर दी गई. जब से हिंसा भड़की है, राज्य के क्वाकटा क्षेत्र में मेईतेई और कुकी दोनों समुदायों के कई घरों में आग लगा दी गई है.
एक व्यक्ति की मौत के बाद हिंसक हमले नियंत्रण से बाहर हो गए, जिससे बिष्णुपुर में कई घर जल गए. प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, कई जगहों से गोलीबारी की घटनाएं सामने आई हैं.
इससे पहले बीते 24 मई को बिष्णुपुर जिले में ही राज्य के लोक निर्माण विभाग के मंत्री गोविंददास कोंथौजम के घर में तोड़फोड़ की गई थी. कोंथौजम बिष्णुपुर से मौजूदा भाजपा विधायक हैं.
मालूम हो कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे.
यह मुद्दा एक बार फिर तब ज्वलंत हो गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप बीते 3 मई को निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.
बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.
इससे पहले बीते 8 मई को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा को एक ‘मानवीय समस्या’ बताया था. अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.
एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.