रामगढ़ ज़िले में एक सरकारी स्कूल में बच्चों को प्रेरित करने के उद्देश्य से 2014 के नोबेल शांति पुरस्कार की विजेता और पाकिस्तान की समाजसेवी मलाला यूसुफ़ज़ई की तस्वीर वाले पोस्टर से लगाए गए थे. हालांकि, ग्रामीणों ने इसका यह कहकर विरोध किया कि उन्हें किसी पाकिस्तानी से सीखने की ज़रूरत नहीं है.
रामगढ़: समाज सेवी मलाला यूसुफजई भले ही लड़कियों की शिक्षा की वैश्विक प्रतीक हैं, लेकिन 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार विजेता झारखंड के रामगढ़ जिले के एक गांव के निवासियों के लिए वे बस एक पाकिस्तानी हैं. उन्होंने मांडू ब्लॉक के अंतर्गत कुजू के सरकारी हाई स्कूल से मलाला की तस्वीर वाले पोस्टर हटाने के लिए मजबूर किया, जो बच्चों को प्रेरित करने के लिए लगाए थे.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कुजू पश्चिम पंचायत के प्रमुख जय कुमार ओझा ने रविवार को कहा, ‘यह विश्व स्तर पर ज्ञात है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ राज्य प्रायोजित आतंकवाद का समर्थन करता है और हमारे देश ने इसकी बड़ी कीमत चुकाई है. हमें पाकिस्तानी कार्यकर्ताओं से शांति के सबक लेने की जरूरत नहीं है.’
सूत्रों ने कहा कि जिस स्कूल में लगभग 500 बच्चे पढ़ते हैं, वहां इस साल जनवरी में पोस्टर चिपकाए गए थे, लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें और वीडियो पोस्ट किए जाने के बाद लोगों ने हाल ही में इस पर ध्यान दिया.
रिपोर्ट के अनुसार, पंचायत द्वारा समर्थित ग्रामीणों ने पूछा कि ‘जब भारत में इतने सारे प्रेरणादायक व्यक्ति हैं तो पाकिस्तानी की छवि का उपयोग क्यों करें.’ स्कूल प्रबंधन ने विवाद को टालने के लिए जल्द ही पोस्टर हटा दिए.
हेडमास्टर रवींद्र प्रसाद ने कहा, ‘हमारे शिक्षक छात्रों को अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करने और प्रेरित करने के लिए रचनात्मक विचारों के साथ आते रहते हैं. यह पोस्टर छात्रों को मलाला के उदाहरण से प्रेरित करने की पहल का हिस्सा था.’
मलाला एक ख्यातिप्राप्त मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और उन्हें लड़कियों को शिक्षा देने का अभियान चलाने से नाराज तालिबानी आतंकवादियों ने दिसंबर 2012 में गोली मार दी थी.