मणिपुर: भीड़ द्वारा एंबुलेंस में लगाई आग में महिला, उनके सात साल के बच्चे और पड़ोसी की मौत

इंफाल पश्चिम के इरोइसेम्बा इलाके में 4 जून को भीड़ द्वारा एंबुलेंस में आग लगाने की घटना में सात वर्षीय बच्चे, उसकी मां और एक महिला, जो उनकी पड़ोसी थीं, की मौत हो गई. इस बच्चे को असम राइफल्स कैंप में गोली लगने के बाद अस्पताल ले जाया जा रहा था.

मणिपुर का 29 मई को लिया गया एक फोटो. (फोटो: द वायर)

इंफाल पश्चिम के इरोइसेम्बा इलाके में 4 जून को भीड़ द्वारा एंबुलेंस में आग लगाने की घटना में सात वर्षीय बच्चे, उसकी मां और एक महिला, जो उनकी पड़ोसी थीं, की मौत हो गई. इस बच्चे को असम राइफल्स कैंप में गोली लगने के बाद अस्पताल ले जाया जा रहा था.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से पहले प्रशासन ने 29 मई को मणिपुर में कर्फ्यू लगा दिया. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: इंफाल पश्चिम के इरोइसेम्बा इलाके में रविवार (4 जून) शाम एंबुलेंस में आग लगाने से एक सात वर्षीय लड़के, उसकी मां और एक महिला पड़ोसी की मौत हो गई. लड़के को असम राइफल्स कैंप, जहां उसका परिवार रह रहा था, में गोली लगने के बाद अस्पताल ले जाया जा रहा था.

इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्ट के मुताबिक, भीड़ ने बच्चे और उसके साथ के लोगों को ले जा रही एम्बुलेंस को आग लगा दी, जिसके चलते तीनों की मौत हो गई.

अखबार ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से कहा, ‘हमें गाड़ी के अंदर से कुछ हड्डियां ही मिली हैं.’ उन्होंने बताया कि उसी रात हत्या से जुड़ी धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.

स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक, सात साल के तोंगसिंग हैंगिंग और उसका परिवार उससे एक दिन पहले ही असम राइफल्स कैंप में चला गया था.

एक अधिकारी ने बताया कि रविवार को शिविर के दोनों ओर कुकी और मेईतेई गांवों के बीच गोलीबारी हुई थी. इस गोलीबारी के दौरान एक गोली तोंगसिंग के सिर में और दूसरी उसकी मां के हाथ में लगी.

स्क्रॉल के अनुसार, शिविर में बच्चे को ऑक्सीजन दी गई थी, हालांकि उसकी स्थिति गंभीर थी और उसे अस्पताल ले जाने की जरूरत थी. तोंगसिंग के पिता कुकी समुदाय और मां मेईतेई समुदाय से हैं.

यह देखते हुए कि इंफाल का निकटतम अस्पताल मेईतेई क्षेत्र में है, यह निर्णय लिया गया कि बच्चे के साथ उसकी मां मीना हैंगिंग और एक अन्य मेईतेई पड़ोसी महिला लिडिया लौरेम्बम को साथ में रखा जाना चाहिए.

असम राइफल्स के जवान जब तक संभव हो सका, एंबुलेंस और पुलिस के काफिले के साथ थे, लेकिन फिर इन्हें मेईतेई महिलाओं के एक शक्तिशाली विजिलेंट ग्रुप-‘मीरा पैबिस’ द्वारा रोक लिया गया. फिर भी, इसके बाद एंबुलेंस पुलिस सुरक्षा में चलती रही. हालांकि, इस बीच अफवाह फैली गई कि ‘कुकी उग्रवादियों’ को निकाला जा रहा है. फिर इस काफिले पर हमला किया गया और भीड़ ने बच्चे, उसकी मां और पड़ोसी समेत एंबुलेंस को जला दिया.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, काफिले में शामिल एक पुरुष नर्स ने बताया, ‘जब हम इरोसेम्बा पहुंचे, तो हमें भीड़ ने रोका और पूरी तरह से घेर लिया. ड्राइवर और मुझे गाड़ी से बाहर निकाला गया और पास के एक क्लब में ले जाया गया. पुलिस की संख्या अधिक थी. उन्होंने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए फायरिंग नहीं की. शाम करीब 6.30 बजे थे. हमें लगभग दो घंटे तक एक क्लब में रखा गया था.’

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की सरकार पर कई कुकी विरोधी नीतियों के साथ मेईतेई-आदिवासी संबंधों को भड़काने का आरोप लगते रहे हैं, शांति बहाल करने के लिए मेहनत करने का दावा करते हैं, लेकिन हिंसा के दौरान और बाद में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं.

द टेलीग्राफ के रिपोर्ट के मुताबिक, एंबुलेंस के हमले में अपनी पत्नी और बेटे को खोने वाले जोशुआ हैंगिंग ने कहा, ‘पुलिस की तरफ से किसी ने भी मुझसे संपर्क नहीं किया है- मैं थाने जाने से डरता हूं.’

जोशुआ, जिन्हें अभी तक शव नहीं मिले हैं, एंबुलेंस हमले के बाद से कुकी बहुल गांव कीथेलमनबी में उनके रिश्तेदारों के साथ हैं. मृतकों के एक रिश्तेदार पाओलेनलाल हैंगिंग ने कहा, ‘हम 3 मई से मेईतेई समुदाय से बहुत अधिक अत्याचारों का सामना कर रहे हैं, लेकिन रविवार की घटना सबसे खराब थी.’

एक स्कूल शिक्षक पाओलेनलाल ने कहा, ‘शव जले हुए थे… राख में केवल कुछ हड्डियां मिलीं.’

उन्होंने कहा कि वह एंबुलेंस में तीनों के साथ नहीं गए, क्योंकि वे कुकी हैं और उस गाड़ी को मेईतेई बहुल इलाकों से गुजरना था. उन्होंने कहा, ‘मीना और लिडिया ईसाई थीं, पर वे मेईतेई समुदाय से हैं, तो हमने सोचा कि उन पर हमला नहीं किया जाएगा. लेकिन उन्हें भी नहीं बख्शा गया.’

मणिपुर में 3 मई को पहली बार जातीय तनाव बढ़ने के बाद से राज्य में हिंसा जारी है. कथित ‘विद्रोहियों’ और सुरक्षा बलों के बीच गोलीबारी में 5 और 6 जून की रात सीमा सुरक्षा बल के एक जवान की मौत हो गई और असम राइफल्स के दो जवान घायल हो गए.

द हिंदू के अनुसार, पिछले 48 घंटों में राज्य में अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया गया है.

ज्ञात हो कि मणिपुर में एक महीने पहले भड़की जातीय हिंसा में कम से कम 98 लोगों की जान चली गई थी और 310 अन्य घायल हो गए. वर्तमान में तकरीबन 37,450 लोग 272 राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं.

मालूम हो कि मणिपुर में बीते 3 मई को भड़की जातीय हिंसा लगभग एक महीने से जारी है. बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की एसटी दर्जे की मांग के कारण राज्य में तनाव शुरू हुआ था, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. इस​ हिंसा के बाद आदिवासी नेता अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.

यह मुद्दा फिर उभरा, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.

ऐसा माना जाता है कि हाईकोर्ट के आदेश से मणिपुर के गैर-मेईतेई निवासी, जो पहले से ही अनुसूचित जनजातियों की सूची में हैं, चिंतित हो गए, जिसके परिणामस्वरूप 3 मई को आदिवासी संगठनों द्वारा निकाले गए निकाले गए एक विरोध मार्च के दौरान जातीय हिंसा भड़क उठी.

एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.

मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.

बीते 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेईतेई समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश के खिलाफ ‘कड़ी टिप्पणी’ की थी. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत बताया था.