चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ने मणिपुर के सीएम के दावे का खंडन किया कि हिंसा समुदायों के बीच नहीं है

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि मणिपुर में भड़की हिंसा का उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है. यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच का संघर्ष है. वहीं, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा था कि राज्य में अशांति ‘समुदायों के बीच लड़ाई’ के कारण नहीं है.

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एन. बीरेन सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक/N. Biren Singh)

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि मणिपुर में भड़की हिंसा का उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है. यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच का संघर्ष है. वहीं, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा था कि राज्य में अशांति ‘समुदायों के बीच लड़ाई’ के कारण नहीं है.

एन. बीरेन सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक/N. Biren Singh)

नई दिल्ली: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि मणिपुर में मौजूदा हिंसा का ‘आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं था और यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच संघर्ष का मामला था’.

यह बयान राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के उस बयान के विपरीत है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि राज्य में समुदायों के बीच कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं है और ताजा झड़पें कुकी उग्रवादियों और सुरक्षा बलों के बीच लड़ाई का परिणाम थीं.

जनरल चौहान ने पुणे में संवाददाताओं से कहा, ‘दुर्भाग्य से मणिपुर में इस विशेष स्थिति का उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है और यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच का संघर्ष है.’

उन्होंने कहा, ‘यह एक कानून-व्यवस्था की स्थिति है और हम राज्य सरकार की मदद कर रहे हैं. हमने बेहतरीन काम किया है और बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई है. मणिपुर में चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं और इसमें कुछ समय लगेगा, लेकिन उम्मीद है कि उन्हें स्थितियां सुधर जाएंगी.’

हालांकि, इसके उलट मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह कुकी उग्रवादियों का जिक्र करते हुए खुले तौर पर कह रहे हैं कि राज्य में सुरक्षा बल ‘आतंकवादी’ की तलाश कर उन्हें मार गिरा रहे हैं.

बीते 21 मई को उन्होंने कहा था कि राज्य में अशांति ‘समुदायों के बीच लड़ाई’ के कारण नहीं है, बल्कि सरकार की वन संरक्षण और अफीम की सफाई की नीति के विरोध के कारण है.

इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक पूर्व संयुक्त निदेशक ने समाचार वेबसाइट द टेलीग्राफ को बताया कि एन. बीरेन सिंह की टिप्पणी का उद्देश्य एक समुदाय के सभी सदस्यों को अवैध अप्रवासी के रूप में चित्रित करना प्रतीत होता है.

उन्होंने कहा, यह और कुछ नहीं बल्कि एक समुदाय को बदनाम करना है और मेईतेई लोगों के उस कथन को बल देना है, जो कुकी समुदाय के लोगों को अवैध अप्रवासी कहते रहे हैं. जातीय हिंसा के बीच जल रहे राज्य के मुख्यमंत्री से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती.

मणिपुर में बीते 3 मई को भड़की जातीय हिंसा लगभग एक महीने से जारी है. बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के कारण राज्य में तनाव शुरू हुआ था, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. इस​ हिंसर के बाद आदिवासी नेता अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इन दिनों मणिपुर के दौरे पर हैं. द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि हिंसा के केंद्रों में से एक चुराचांदपुर में पहाड़ी जनजातियों के नेताओं सहित विभिन्न समूहों के साथ बैठक में शाह ने समूहों से 15 दिनों तक शांति बनाए रखने के लिए कहा है. उन्होंने कथित तौर पर एक केंद्रीय एजेंसी या न्यायिक समिति द्वारा हिंसा की जांच का भी वादा किया.

जैसा कि द वायर ने रिपोर्ट किया है, हिंसा ने न केवल समुदायों के बीच बल्कि नागरिकों और राज्य तथा सुरक्षा बलों के बीच विश्वास को भी प्रभावित किया है. विशेष रूप से कुकी समूहों की राय है कि सुरक्षा बल उनके खिलाफ काम कर रहे हैं और हिंसा की अनुमति दे रहे हैं.

मालूम हो कि मुख्यमंत्री सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में शामिल होकर हिंसा की आग को भड़काने का आरोप लगाया गया है. केरल कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस जगराता आयोग ने कहा है, ‘अन्य राज्यों की तरह मणिपुर में भाजपा के राजनीतिक हस्तक्षेप में चरम हिंदुत्व संगठनों का प्रभाव स्पष्ट है. भारत में सभी को मणिपुर में हो रहीं घटनाओं को एक सबक के रूप में लेने की जरूरत है.’

इस बीच मणिपुर में बीते रविवार (28 मई) को हिंसा फिर भड़क गई थी. सुगनू और फेएन्ड में अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा की गई गोलीबारी में कम से कम छह नागरिकों की मौत हो गई और दो पुलिस कमांडो भी मारे गए थे.

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा था कि सुरक्षा बल सशस्त्र विद्रोहियों के खिलाफ मुठभेड़ कर रहे हैं और 40 ‘आतंकवादी’ मारे गए हैं.

राज्य में इस महीने की शुरुआत में भड़की जातीय हिंसा में करीब 75 लोग मारे गए, लगभग 200 घायल हुए और करीब 40,000 लोग विस्थापित हुए हैं.

मालूम हो कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे.

यह मुद्दा एक बार फिर तब ज्वलंत हो गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.

ऐसा माना जाता है कि इस आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, के बीच काफी चिंता पैदा हो कर दी थी, जिसके परिणामस्वरूप बीते 3 मई को निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.

बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.

इससे पहले बीते 8 मई को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में हुई हिंसा को एक ‘मानवीय समस्या’ बताया था. अदालत ने कहा था कि किसी समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में नामित करने की शक्ति हाईकोर्ट के पास नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के पास होती है.

मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.

एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.

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