गौहाटी हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस अजय लांबा की अगुवाई वाली समिति में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हिमांशु शेखर और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी आलोक प्रभाकर शामिल हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि समिति को इसकी पहली बैठक की तारीख़ से छह महीने के भीतर रिपोर्ट देनी है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने रविवार (4 जून) को मणिपुर में जारी हिंसा की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया.
टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, समिति की अध्यक्षता गौहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अजय लांबा करेंगे. इसमें सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हिमांशु शेखर और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी आलोक प्रभाकर भी शामिल हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक अधिसूचना में कहा गया है कि आयोग विभिन्न समुदायों के सदस्यों को लक्षित हिंसा और दंगों के कारणों और प्रसार की जांच करेगा. जांच 3 मई को शुरू हुई हिंसा से पहले की घटनाओं के अनुक्रम पर गौर करेगी और यह देखेगी कि क्या विभिन्न अधिकारियों की ओर से कोई चूक हुई थी.
अधिसूचना में कहा गया है कि आयोग व्यक्तियों या संगठनों द्वारा उसके सामने किए गए सभी दावों और आरोपों पर गौर करेगा.
केंद्र सरकार ने आयोग से जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट देने को कहा है और लेकिन उसकी पहली बैठक की तारीख से छह महीने के भीतर यह कार्य हो जाना चाहिए. यह भी कहा गया है कि यदि आयोग उचित समझे तो वह अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकता है.
बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग को लेकर तनाव बढ़ने के बाद 3 मई को मणिपुर में हिंसा भड़क उठी थी. पहाड़ी जनजातियों का मानना है कि इससे उनके अधिकारों का हनन होगा. तब से मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच लगातार हिंसा जारी है.
दोनों समुदायों ने शांति सुनिश्चित करने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की विफलता पर भी चिंता व्यक्त की है.
घरों को आग लगाने, गोलीबारी के बाद कुकी उग्रवादियों के शिविर में आग लगाई गई: पुलिस
द टेलीग्राफ के मुताबिक, इसी बीच, पुलिस ने सोमवार को कहा कि मणिपुर के काकचिंग जिले के सुगनू में नाराज ग्रामीणों ने एक खाली पड़े शिविर में आग लगा दी, जहां सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट (यूकेएलएफ) के आतंकवादी ठहरे हुए थे.
पुलिस ने कहा कि काकचिंग जिले के सेरौ स्थित सुगनू से कांग्रेस विधायक के. रंजीत के आवास सहित कम से कम 100 खाली घरों को शनिवार रात आग के हवाले करने के बाद ग्रामीण अपना गुस्सा निकाल रहे थे.
पुलिस ने कहा कि पिछले दो दिनों से आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच लगभग चौबीस घंटे गोलीबारी हो रही है.
आगजनी के हमले से पहले रविवार को भारतीय रिजर्व बटालियन और सीमा सुरक्षा बल सहित राज्य पुलिस के संयुक्त बलों ने ग्राम स्वयंसेवकों के साथ नाज़रेथ शिविर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई थी, जिसके कारण उग्रवादी अपने शिविर से भाग गए थे.
रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीणों ने बाद में रविवार रात शिविर को आग के हवाले कर दिया जिसमें नए भर्ती हुए कुकी उग्रवादियों के लिए प्रशिक्षण सुविधाएं भी हैं.
रविवार को पश्चिमी इंफाल जिले के फायेंग से भी भीषण गोलीबारी की खबर मिली थी, जबकि कुकी उग्रवादियों ने एक लकड़ी चीरने वाले आरा घर में आग लगा दी थी.
पुलिस ने बताया कि एक अन्य घटनाक्रम में अज्ञात लोगों ने रविवार को इंफाल पश्चिम जिले के लांगोल में कुछ घरों में आग लगा दी.
ज्ञात हो कि मणिपुर में एक महीने पहले भड़की जातीय हिंसा में कम से कम 98 लोगों की जान चली गई थी और 310 अन्य घायल हो गए. वर्तमान में तकरीबन 37,450 लोग 272 राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं.
मालूम हो कि मणिपुर में बीते 3 मई को भड़की जातीय हिंसा लगभग एक महीने से जारी है. बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के कारण राज्य में तनाव शुरू हुआ था, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. इस हिंसा के बाद आदिवासी नेता अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
यह मुद्दा फिर उभरा, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.
एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.
ऐसा माना जाता है कि हाईकोर्ट के आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी, जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, चिंतित हो गए, जिसके परिणामस्वरूप 3 मई को आदिवासी संगठनों द्वारा निकाले गए निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.
बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.