मणिपुर के इंफाल पश्चिम ज़िले में दो सशस्त्र समूहों के बीच हुई गोलीबारी में तीन लोगों की मौत और चार अन्य के घायल होने की सूचना है. इसके अलावा सेरौ में सुरक्षा बलों और उग्रवादियों के बीच गोलीबारी में एक बीएसएफ जवान की मौत हो गई. इस बीच सरकार ने इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध 10 जून तक बढ़ा दिया है.
इंफाल: मणिपुर में पिछले एक महीने से जारी हिंसा के क्रम में इंफाल पश्चिम जिले में सोमवार सुबह दो सशस्त्र समूहों के बीच हुई गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हो गई और चार अन्य घायल हो गए.
पुलिस ने कहा कि यह घटना जिले के कांगचुप इलाके में हुई. घायलों को इंफाल के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनकी हालत स्थिर बताई गई है.
द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि काकचिंग जिले के सेरौ इलाके में दो समूहों के बीच हुई गोलीबारी में चार लोग घायल हुए हैं.
एनडीटीवी के रिपोर्ट के अनुसार, सेरौ में सुरक्षा बलों और उग्रवादियों के एक समूह के बीच पांच-छह जून की दरमियानी रात को हुई गोलीबारी में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के एक जवान की मौत हो गई, जबकि असम राइफल्स के दो जवान घायल हो गए.
भारतीय सेना के स्पीयर कोर ने एक बयान में कहा, ‘सेरौ में गोलीबारी के दौरान बीएसएफ का एक जवान गंभीर रूप से घायल हो गया था, जबकि असम राइफल्स के दो जवानों को गोली लगी.’
अधिकारियों ने बताया कि घायल असम राइफल्स के जवानों को विमान से मंत्रीपुखरी ले जाया गया है.
उन्होंने जोड़ा, ‘असम राइफल्स, बीएसएफ और पुलिस द्वारा मणिपुर में सुगनू/सेरौ के क्षेत्रों में व्यापक अभियान चलाए गए. सुरक्षा बलों और विद्रोहियों के समूह के बीच रुक-रुक कर गोलीबारी 5-6 जून की रात भर हुई, सुरक्षा बलों ने प्रभावी ढंग से जवाबी कार्रवाई की.’
असम राइफल्स, सीएपीएफ (केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) और पुलिस के साथ भारतीय सेना ने मणिपुर में हाल के संकट के बाद अपने व्यापक सर्च अभियान शुरू किए. सर्च ऑपरेशन जारी है.
सेना के अधिकारियों ने कहा कि सेना, असम राइफल्स, पुलिस और सीएपीएफ ने शनिवार को पूरे मणिपुर में पहाड़ी और घाटी क्षेत्र में एरिया डॉमिनेशन ऑपरेशन शुरू किया.
मानवरहित हवाई वाहनों और क्वाडकॉप्टरों के निगरानी कवर के तहत किए गए अभियानों में अब तक 40 हथियार (ज्यादातर स्वचालित), मोर्टार, गोला-बारूद और अन्य जंगी सामान बरामद किए गए हैं.
केंद्र ने मणिपुर में हिंसा की हालिया घटनाओं की जांच के लिए गौहाटी हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा की अध्यक्षता में बीते 4 जून को एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया, जिसमें 98 से अधिक लोगों की जान चली गई है.
बीते 4 मई को काकचिंग जिले के सुगनू में नाराज ग्रामीणों ने एक खाली पड़े शिविर में आग लगा दी थी, जहां सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट (यूकेएलएफ) के उग्रवादी ठहरे हुए थे.
पुलिस ने कहा था कि काकचिंग जिले के सेरौ स्थित सुगनू से कांग्रेस विधायक के. रंजीत के आवास सहित कम से कम 100 खाली घरों को शनिवार (3 मई) रात आग के हवाले करने के बाद ग्रामीण अपना गुस्सा निकाल रहे थे.
इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध 10 जून तक बढ़ा
इसी बीच, मणिपुर सरकार ने हिंसा प्रभावित राज्य में और अशांति को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध 10 जून तक बढ़ा दिया है. यह प्रतिबंध तीन मई को लगाया गया था.
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक आदेश में राज्य सरकार ने सोमवार शाम को कहा कि इंटरनेट सेवाओं को पांच और दिनों के लिए (यानी 10 जून की दोपहर 3 बजे तक) बंद करने का निर्णय लिया गया है.
राज्य में शांति बहाल करने के लिए सेना और असम राइफल्स के करीब 10,000 जवानों को तैनात किया गया है.
पिछले सप्ताह अपनी यात्रा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने मेईतेई और कुकी दोनों से शांति बनाए रखने और सामान्य स्थिति लाने के लिए काम करने की अपील की थी.
ज्ञात हो कि मणिपुर में एक महीने पहले भड़की जातीय हिंसा में कम से कम 98 लोगों की जान चली गई थी और 310 अन्य घायल हो गए. वर्तमान में तकरीबन 37,450 लोग 272 राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं.
मालूम हो कि मणिपुर में बीते 3 मई को भड़की जातीय हिंसा लगभग एक महीने से जारी है. बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के कारण राज्य में तनाव शुरू हुआ था, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. इस हिंसा के बाद आदिवासी नेता अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
यह मुद्दा फिर उभरा, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.
ऐसा माना जाता है कि हाईकोर्ट के आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी, जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, चिंतित हो गए, जिसके परिणामस्वरूप 3 मई को आदिवासी संगठनों द्वारा निकाले गए निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.
एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.
मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.
बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.