वीडियो: आम आदमी पार्टी के विकास पर आधारित ऐन इनसिग्निफिकेंट मैन फिल्म की निर्देशक जोड़ी खुशबू रांका और विनय शुक्ला से अजय आशीर्वाद की बातचीत.
फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके पटकथा लेखक दाराब फ़ारूक़ी अपने लेख में कहते हैं…
इस फिल्म के दो नायकों की, एक हैं अरविंद केजरीवाल और दूसरे हैं योगेंद्र यादव. ये दोनों एक-दूसरे से उतने अलग हैं जैसे कि भाप और बर्फ.
हालांकि दोनों हैं तो पानी ही, वो पानी जिसके छिड़काव ने कुछ वक़्त के लिए भारत की राजनीति को नई ज़िंदगी दी थी. पर दोनों पानी के अलग-अलग रूप हैं.
अरविंद, जो कि भाप हैं, उनसे इस रेल का इंजन चलता है. वो ऊर्जा हैं. वो तरंग हैं. वो स्फूर्ति हैं, वो तेज़ हैं मगर वो चंचल भी हैं और अधीर भी.
वहीं योगेंद्र हैं, जो की स्थिर हैं, ठोस हैं, दृढ़ हैं, तार्किक हैं, तथ्यों से भरपूर हैं लेकिन शिथिल भी हैं और छुपे भी. ये फिल्म इन दोनों के टकराव की कहानी नहीं है, ये कहानी है- कैसे चल और अचल हिस्से मिलकर एक ख़ूबसूरत मशीन बनाते हैं.
चल के बिना भी मशीन नहीं है और न अचल के. चल ज़्यादा दिखेगा ज़रूर, जो कि फिल्म में भी दिखता है, लेकिन अचल के बिना वो बंधेगा किसमें?
ये इन दोनों के सपनों की कहानी भी है. ये उस दलदल की कहानी भी है जिसमें ये दोनों हाथ-पांव मार रहे थे. ये इन दोनों के गणित की कहानी भी है और इन दोनों के मिलने की प्रतिक्रिया की भी.
और ऐसा भी नहीं है ये फिल्म, इन दोनों की कमज़ोरियां भी छिपाती है. जिसके पास मंझी हुई आंख है उससे कुछ भी नहीं छिप पाएगा. ये फिल्म इनके सच के भी उतने ही क़रीब है जितने आपके और मेरे सच के.
ये दोनों अलग-अलग तरह के नायक है. दोनों अपने सच को सीने से लगाए हुए, दोनों सर पर कफ़न बांधे, एक देखे-अनदेखे खतरे से लड़ते हुए.
मैं इन दोनों की तारीफ इसलिए कर रहा हूं कि अगर मैं कोशिश भी करता तो ऐसे पात्र लिख नहीं पाता. दोनों अजीब से ओरिजिनल सुपर हीरो हैं लेकिन फिर भी किसी आम इंसान की तरह नश्वर भी.
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