मणिपुर में 3 मई से हुई हिंसक झड़पों में 75 से अधिक लोग मारे गए हैं, लगभग 200 घायल हुए और क़रीब 40,000 लोग विस्थापित हुए हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से पहले हुई हालिया हिंसा में रविवार को अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा की गई गोलीबारी में कम से कम छह नागरिकों और दो पुलिस कमांडो की मौत हुई है.
नई दिल्ली: मणिपुर में रविवार को हिंसा जारी रही, सुबह-सुबह सुगनू और फेएन्ड में अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा की गई गोलीबारी में कम से कम छह नागरिकों की मौत हो गई और दो पुलिस कमांडो भी मारे गए.
न्यूज़ 18 के मुताबिक, सुरक्षा बलों और हथियारबंद बदमाशों के बीच ताजा हिंसा और मुठभेड़ अलग-अलग इलाकों में हुई, जिसमें घायलों को चूड़ाचांदपुर के एक अस्पताल में ले जाया गया.
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि सुरक्षा बल सशस्त्र विद्रोहियों के खिलाफ मुठभेड़ कर रहे हैं और 40 ‘आतंकवादी’ मारे गए हैं.
एनडीटीवी ने मुख्यमंत्री के हवाले से कहा, ‘आतंकवादी नागरिकों के खिलाफ एम-16 और एके-47 असॉल्ट राइफलों और स्नाइपर गन का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे घरों को जलाने के लिए कई गांवों में आए. हमने सेना और अन्य सुरक्षा बलों की मदद से उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है. हमें रिपोर्ट मिली है कि करीब 40 आतंकवादी मारे गए हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मैं उन्हें कुकी उग्रवादी नहीं कहूंगा. वे कुकी आतंकवादी हैं. वे निहत्थे नागरिकों पर गोलियां चला रहे हैं.’
सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे फिलहाल राज्य में हैं, जहां वह शनिवार दोपहर दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे हैं. उन्हें अपनी यात्रा के दौरान राज्यपाल, मुख्यमंत्री और सुरक्षा सलाहकार से मिलना है और जमीनी स्तर पर सुरक्षा स्थिति का जायजा लेना है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी 3 मई को पहली बार भड़की हिंसा के लगभग एक महीने बाद सोमवार को मणिपुर पहुंचने वाले हैं. उन्होंने तीन दिवसीय यात्रा की घोषणा की है, जिस दौरान वह विभिन्न हितधारकों से मिलेंगे.
रविवार को एक बयान में यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट और कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन ने कहा कि वे शाह की यात्रा का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि शाह की यात्रा कुकी-जो समुदाय के लोगों को सुरक्षा की भावना प्रदान करेगी.
उधर, मणिपुर पुलिस ने शनिवार को इंफाल पूर्वी जिले में एक मांस की दुकान में आग लगाने के आरोप में रैपिड एक्शन फोर्स के तीन जवानों को गिरफ्तार किया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 103 बटालियन के तीन लोगों को जांच लंबित रहने तक निलंबित कर दिया गया है.
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने दावा किया कि शुक्रवार तक केंद्रीय बलों के 34,000 सैनिक राज्य में तैनात थे. उन्होंने दावा किया कि उनकी उपस्थिति ने हिंसा की आशंका की मौजूदा स्थिति को कुछ हद तक कम कर दिया है. हालांकि, रोज राज्य से हिंसा की कई घटनाएं सामने आ रही हैं.
राज्य में 3 मई को शुरू हुई हिंसक झड़पों में करीब 75 लोग मारे गए, लगभग 200 घायल हुए और करीब 40,000 लोग विस्थापित हुए हैं.
मालूम हो कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे.
यह मुद्दा एक बार फिर तब ज्वलंत हो गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप बीते 3 मई को निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.
बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.
इससे पहले बीते 8 मई को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा को एक ‘मानवीय समस्या’ बताया था. अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.
एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.